Tag Archives: Aamir Khan

आमिर खान के वक्तव्य की असल मंशा को समझना बेहद जरूरी है! घातक प्रवित्ति की निशानी है ऐसे वक्तव्य !!

amrr
( हिन्दू आधार पे निर्भर रहने वाले इस तरह के स्टार्स को जिस दिन हिन्दू समाज प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन देना बंद कर देगा उस दिन के बाद से इनकी हैसियत कुछ भी नहीं रहेगी. अब यही करने की जरुरत आ गयी है. आमिर खान के वक्तव्य का सही जवाब यही है. सही प्रतिरोध यही है. )
 

आमिर खान के वक्तव्य की गंभीरता को समझना आवश्यक है. इसकी असल थाह लेना बहुत जरूरी सा है. इस परिपेक्ष्य में नहीं कि ये आमिर खान ने कहा है बल्कि एक दूसरे सन्दर्भ में इनके वक्तव्य को परखना अति आवश्यक है. पहले ये समझना पड़ेगा कि ये असहिष्णुता पे चर्चा पूरी तरह से सुनियोजित षड़यंत्र है सरकार को अस्थिर करने की. इसमें तो कुछ देश की ही ताकते है जैसे  खिसियाये हुए अलग थलग पड़ गयी राजनैतिक पार्टिया है तो दूसरी तरफ छुपी हुई विदेशी ताकते है जिनके अपने हित नहीं सधते दिखाई पड़ रहे है. सो जब कुछ नहीं मिला तो  “असहिष्णुता” को ही मुद्दा बनाकर सरकार पे कीचड फेकना शुरू कर दिया. जाहिर सी बात है कि इसमें बिकी हुई मुख्यधारा की मीडिया भी शामिल है. सो असल सवाल ये बनता है कि इस प्रायोजित असहिष्णुता वाली बहस में आमिर खान को कूदने की क्या जरुरत थी? और यही से आमिर खान के  वक्तव्य की असल मंशा उभर कर सामने आ जाती है!! असहिष्णुता को भी एक पंक्ति में समझते चले कि अगर दंगो का इतिहास देखे तो आजादी के बाद तो सबसे नृशंस तरीके से हत्याए कांग्रेस के शासन काल में हुई!! आश्चर्य इस बात का है कि कभी भी इनके शासन काल में असहिष्णुता पे इतना हो हल्ला नहीं मचा पर मोदी के शांतिपूर्वक एक साल पूरे होते हुए ही अचानक असहिष्णुता  एक भारी मुद्दा बन गया. या बना दिया गया!! 

आमिर खान के वक्तव्य की आने का समय देखिये. पेरिस में हमले के बाद दुनिया की सारी ताकते मुस्लिम आतंकवाद के वीभत्स नए चेहरे आईएस से निबटने की तैयारी में लगी है लेकिन हमारे यहाँ बहस आमिर खान के निरर्थक वक्तव्य पे केन्द्रित है. दुनिया एक तरफ बेचैन है कैसे इस्लामिक आतंकवाद से निबटा जाए पर हमारे यहाँ बिके हुए बुद्धिजीवी और प्रेस्टीटयूट स्पॉन्सर्ड असहिष्णुता पे आधारित चर्चा में सलंग्न है. कुछ दुखद घटनाए हुई जो नहीं होनी चाहिए थी पर उनसे निबटने के तरीके और भी थें पर उसको राजनैतिक स्वरूप देकर लगभग अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बना दिया गया. ये पूरी बहस उतनी ही सतही है जितनी ओबामा का भारत दौरे के खत्म होने के बाद अपने देश में जाकर दिया गया वक्तव्य कि भारत में वर्तमान में फैली धार्मिक असहिष्णुता देखकर महात्मा गांधी को तकलीफ होती!! यद्यपि ओबामा जब तक भारत में थें तब तक इन्हें सब सही लगा लेकिन वाशिंगटन पहुँचते ही इनके सुर बदल गए. इस वक्त तो सभी राष्ट्रों में चर्चा इस बात पे होनी चाहिए कि पेरिस में आईएस के खतरनाक हमले के बाद किस तरह हम वो व्यवस्था करे कि पहले इस तरह का हमला ना हो और दूसरे किस तरह इस्लामी आतंकवाद को जड़ से उखाड़ फेंका जाए. लेकिन हमारे यहाँ के स्खलित बुद्धिजीवी निरर्थक चर्चा में सलंग्न है. अंग्रेजी में इसे मच अडू अबाउट नथिंग कहेंगे.

इसी वक्त हमारे सदन में संविधान के औचित्य और प्रासंगिकता पे माननीय प्रधानमन्त्री और अन्य सम्मानित सांसदों ने अपने बहुमूल्य विचार रखे. चर्चा के केंद्रबिंदु में तो इनके रखे विचार होने चाहिए थे जिसमे मोदी जी ने देश के सनातन धर्म की व्याख्या करते हुए कहा कि इस संस्कृति में एक ऑटो पायलट अरेंजमेंट मैकेनिज्म सरीखी व्यवस्था है जिसके तहत हमारी विरोधाभासो से भरे समाज में अच्छे लोग उभर कर भारतीय समाज को नयो दिशा दे जाते है. या ये कि भारतीय संविधान एक कानूनी दस्तावेज ही नहीं वरन एक सामजिक दास्तावेज भी है. लेकिन इन गंभीर बातो पे चर्चा के बजाये चर्चा एक निरर्थक बयान पे हो रही है. इस देश की सोच को बिकी हुई मीडिया संचालित करती है ऐसी सतही बहस को जन्म देकर.

अब आमिर खान की बात को पकड़ा जाए. फ़िल्म स्टार्स के बीच से उपजी बातो का ज्यादातर समय  कुछ सार नहीं होता सिवाय इसके कि इन्हें कुछ समय तक सनसनी या सुर्खियों में रहने का कुछ समय के लिए मौक़ा मिल जाता है. आपको याद है शाहरुख़ खान का लोकसभा चुनावों के दौरान दिया गया हुआ वो वक्तव्य जब देश में एक नयी बहस रूपी हवा चली थी कि नरेन्द्र मोदी के प्रधानमन्त्री बनने के बाद कौन देश में रहेगा कौन नहीं जिस वक्त अभी असहिष्णुता आधारित बहस की हवा चल रही है. तब शाहरुख़ ने कहा था वे देश में नहीं रहेंगे अगर मोदीजी प्रधानमंत्री बनते है!! तो क्या उन्होंने देश छोड़ा? नहीं ना!! इसी तरह आमिर खान की पत्नी ने उनसे क्या कहा और उन्होंने क्या सोचा ये एक अत्यंत निजी मसला है जिसको तो पहले तो सामने आना नहीं चाहिए था और अगर आ ही गया तो एक इतने बड़े मुद्दे के रूप में उभरना नहीं चाहिए कि इसको लेकर मुख्यधारा की मीडिया इस पर चर्चा करे. लेकिन इस पर चर्चा यूँ हो रही है जैसे आमिर खान ने बहुत बड़ा  रहस्योद्घाटन कर दिया हो!!  इन सतही बहसों से फायदा क्या होता है? सबसे बड़ा फायदा तो यही होता है कि गंभीर मुद्दों से ध्यान हट जाता है!! दूसरा प्रचार के भूखे या प्रचार आधारित जीवन शैली जीने वाले इन बकवास स्टार्स को  अस्तित्व में आने का मौका मिल जाता है. इसका नतीजा ये होगा कि इनके आने वाली फिल्मो या शोज को अपनी जड़े ज़माने में मदद मिल जाती है.

अंत में ये बेहद गंभीर बात. इन स्टार्स का क्या इस्तेमाल कब, क्यों और कैसे ये मुख्यधारा की मीडिया करती है इस पर मनन तो होता रहेगा लेकिन समय आ गया है ये हिन्दू युवक युवतियाँ इन्हें अपना आइकॉन मानना छोड़ दे खासकर “:लव जेहाद” जैसे प्रकरण सामने आने के बाद. ये “खान” स्टार्स अपनी फूहड़ फिल्मो के साथ किसी भी सभ्य हिन्दू समाज में कोई अहमियत नहीं रखते. आपको क्या लगता है ये “खान” स्टार्स कभी देश छोड़कर जाने की सोच सकते है? कभी नहीं. क्योकि इनके जैसे वाहियात स्टार्स की दूसरे देशो के असल स्टार्स की बीच कोई ख़ास पूछ होने वाली भी नहीं!! और वैसे कहा जायेंगे? पाकिस्तान, सीरिया, इराक या सऊदी अरब? क्या इन जगहों पे ये सेफ है या नहीं ये समझना छोडिये, पहले ये समझिये कि क्या किसी भी मुल्क में अमेरिका और ब्रिटेन को शामिल करते हुए इन्हें अपने  फिल्मो के चलाने वाले प्रशंसक मिलेंगे इनके फिल्मो के बकवास कंटेंट को देखते हुए? चेन्नई एक्सप्रेस, हैप्पी न्यू इयर, वांटेड या धूम ३ जैसे बकवास फिल्मे और कहा चल सकती है सिवाय भारत में!! इतना पैसा वो कहा बना सकते हैं! और ये सब हिन्दू लड़के लडकियों की मेहरबानी है कि इन जैसे बकवास स्टार्स को समर्थन देती है इनके फिल्मे देखकर. जिस दिन हिन्दू आधार इन्हें मिलना बंद हो जाएगा ये देश के बाहर रहे या भीतर ये प्राणविहीन हो जायेंगे!!

सो असल बात ये है कि खान ब्रिगेड से संचालित हर चीज़ को हिन्दू आधार मिलना बंद हो. पब्लिसिटी चाहे नकारात्मक हो या सकारात्मक आपको फायदा  देती है. ये रीढ़विहीन स्टार्स अच्छी तरह जानते है. ये कही नहीं जाने वाले. ये यही रहेंगे. यहाँ ये सेफ है और आर्थिक रूप से मजबूत है. ये हिन्दू आधार लेकर पनपते है और फिर विदेशी ताकतों का शह पाकर इसी हिन्दू आधार की जड़ काटते है. गलत ये नहीं है.  गलत हिन्दू लड़के और लडकिया है जो इन्हें सामजिक और आर्थिक हैसियत प्रदान करते है. हिन्दू आधार पे निर्भर रहने वाले इस तरह के स्टार्स को जिस दिन हिन्दू समाज प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन देना बंद कर देगा उस दिन के बाद से इनकी हैसियत कुछ भी नहीं रहेगी. अब यही करने की जरुरत आ गयी है. आमिर खान के वक्तव्य का सही जवाब यही है. सही प्रतिरोध यही है. 

Pic One

आमिर खान: गम्भीर समस्याओ को समोसा चटनी न बनाये तो बेहतर होगा!

देश की फिक्र के लिए क्या बस ऐसे ही लोग मिले थें?

देश की फिक्र के लिए क्या बस ऐसे ही लोग मिले थें?

मुझे सत्यमेव जयते कार्यक्रम के फॉर्मेट से बेहद आपत्ति है. इस तरह के कार्यक्रम जटिल समस्यायों को सिर्फ समोसा -चटनी के सामान चटपटा बनाकर पेश करने का माध्यम बन गए है. इस से गम्भीर समस्या के और जटिल संस्करण उभर के आते है. आमिर टाइप के कलाकारो का क्या नुक्सान हुआ? कुछ नहीं: महँगी फीस बटोरो और तथाकथित जागरूक इंसान का अपने ऊपर ठप्पा लगवाकर चलते बनो और जा पहुचो देश की फिक्र करने किसी कोक-शोक की दूकान पर. ठेस और चोट उनको पहुचती है जिनकी संवेदनशीलता का भद्दा मजाक बनाकर इस तरह के कार्यक्रम सफलता के पायदान चढ़ते है. आमिर टाइप के लोग कलाकारी अगर बड़े परदे पर करे वही उनको शोभा देता है. गम्भीरता का पुतला बनने की कोशिश छोड़ दे. कम से कम आमिर टाइप के कलाकार ये कोशिश ना ही करे तो बेहतर होगा.

संवेदनशील मुद्दो की या देश की फिक्र करने के लिए इस देश में वास्तविक गम्भीर दिमागो की कोई कमी नहीं. फिर ये समझ से परे है कि दूरदर्शन जैसे सम्मानित सरकारी माध्यम क्यों इस तरह के सतही लोगो को गम्भीर मुद्दो पर विचार विमर्श करने के लिए बुलवाते है? एक बात और समझना बेहद जरूरी है: क्या गम्भीर समस्याओ को ग्लैमरस रूप देना जरूरी है? क्या यही एक सार्थक तरीका बचा है गम्भीर मुद्दो के साथ न्याय करने का? कुल मिला कर इस बात को महसूस करना बेहद जरूरी है कि अगर आप वाकई देश की फिक्र करते है तो उनका सम्मान करे जो सम्मान के योग्य है. इनको बुलाये और ये आपको बताएँगे कि किसी संवेदनशील मुद्दे पर क्या रूख रखना चाहिए. और अगर सही लोगो को बुलाकर चीज़ो को सही सन्दर्भ में समझने का धैर्य नहीं है तो कम से कम आमिर जैसे लोगो को बुलाकर गम्भीरता का मज़ाक ना बनवाये. इतना तो किया जा सकता है कि नहीं?

 अगर सही लोगो को बुलाकर चीज़ो को सही सन्दर्भ में समझने का धैर्य नहीं है तो कम से कम आमिर जैसे लोगो को बुलाकर गम्भीरता का मज़ाक ना बनवाये। इतना तो किया जा सकता है कि नहीं?

अगर सही लोगो को बुलाकर चीज़ो को सही सन्दर्भ में समझने का धैर्य नहीं है तो कम से कम आमिर जैसे लोगो को बुलाकर गम्भीरता का मज़ाक ना बनवाये। इतना तो किया जा सकता है कि नहीं?

पिक्स क्रेडिट:

तस्वीर प्रथम

Vividh Bharati Should Now Be Either Known As Rafi Bharati or Vigyapan Bharati!

Prasar Bharati: Dictated By Propaganda!

Prasar Bharati: Dictated By Propaganda!


Sometimes you avoid taking note of an important development, treating it to be a passing affair-something born out of coincidence. However, that’s not always the case. The hindsight, sooner or later, proves beyond doubt that this development was part of some prevailing well-executed pattern. The people involved in projecting such pattern try their level best to make you feel as if all is taking place naturally but is it possible for a pregnant lady to hide her pregnancy status for long? There comes a point when you cannot lie any further.   

 
I am great fan of Rafi but the way his songs are being played in atrocious manner, on the Vividh Bharati, really makes me sad. The Vividh Bharati has stooped down to all time low dirty manipulations, being dictated by propaganda, sponsored by people behind the curtain. The songs of Rafi are being virtually pushed down your throat 24/7. It appears Vividh Bharati is not in mood to tolerate even those listeners, who have somehow managed to boast of their affiliation with this great institution of yesteryear. It’s no secret that majority of listeners have already given way to other channels, being disappointed over its functioning style. Anyway, anyone aware of how the bureaucratic mind functions in this nation, are not at all surprised over the falling standards.                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      
Not a long time ago, a beautiful female voice, probably from Indore, registered her protest in a strong way in one of the programmes based on listener’s choice. She said: ” You people ( the announcers) are constantly playing cheap numbers, all in the name of listener’s choice, but it appears to me that there’s more than meets the eye. It’s simply not possible that these tasteless numbers have replaced haunting melodies of yesteryear without shrewd maneuvering.” I was really inspired by her bold outburst but   constraints of time prevented me from having a take on the whole issue in a strong way. Given the unholy nexus, which prevails inside the corridors of the Vividh Bharati, a strong protest has become need of the hour. That’s because silence at this moment would appear criminal. How can any conscious listener keep quiet, over this drama, taking place inside the studios of Vividh Bharati?  

Earlier it appeared that royalty might be the reason why songs of Rafi were being played in this mindless fashion. However, it’s just the tip of the iceberg. At this point of time, when India stands on the threshold of embracing some bold changes, the old minds refuse to part ways with mediocre means, which keep intact their lust for power. Remember, when governments change, the premier government bodies also shift their loyalties. There is a major overhaul within all government bodies, and key positions get shifted to people in tune with the agenda of government. The same thing has taken place inside Vividh Bharati as well.  It’s not presenting programmes: It’s sponsoring propaganda.What else could one assume after presentation of Baba Azmi- Shabana Azmi’s interview on the eve of Bhaiyya Dooj -a Hindu festival dedicated to celebration of bonding that exists between sisters and brothers? 

If these dirty tricks were not enough, it now gave way to subtle form of marketing. Sample this: The interview of Aamir Khan was presented at a time when Aamir Khan’s movie was scheduled to be released the very next day. The interview which was in two parts, ended on November 29, 2012 and the movie Talash got released on November 30, 2012. Is that’s the way a government body should function in this nation, which boasts of secular credentials?
 
The job of government institution is to function in impartial manner, without offering undue advantage to any particular group in name of religion etc. After all, if the approach gets biased, how are we supposed to get real information? The Vividh Bharati is one of the few institutions, which enjoy close rapport with people living in remote areas of India, and so it’s an ideal medium to apprise people about key issues in honest manner, so that they can have real picture- the ultimate truth. But now I have every reason to believe that it’s now no longer reliable. More so, in the wake of Rafi madness, which has led to marginalization of all other geniuses in the world of movie and music. It has gagged the voice of other beautiful singers.
 
In fact, its foreign counterpart, Radio Ceylon, is performing superbly. Not only it’s sincerely devoted to the cause of music but also it’s picture of perfection in presentation of programmes. It’s not insensitive in suggesting conscious listeners that minting money is the first choice of commercial services! A senior journalist from my city, Allahabad, is pretty shocked about Vividh Bharati’s new-found love for lowering the volume of song and subsequent announcement of details, the moment a song gets played. Above all, he is unhappy with the current lot of announcers, who have little patience for presentation of necessary details. Unfortunately, his demand to make the presentation of details, for one more time, at the end of each song, has fallen on deaf ears. 

Anyway, if one is unsure about the credibility of facts presented in this article, why not tune in to Vividh Bharati and check out the facts for yourself? And, I am sure listeners would not fail to notice insipid Rafi numbers, vulgar modern numbers, programme carved to  sell a product, or if all these three are missing, then be prepared to be tortured by a repeat telecast! I think it’s time for the Vividh Bharati to have a new name: Vigyapan Bharati or Rafi Bharati! Anyway, it’s time for sincere lovers of Vividh Bharati to find solace in singing of Begum Akhtar, crooning straight from the heart “Aye Mohabbat Tere Anzam Pe Rona Aaya”.

Reference: 

Vigyapan= Commercial

Pics Credit:

Pic One

प्रसार भारती विविध भारती का नाम बदल कर रफ़ी भारती या विज्ञापन भारती क्यों नहीं कर देती?

प्रसार भारती विविध भारती का नाम बदल कर रफ़ी भारती या विज्ञापन भारती क्यों नहीं कर देती?

प्रसार भारती विविध भारती का नाम बदल कर रफ़ी भारती या विज्ञापन भारती क्यों नहीं कर देती?


कभी कभी आप चीजों को आप ये कह के गौर नहीं करते कि चलिए हो सकता है ये महज एक इत्तेफाक हो। लेकिन आप ध्यान दे तो आप पायेंगे कि सब में एक  वीभत्स पैटर्न शामिल है। कोशिश लोगो की जो इस पैटर्न को परदे के पीछे रह के चला रहे है ये यही होती है कि आपको खबर न लगने पाए मगर एक प्रेग्नेंट औरत कब तक ये झूठ बोल सकती है कि डिलीवरी जैसी कोई बात नहीं। मै खुद रफ़ी के गीतों को बहुत पसंद करता हूँ पर ये रफ़ी के नाम पर जो तमाशा विविध  भारती पर हो रहा है वो दुखद है। हद हो गयी है कि किसी न किसी बहाने रफ़ी के गीतों को प्रोग्राम कोई हो आप पे थोप दिया जा रहा है। शायद विविध भारती अपने बचे खुचे श्रोताओ को भी अपने चैनल से भगाना  चाहता है। सरकारी दिमाग ऐसे ही काम करते है।

बहुत पहले किसी महिला श्रोता ने सुंदर आवाज़ में पर बुलंद तरीके से अपनी शिकायत एक फरमायशी प्रोग्राम में रखी थी जो शायद इंदौर से थी  कि “विविध भारती पे आप जो ये लगातार नए गीत ये कह के बजा रहे कि लोगो ने आपसे कहे है ये सब मुझे सुनियोजित लगता है  क्योकि इतने बड़े पैमाने पे लगातार सिर्फ इसी टाइप के फूहड़ नए गीतों का बार बार बजना और अच्छे पुराने गीतों का बिल्कुल ही गायब हो जाना ये सिर्फ लोग ऐसा चाहते है ये ही एक वजह नहीं हो सकती।”  उस की बातो से मै पूरी तरह से इत्तेफाक रखता था क्योकि मुझे भी ऐसा एहसास हो चला  था। पर समयाभाव के कारण कुछ लिख नहीं पाया और बात आई गयी हो गयी। लेकिन अब लगता है कि विविध भारती ने सभ्य हदों को पार कर दिया है सो ख़ामोशी अब क्रिमिनल हो जायेगी।

पहले लगता था कि रायल्टी एक वजह हो सकती है कि सिर्फ रफ़ी ही रफ़ी विविध भारती के फलक पर उभरे लेकिन बात इससे भी आगे की है। इस वक्त संस्था में वही गणित काम कर रहा है कि जब सरकारे बदलती है तो आपके अपने ख़ास आदमी महत्त्वपूर्ण संस्थानों पर काबिज हो जाते है फिर कोई काम नहीं होता है सिर्फ वही बाते होती है जो प्रोपगंडा चाहता है। इस वक्त विविध भारती पर यही हो रहा है। और विविध भारती पर मार्केटिंग का भी भूत शामिल हो गया है उसकी एक झलक आप को  इस उदहारण से मिल सकती है कि आमिर खान का इंटरव्यू प्रसारित होता है “तलाश” के रिलीज़ के वक्त। क्या सरकारी संस्थाएं ऐसे काम  करती है? लेकिन विविध भारती भी इसी गंदे समीकरणों में शामिल गया ये बहुत दुखद है। क्योकि आम जनता के पास ये करीब था तो उनको सच बताने की जिम्मेदारी बनती थी या अच्छा मनोरंजन जिसमे सभी प्रतिभाशाली गीतकारो संगीतकारों, गायकों का जिक्र सामान रूप से होता पर रफ़ी नाम का ढोल पीटने का ठेका विविध भारती ने ऐसा ले लिया है कि कोई और आवाज़ उभर ही नहीं रही है। 

इससें कही अच्छा काम रेडियो सीलोन पर होता है। वे अपने देश के नहीं होते हुएं भी संगीत के प्रति ईमानदार  है, संवेदनशील है। कम सुने हुए गुणी संगीतकारों को हमेशा उभारते है उनका उल्लेख  करके, उनके अच्छे कामो का उल्लेख करके समय से। विविध भारती पर ठीक इसका उल्टा हो रहा है। कमर्शियल सर्विसेस के नाम पर अच्छे गीतों को काट पीट कर विज्ञापन बजाये जाते है। किसी को लेख की प्रमाणिकता पर संदेह हो तो विविध भारती चैनल ट्युन करके के देख ले अगर वाहियात नए गीत नहीं  बज रहे होंगे तो निश्चित ही रफ़ी का कोई गीत या विज्ञापन बज रहा होगा, मार्केटिंग चल रही होगी, कोई  पुराना प्रोग्राम रिपीट हो रहा होगा। तो क्यों नहीं प्रसार भारती विविध भारती का नाम विज्ञापन भारती या रफ़ी भारती रख देती है? विविध भारती से अपने प्रेम को लेकर बेगम अख्तर की यही  ग़ज़ल गूँज रही है कि “ए मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया”. 
 

Pics Credit:

Pic One 

डी के बोस उर्फ़ आमिर खान: भ्रूण हत्या सत्यमेव जयते की !!

भ्रूण हत्या सत्यमेव जयते की !

भ्रूण हत्या सत्यमेव जयते की !


मै अगर कुछ कहता हूँ तो उसके आशय बहुत सारे निकल लिए जाते है.  इसलिए मै कुछ कहने के बजाय अब तक मौन ही था इस सत्यमेव जयते तमाशे पर. अखरता बहुत है जब देखता हूँ भांड टाइप के लोगो को संवेदनशील विषयो पर बोलते हुए.  उस पर भी ये और ज्यादा अखरता है कि जो मीडिया आलोचक की मुद्रा में आ जाता है जब कोई विशेषज्ञ इन विषयो पर अपनी राय प्रकट करता है आज इस सतही आयोजन को बहुत सराह रहा है गोया इसके पहले कभी किसी ने इन मुद्दों पर गौर ही ना किया हो?

मै अब भी कुछ नहीं कहता अगर मेरे पत्रकार मित्र आवेश तिवारीजी, एडिटर इन चीफ नेटवर्क सिक्स, के फेसबुक पेज पर मुझे ये शीबा असलम फहमी का लिखा हुआ सन्देश ना पढने को मिला होता. बिल्कुल ठीक प्रतिक्रिया दी है शीबा ने.  मुझे सिर्फ इतना ही कहना है कि कम से कम सतही लोग संवेदनशील मसलो   से अपने को दूर रखे क्योकि उनकी नीयत पे यकीन करना बिल्कुल असंभव काम है.  आमिर एक अच्छे अभिनेता है लिहाज़ा फिल्मो पे ध्यान दे. गंभीर विषयो पे विचार विमर्श करने के लिए अभी इस देश में विद्वानों का अकाल नहीं पड़ा   है जो हम डी के बोस टाइप के लोगो को गंभीरता से सुनने का प्रयास करे.  ये काम मीडिया में फैले दलालनुमा पत्रकार करते रहे.

शीबा असलम फहमी ने ये कहा:

” बोस डी के, आमिर!

ये वही आमिर खान हैं ना जिन्होंने अपनी एक फ़िल्म में कामयाबी का मसाला डालने के लिए महिला जननांग को दी जानेवाली भद्दी गाली पर एक गाना बनाया और उस गाने को फ़िल्म की पब्लिसिटी में सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किया था ? आमिर खान से मेरा सवाल है की कोई कैसे एक महिला का बाप या भई बनने की हिम्मत करे जब इसी कारण उसे गाली से नवाज़े जाने की संभावना बनती हो? आज वे 3 करोड़ प्रति एपिसोड की दर से नारी-चिंता में कामयाबी के झंडे गाड़ रहे हैं. महिलाओं के ज़रिये कामयाब होना है बस, ‘वैसे’ नहीं तो ‘ऐसे’! पहले गाली दे कर, अब गाली दी गई औरत पर ग्लीसरीन बहा कर! ताज्जुब ये की बड़े-बड़े पत्रकार और लेखक भी इस आमिर-गान में पीछे नहीं! बोस डी के, याद आया ! “

इस पर मधुकर पाण्डेय ने ये जोरदार टिप्पणी दी:

” अब मेरे ख्याल में इन्हें अगला एपिसोड उस विषय पर करना चाहिए जिसमें दो-दो तीन तीन बच्चे पैदा करने के बाद एक मर्द अपनी पत्नी को तलाक तलाक तलाक कह कर … उन्हें अंधेरों में भटकने को छोड़ देता है…. और किसी दूसरी औरत से शादी रचा लेता है…….

यह और कुछ नहीं बाजारवाद और राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं (राज्य सभा ) का एक खेल है…..जिसमें भोली जनता बेवकूफ बनायीं जा रही है पर अब लोग ज्यादा मूर्ख नहीं बन सकते…..क्या आमिर खान कश्मीर से पलायन को विवश हुए कश्मीरी पंडितों की समस्याओं को भी इसी शिद्दत से उठायेंगे…क्या वे गोधरा की ट्रेन में मारे गए उन ५० से अधिक मृतकों के घर जाकर हाल चाल पूछेंगे….? सब माया है…सब बाज़ार है…

Reference:

Dainik Bhaskar

Satyamev Jayate

Pics Credit:

Pic One 

The great Rudolf Steiner Quotes Site

Over 1600 quotes from the work of the great visionary, thinker and reformer Rudolf Steiner

The Rudolf-Rudi doctrine of Spiritualism

Rudolf is reborn as Rudi to describe the spiritual connection between the Cell and its Energy Provider to account for the complex phenomenon called existence.

Serendipity

Was I born a masochist or did society make me this way?

SterVens' Tales

~~~In Case You Didn't Know, I Talk 2 Myself~~~

Indowaves's Blog

Just another WordPress.com weblog

Una voce nonostante tutto

Ognuno ha il diritto di immaginarsi fuori dagli schemi

Personal Concerns

My Thoughts and Views Frankly Expressed

the wuc

a broth of thoughts, stories, wucs and wit.

A Little Bit of Monica

My take on international politics, travel, and history...

Peru En Route

Tips to travel around Perú.

Health & Family

A healthy balance of the mind, body and spirit

मानसिक हलचल

प्रयागराज और वाराणसी के बीच गंगा नदी के समीप ग्रामीण जीवन। रेलवे के मुख्य परिचालन प्रबंधक पद से रिटायर अफसर। रेल के सैलून से उतर गांव की पगडंडी पर साइकिल से चलता व्यक्ति।

Monoton+Minimal

travel adventures

Stand up for your rights

Gender biased laws

The Bach

Me, my scribbles and my ego

Tuesdays with Laurie

"Whatever you are not changing, you are choosing." —Laurie Buchanan

The Courage 2 Create

This is the story of me writing my first novel...and how life keeps getting in the way.

A Magyar Blog

Mostly about our semester in Pécs, Hungary.