आमिर खान: गम्भीर समस्याओ को समोसा चटनी न बनाये तो बेहतर होगा!
मुझे सत्यमेव जयते कार्यक्रम के फॉर्मेट से बेहद आपत्ति है. इस तरह के कार्यक्रम जटिल समस्यायों को सिर्फ समोसा -चटनी के सामान चटपटा बनाकर पेश करने का माध्यम बन गए है. इस से गम्भीर समस्या के और जटिल संस्करण उभर के आते है. आमिर टाइप के कलाकारो का क्या नुक्सान हुआ? कुछ नहीं: महँगी फीस बटोरो और तथाकथित जागरूक इंसान का अपने ऊपर ठप्पा लगवाकर चलते बनो और जा पहुचो देश की फिक्र करने किसी कोक-शोक की दूकान पर. ठेस और चोट उनको पहुचती है जिनकी संवेदनशीलता का भद्दा मजाक बनाकर इस तरह के कार्यक्रम सफलता के पायदान चढ़ते है. आमिर टाइप के लोग कलाकारी अगर बड़े परदे पर करे वही उनको शोभा देता है. गम्भीरता का पुतला बनने की कोशिश छोड़ दे. कम से कम आमिर टाइप के कलाकार ये कोशिश ना ही करे तो बेहतर होगा.
संवेदनशील मुद्दो की या देश की फिक्र करने के लिए इस देश में वास्तविक गम्भीर दिमागो की कोई कमी नहीं. फिर ये समझ से परे है कि दूरदर्शन जैसे सम्मानित सरकारी माध्यम क्यों इस तरह के सतही लोगो को गम्भीर मुद्दो पर विचार विमर्श करने के लिए बुलवाते है? एक बात और समझना बेहद जरूरी है: क्या गम्भीर समस्याओ को ग्लैमरस रूप देना जरूरी है? क्या यही एक सार्थक तरीका बचा है गम्भीर मुद्दो के साथ न्याय करने का? कुल मिला कर इस बात को महसूस करना बेहद जरूरी है कि अगर आप वाकई देश की फिक्र करते है तो उनका सम्मान करे जो सम्मान के योग्य है. इनको बुलाये और ये आपको बताएँगे कि किसी संवेदनशील मुद्दे पर क्या रूख रखना चाहिए. और अगर सही लोगो को बुलाकर चीज़ो को सही सन्दर्भ में समझने का धैर्य नहीं है तो कम से कम आमिर जैसे लोगो को बुलाकर गम्भीरता का मज़ाक ना बनवाये. इतना तो किया जा सकता है कि नहीं?

अगर सही लोगो को बुलाकर चीज़ो को सही सन्दर्भ में समझने का धैर्य नहीं है तो कम से कम आमिर जैसे लोगो को बुलाकर गम्भीरता का मज़ाक ना बनवाये। इतना तो किया जा सकता है कि नहीं?
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