इसके पहले मै बाल ठाकरे की शोक यात्रा में उमड़ी भीड़ के बारे में कुछ कहूँ ये समझ लेना आवश्यक रहेगा कि प्रजातंत्र में संख्या बल बड़ा मायने रखता है।प्रजातंत्र का आधार ही यही है कि जिसके पीछे जनता वही हीरो बाकी सब जीरो अब चाहे उसने नंगा करके अपने को भीड़ जुटाई है या सबको दारू रुपैय्या बाँट कर। पर भीड़ के दम पर ही लोकतंत्र चलता है अब चाहे जनप्रिय नेता की बात भीड़ के बीच में बैठे कल्लू को या मंच पे बैठे सेठ किरोड़ीमल को समझ में आ रही हो या ना आ रही हो इससें किसी को क्या मतलब। भीड़ में है यही बहुत है। यही लोकतंत्र का माडल है जिसकी लाठी उसकी भैंस, और जिसके पास सबसे ज्यादा लाठी उसके पास पूरा देश।
इस तर्क के हिसाब से चले तो अल्पसंख्यको के दम पर राजनीति करने वालो के मुंह पर ठाकरे साहब मर कर भी कस कर तमाचा लगाने से नहीं चूँके। बाल ठाकरे का मै कोई प्रशंसक नहीं क्योकि मूलतः मै उग्र विचारधारा का समर्थक नहीं हूँ क्योकि उग्रता इस देश का स्वभाव कभी नहीं रहा है। लेकिन आसुरी प्रवत्ति से लैस बढ़ते लोगो का झुण्ड, अल्पसंख्यको के नाम पर होते रोज तमाशे, हिन्दुओ में फैलती कायरता के चलते तहत ये आवश्यक हो गया है कि कुछ शेरदिल नेता पैदा तो हो जो अपनी दहाड़ से कम से कम हिन्दुओ का उत्साह तो कायम रख सके नहीं तो कोई लालटेन जलाकर, कोई हाथी भागकर, कोई साइकिल दौड़ाकर जनता को नित प्रतिदिन बेवकूफ बना कर भीड़ जुटा रहा है। ऐसे में कोई देश को बाटने वाली विभाजनकारी ताकतों को को उनकी ही भाषा में जवाब देकर भीड़ जुटा गया तो इसमें हो हल्ला मचाने की क्या जरूरत है। इसमें इतना आश्चर्यचकित कर देने वाली क्या बात है।
क्या इसके पहले भीड़ जुटते नहीं देखी किसी ने? आप ने चुनाव की रैली नहीं देखी क्या? मुफ्त में लखनऊ आयेंगे और नेताजी का भाषण सुने ना सुने चिड़ियाघर में शेर के दर्शन करना नहीं भूलेंगे। अगले दिन अखबार में नेताजी का कहिन और भीड़ की फोटु दोनों मौजूद होंगे। और पीछे जाए भारत छोड़ो आन्दोलन में लगभग पूरा देश उमड़ पड़ा था। जय प्रकाश नारायण के आहवान पर क्या भीड़ नहीं उमड़ी थी? खैर उस भीड़ के तत्त्व अलग थें। इस इक्कीसवी सदी के भारत में जब सब नेता स्विस बैंक प्रेमी हो गए है, जब नेता गरीबी को नहीं गरीब को ही हटा दे रहे है, आतंकवादी नेताओ का शह पाकर सलाखों के पीछे बिरयानी काट रहे है तो ऐसे में भीड़ के होने के मायने भी बदल गए है।
वैसे आश्चर्य है कि बहुत से लोग ठाकरे को साम्प्रदायिक राजनीति करने वाला, उकसाने वाली राजनीति करने का आरोपी मानते है इसलिए अछूत मानते हुए अल्संख्यको की नज़रो में सेक्युलर बनने के लिए शोक यात्रा में नहीं शामिल हुएँ। मै इन विवेकी नेताओ से ये जानना चाहूँगा कि कौन सा नेता सही राजनीति कर रहा है? कौन नहीं राजनीति की दूकान चला रहा है? तो शुचिता का पाठ ठाकरे या मोदी जैसे हिन्दू नेताओ पर ही क्यों लागू होता है? तो क्या अलगाववादी नेता जो कश्मीर में पंडितो को मारकर, भगाकर आज़ादी मांग रहे है इनके नेता के शोक सभा में होना चाहिए? या इन नेताओ के शोक सभा में होना चाहिए जो सबसे मेहनती मजदूर के नाम पर राजनीति कर रहे है। मजदूर तो वही झुग्गी झोपड़ी वाले रहे लेकिन ट्रेड यूनियन के नेता एयर कंडिशन्ड केबिनो में जा पहुंचे। तो इन नेताओ के मरने पर भीड़ जुटनी चाहिये? या इन “हाथ की सफाई” वाले नेताओ के मरने पर मजमा लगना चाहिए जिनके कुकर्मो की लिस्ट इतनी लम्बी है कि यमराज के आफिसवाले वाले भी ना पढ़ पाए अगर चाहे तो। या राम लला के नाम पर सत्ता पाने वाले वाले पर राम को ही पीछे धकिया कर राजनीति करने वाले नेताओ के मरने पे भीड़ होनी चाहिए? तो ये बाल ठाकरे की शोकयात्रा में उमड़ी भीड़ पर जलने वाले, कुढने वाले, दूर रहने वाले जलते रहे, कुढ़ते रहे, सर नोचते रहे है।
बाल ठाकरे इन धर्म निरपेक्ष नेताओ से अच्छा नेता था। कम से कम उसका असली चेहरा सामने था। उसने नकाब ओढ़कर राजनीति नहीं की। पीठ पीछे घात लगाकर हमला नहीं किया। जो भी किया खुल कर सामने किया। यहाँ का खाकर कठमुल्लों की तरह विदेशी ताकतों की जय नहीं करता था। धर्म निरपेक्ष बनकर बिरयानी तो नहीं काटता था उन आतंकवादियों के साथ जो निरीह लोगो को हलाक करते थें। इस का मतलब ये नहीं कि मै बाल ठाकरे की नीति या राजनीति का समर्थक हूँ। कतई नहीं। लेकिन एक ठाकरे को कोसना मै जायज़ नहीं मानता क्योकि इस हमाम में कौन नंगा नहीं? तो सिर्फ ठाकरे से घृणा क्यों? सिर्फ ठाकरे से दूरी क्यों?
रही भीड़ की बात। तो मेरी नज़रो में भीड़ का आना ख़ास महत्त्व नहीं। कल शाहरुख खान इलाहाबाद में रंडी टाइप का ठुमका लगा जाए तो उजड्ड नौजवानों की बेकाबू भीड़ लगेगी चीखने चिल्लाने? तो क्या शाहरूख खान को मै इस भीड़ प्रदर्शन के बल पर पर बहुत बड़ा अभिनेता मान लूं? या कल को कोई ईमानदार आदमी मर जाए और सौ पचास तो छोड़िये दस आदमी भी न शामिल हो तो क्या मै उस आदमी को कमीना मान लूं और इस शोकयात्रा को भी फ्लाप या हिट शो मानने की कवायद में जुट जाऊं ?
Pics Credit:
Wah Wah Arvind bhai waise aapne bahot naap taul ke ye lekh likha hai,Aapka kehna sahi hai ki bheed juatane ka ye kattai matlab nahi ki wo insaan bahot mahan hai ya kisi imandar vyakti ke marne pe agar bheed na jute to wo kamina hai…..waise aapne jo bhi likha wo bheed se sambhandit likha parantu mai chahta tha ki kuch aur pehlu pe aap prakash dalte to aur bhi acha lagta,….Jaise mumbai band,Thakrey ji ko Tirange ka samman ityadi .Jai Hind.
नाप तौल कर बात करना मेरी आदतों में शुमार है।। यूँही कलम हाथो में नहीं थाम ली।…..रहा तिरंगे में लिपटाने की बात तो जहा कफ़न चोर तक पैदा हो गए हो और आपकी और मेरे जेब का पैसा स्विस बैंक में चला गया हो कौन है तिरंगे में लिपटने की योग्यता रखता है? सोचे जरा।
I want to say only one thing that is “awesome” post. you clearly showed the true face of politician. Thanks for marvellous post.
@Praful
Thanks Buddy for your encouraging remark..The task of any writer is to bring out the truth to masses trapped in ignorance..A true writer cannot dare to indulge in lies..That’s why he goes against the conventional norms even if that means facing brickbats from stereotyped minds..
Anyway, hope to meet you again..
Dr Natraj Kamboj, Pediatrician/ Child and Behavioral Counselor, Lucknow, Uttar Pradesh said:
गन्दी एवम भद्दी भाषा पांडे जी , कहे भांड टाइप……
(नोट 😛 डाक्टर साहब का कमेन्ट उनकी ऐसी की तैसी वाली हिंदी से सुधारकर सही हिंदी में अपने पोस्ट पे डाल रहा हूँ ..उम्मीद है बुरा नहीं मानेंगे 🙂 )
Author’s Response:
दिल पे लगी बात बनी ..सनी लियॉन की फिल्मे देखने वाले युग में ऐसे भाषा का उपयोग सार्थक हितो के लिए कर लिया तो क्या गुनाह कर दिया ..मै तो फिर भी संयमित हूँ वर्ना भांड टाइप के ऐसे लोगो के लिए मै …………
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Dr Natraj Kamboj, said:
पांडे जी क्षमा करे ……
Rajesh Pandey, Jalandhar , Punjab, said:
At least we can say..Vo Dogale Rajneta Nahi The..
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Author’s Response:
Well said….It always gives a better impression if you stab in the chest as an enemy rather than stabbing in my back, pretending to be my friend…
Yogesh Pandey, Lucknow, Uttar Pradesh, said:
Really true, but any ways i don’t like communalism…
Author’s Response:
I hate fundamentalists but I hate secularists even more 😛
A Conversation On Facebook with one Kamlesh Shukla from Varanasi, Uttar Pradesh:
Kamalesh Shukla said:
क्या बात है प्रांतवाद, जातिवाद, सम्प्रदायवाद के नाम पे गुंडागर्दी करने वाले ठाकरे के प्रति आपकी संवेदना आपको एक समर्पित शिवसेनिक की निशानी लग रही है……
Author’s Response:
जब जल्दीबाजी में सतही रूप से पढेंगे तो इससें ज्यादा कुछ समझ में भी नहीं आएगा।।।
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Kamalesh Shukla said:
Arvind K Pandey जी अब आफै बता दे की ठाकरे कितने बड़े देश भक्त थे जिनके लिए आप सेकुलरिज़्म को कोस रहे है
Author’s Response:
इसलिए आप से और अन्य पाठको से विनम्र निवेदन रहता है कि लेख को आँख और दिमाग दोनों को खोल कर पढना चाहिए …आप की बात जवाब देने योग्य नहीं है क्योकि जो बात आप को लग रहा है बहुत पते की है उस को लेकर मै पहले ही लेख में कह चुका हूँ ..फिर से बात दुहराने का कोई मतलब नहीं क्योकि सोते हुएं का नाटक करने वालो को जगाने का मेरे पास धैर्य नहीं।। इसी लेख में सें वो शब्द जो आपकी आँखे और दिमाग दोनों पढ़ नहीं पा रहे है:
“बाल ठाकरे इन धर्म निरपेक्ष नेताओ से अच्छा नेता था। कम से कम उसका असली चेहरा सामने था। उसने नकाब ओढ़कर राजनीति नहीं की। पीठ पीछे घात लगाकर हमला नहीं किया। जो भी किया खुल कर सामने किया। यहाँ का खाकर कठमुल्लों की तरह विदेशी ताकतों की जय नहीं करता था। धर्म निरपेक्ष बनकर बिरयानी तो नहीं काटता था उन आतंकवादियों के साथ जो निरीह लोगो को हलाक करते थें। इस का मतलब ये नहीं कि मै बाल ठाकरे की नीति या राजनीति का समर्थक हूँ। कतई नहीं। लेकिन एक ठाकरे को कोसना मै जायज़ नहीं मानता क्योकि इस हमाम में कौन नंगा नहीं? तो सिर्फ ठाकरे से घृणा क्यों? सिर्फ ठाकरे से दूरी क्यों?”
…………………….I hope that’s enough for the time being…
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Kamalesh Shukla said:
मैंने कब कहा की मुझे सिर्फ ठाकरे से ही घृणा हैं,, और गुंडे जो भी करते है खुले आम ही करते है ,,किसी को छिप के डगुंडा गर्दी करते देखा है?? ठाकरे जैसे लोग आटकवादियों से ज्यड़ा खतरनाक है ,,मुंबई मे facebook पर ठाकरे के खिलाफ बोलने वाली लड़कियो के घरो पर गुंडा गर्दी ,मारी नज़र मे किसी आटकवादी घटना से कम नही है ,,आतंक वादी तो कम से कम विदेशी होने के कारण शत्रुता का भाव रखते है ,,यहा तो अपने ही देश भाइयो को मारा -पीटा गया ,,जिस हिन्दुत्व की दुहाई देके के आप कटमुल्लाओ को कोस रहे है ,,जरा हमे बताए उत्तर प्रदेश ,,बिहार ,,गुजरात के लोग हिन्दू नही है ??
Author’s Response:
बहुत तकलीफ है आपको और मुझे भी कि लड़कियों के घर हमला हुआ ….पर आप जैसे तब खामोश थें जब अलगाववादी कश्मीर में हिन्दू लड़कियों को काट हिन्दुओ को भगा रहे थें ..पर अभी आपको दो लड़कियों के लिए जार जार आंसू बहाना आवश्यक हो जाता है ……और यही अलगावादी दिल्ली में आकर, भीड़ जुटाकर भारत विरोधी बात करते है तब हाथ की सफाई वाले मगन रहते है सेक्युलर छाती चौड़ी करके। फिर और बेहतर तरीके से अफज़ल ना मरे सोचते है। आपकी संवेदनशीलता उच्च कोटि की है।।। नमन आपको। कौन है बड़ा गुंडा बताये तो? कौन साफ़ साफ़ खुलकर गुंडागर्दी कर रहा है? अब खामोश होक सोचे। बेहतर रहेगा आपके लिए।
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Kamalesh Shukla said:
अरविद जी आप मुद्दे से पलट गए ,,आप कश्मीर ,,आतंकवाद के बहाने ठाकरे जैसे लोगो की वाह वाही कर रहे है ,,कबीले तारीफ है ,,सवाल दो लड़कियो का नही ,,,धर्म के नाम पर देश को बाटने वाले लोगो की मानसिकता को शह देने का है ,,देश मे ठाकरे जैसी मानसिकता वाले बहोत है ,,फर्क इतना है कोई मुसलमानो के नाम पर कर रहा है कोई हिन्दू के नाम पर,, मैं हिन्दू हु तो इसका मतलब ये नही की अपने धर्म के नाम पर देश को बाटने वाले लोगो समर्थन करू ,,आप करिए न ,अगर आपको धर्म ,,देश से ज्यड़ा प्रिय है….
Author’s Response:
मुद्दे से क्या पलटे साहब ,, आपको लगता है ठाकरे बड़ा गुंडा था ..तो चलिए गुंडागर्दी क्या होती है।। कौन है बड़ा गुंडा यही समझ लिया जाए न ..यही तो आप तब से थोप रहे है …..पर कहा कहा हिन्दू मार के भगाए गए।।इसको न समझे!!!!! पहले इन बातो को समझ ले तो फिर ठाकरे को समझते है। आप खुलकर गुंडागर्दी और प्रांतवाद, हिन्दुओ को भगाने जैसे बौड़म बात ही तो कर रहे है ना इस मौके पर। और कोशिश भी वही हो रही है।
बंद करिए ये फिजूल की बाते नहीं तो हाथ की सफाई की गुंडागर्दी को वो फ़ाइल खुल जायेगी कि प्रांतवाद जैसे नौटंकीनुमा बाते भी आप को डिफेंड नहीं कर पायेंगी । आप की आत्मा मर गयी है क्या कि एक राज्य को विशेष दर्जा मिला हुआ है।वो क्या है। ..White Collared गुंडागर्दी ..और ये आप जैसो को भली लगती है। इसके लिए आप जैसे के पास घडियाली आंसू भी नहीं होगा। मुझे यकीन है।
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Kamalesh Shukla said:
अरविंद जी ,,तब तो आप को अगर कोई हिन्दू सरे राह मारे ,,गलिया दे ,,आप उसे प्यार से गले लगाएंगे ,,आखिर आपके धर्म का ठहरा,,इसमे बेइज्जती का तो कोई सवाल ही नही,,क्यू सही कहा न मैंने ?
Author’s Response:
साहब “अन्न बन्न साय” (वाहियात ) टाइप के कमेंट करने से बेहतर है कि आप मुंह बंद करके बैठे।। आप को शुरू में ही कह दिया गया था कि अगर लेख पढने की तमीज नहीं है तो बेहतर है खामोश रहे। ये आपको मै फिर से समझा दूं ये लेख मूलतः भीड़ के मनोविज्ञान को समझने के दृष्टिकोण से लिखा गया है ना कि किसी व्यक्ति विशेष या पार्टी को ध्यान में रखकर। पर आप जैसे “भैंस के आगे बीन बजाए और भैस खड़ी पगुराय” के लक्षणों से लैस को शायद ये कभी समझ में नहीं आएगा। तो मैं मना नहीं करूँगा ठाकरे नाम को फैंटते रहे। रहा कोई सरे राह हिन्दू हाथ लगा दे तो अगर आप जैसा कोई हिन्दू या कोई और करेगा तो ये काले कोट वाले को आप जैसे जड़ व्यक्ति से ये समझने कि जरूरत नहीं कि फिर क्या होगा? इतनी जड़ता आपके अन्दर घुस गयी कि कोई हिन्दू जब हिन्दू को सरे राह हाथ लगता है तो क्या होता है? मतलब साफ़ है अराजक तत्त्वों चाहे हिन्दू हो या मुस्लिम है वो कानून के दायरे में ही। अफ़सोस यही है कि कुछ लोग बिरयानी काटते है जब कोई उन्नीकृष्णन हिन्दू शहीद होता है तो। लड़ाई इस बात की है कि अब बिरयानी नहीं वही मिलेगा जिसके तुम हकदार हो। इससें लगता है कि आप जैसे बिरयानी माडल वाले बेचैन हो उठे है। वैसे देखना यही है कि जब बुखारी जैसो का जनाज़ा उठेगा तब आपके पेट में दर्द होता है कि नहीं। टोपी लगाकर भीड़ में शामिल जरुर हो जाइएगा।
खैर लेख में आप क्या नहीं पढ़ पाए वो लाइन भी देखे।।। और इसके बाद फालतू टिप्पणी करना बंद कर दे।
“प्रजातंत्र में संख्या बल बड़ा मायने रखता है।”…….”यही लोकतंत्र का माडल है जिसकी लाठी उसकी भैंस, और जिसके पास सबसे ज्यादा लाठी उसके पास पूरा देश।” ……”ऐसे में कोई देश को बाटने वाली विभाजनकारी ताकतों को को उनकी ही भाषा में जवाब देकर भीड़ जुटा गया तो इसमें हो हल्ला मचाने की क्या जरूरत है। इसमें इतना आश्चर्यचकित कर देने वाली क्या बात है।”……..”या इन “हाथ की सफाई” वाले नेताओ के मरने पर मजमा लगना चाहिए जिनके कुकर्मो की लिस्ट इतनी लम्बी है कि यमराज के आफिसवाले वाले भी ना पढ़ पाए अगर चाहे तो।” “रही भीड़ की बात। तो मेरी नज़रो में भीड़ का आना ख़ास महत्त्व नहीं। कल शाहरुख खान इलाहाबाद में रंडी टाइप का ठुमका लगा जाए तो उजड्ड नौजवानों की बेकाबू भीड़ लगेगी चीखने चिल्लाने?”
Author’s Words For Munish Gupta, New Delhi/ Prakhar Pandey, Gwalior, Madhya Pradesh:
आप के लिए बस इतना ही कि पुराने लोग भी बड़े प्रेम से याद रखते है …ये मेरे लिए सबसे बड़ी ट्राफी है।।।
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Author’s Words For Shikha Shukla, Jaipur (Rajashthan):
अच्छा लगा देखकर आपको …इतने दिनों के बाद लेख को पसंद करते हुएं ….
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Author’s Words For Sudhir Gawandlkar, Bangalore, Karnataka:
बहुत धन्यवाद लेख को पसंद और शेयर करने के लिए ….
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And many thanks to Dharmendra Sharma, UAE, Nita Pandey, Chennai,Tamil Nadu; Mudit Pandey,Bangalore, Karnataka; Swami Prabhu Chaitanya,Patna, Bihar;Atul Tripathi, Orai,Uttar Pradesh; Manjoy Laxmi,Nagpur, Maharashtra;Rakesh Pandey,Bhopal, Madhya Pradesh;Anjeev Pandey,Nagpur,Maharashtra; Alka Pandey, Mainpuri, Uttar Pradesh; Mayank Mishra, Varanasi, Uttar Pradesh; Shashikant R.Pandey, Ahmedabad,Gujarat;Siddharth Pandey;Ashish Kumar,Bhilai, Madhya Pradesh; Rahul Rai, Bhubneshwar, Orissa; Baijnath Pandey,Associate Editor,Instablogs,New Delhi; Inderjit Kaur,Jalandhar,Punjab; Chaitanya, Bhopal,Madhya Pradesh;Ankit Sharmaji,Ghaziabad,Uttar Pradesh;Manish Tripathi,Allahabad,Uttar Pradesh; Anand G.Sharma, Mumbai, Maharashtra; Himanshu B. Pandey, Siwan, Bihar; Vipin Mehrotra, Jhalwad, Rajasthan, and Kavita Parnaami, Meerut, Uttar Pradesh,for liking the post.
Many thanks to Laurie Buchanan, Holistic Health Practitioner—Board Certified with the American Association of Drugless Practitioners, USA, for liking the post….
Ankit Sharma, Ghaziabad, Uttar Pradesh, said:
You are welcome sir ..And mai aapko bata doon ki mai aap jaise logo ki dil se respect krta hu aur ye jo Shukla shab jaise hai na inse to Hindustan” ki nagrikta he chhin leni chahiye…Ye Shukla jaise log kyo nahi samajhte ki agar ye status agar Kisi Musalmaan ko hota ka to yha kam se kam 70 musalman usko support or unity of religion ki baat keh kar wah wah karte but yaha to….
Author’s Response:
अंकित मै तुम्हारी बातो से पूर्णतया सहमत हूँ ..लेकिन ऐसा भी तो हो सकता है कि कोई फर्जी प्रोफाइल से ये बात कह रहा हो ..और ये साहब शुकुल माने कमलेश शुक्ला ना हो कोई और “खान्ग्रेस्सी” हो ? लेकिन खैर जो भी हो ऐसी मूर्खतापूर्ण बाते करने वाले को इग्नोर करना और दूर करना या दूर रहना ही बेहतर है। वैसे कसाब पे एक नया लेख आएगा पढियेगा।