किस्सा इलाहाबादी डीलिंग का ! (व्यंग्य लेख)

इलाहाबाद की जय हो:-)

हमारा इलाहाबाद विविधताओ का शहर है. यहाँ का सब कुछ एक ख़ास रंग में ढला है.  इलाहाबाद के साहित्यिक और सांस्कृतिक उपलब्धियों से तो आप परचित है ही पर आपका पाला कभी ‘ इलाहाबादी डीलिंग’ से पड़ा है ? आप चौक गए ना कि आखिर ये क्या बला है? आपका चौकना स्वाभाविक है. सबके बूते के बाहर है इसकी  महिमा को समझ पाना पर यहाँ के वाशिंदे इस कला  में पारंगत है और इसका  रस लेना खूब जानते है.  इस शहर में सफलता इस बात पे निर्भर करता है कि डीलिंग पर  पकड़ आपकी कितनी है. सही डीलिंग अगर आपको शिखर पर बैठने कि क्षमता रखती है तो गलत डीलिंग की वजह से आपकी अच्छी खासी किरकिरी भी हो सकती है.  डीलिंग में सारा कमाल आपके वाक् कौशल पर निर्भर होता है.

आइये इसके सूक्ष्म पहलुओ पर एक नज़र डाले. वैसे इसका स्वरूप कुछ निश्चित नहीं पर फिर  भी इसके कुछ गुण इसके आवश्यक तत्त्व के रूप में निर्धारित किये जा सकते है. जहाँ तक डीलिंग की परिभाषा का सवाल है बस इतना समझिये कि यह निरर्थक बातो का ऐसा मायाजाल है जिसमे सार कुछ भी न हो  पर आप तब भी उसका कुछ अर्थ निकलने को विवश हो जाए. जिस प्रकार ध्याता ,ध्येय और ध्यान की प्रक्रिया ध्यान का हिस्सा होती है उसी प्रकार डीलिंग प्रोसेस में डीलिंग देने वाला ,डीलिंग लेने वाला और वह विषयवस्तु जिसको आधार बनाकर डीलिंग को गति प्रदान की जाती है आवश्यक  है. सफल डीलिंग वो है जिसमे डीलिंग का शिकार या समझ ही ना पाए कि उसके साथ कुछ अनहोनी घट गयी है.  सफल डीलिंग राहू ग्रह के प्रभाव की तरह होती है. मतलब यह कि कुछ नहीं होते हुए भी आप गुब्बारे की तरह फूलने को विवश हो जाते है. असली कारण  तो  खैर  राहु की छाया की  तरह पकड़ के बाहर होता है पर आपकी सिकुड़ी शक्ल जरुर सबके सामने प्रत्यक्ष होती है.

डीलिंग किस वक्त की जाए इसका निर्णय माहौल के अनुरूप तय होता है. हवा के रुख के हिसाब से बात करने वाले कब वार्तालाप को डीलिंग में परवर्तित कर देते  है इसका आभास भी  नहीं लग पाता. डीलिंग में स्थान का कोई महत्त्व नहीं है. राह चलते ,ढाबो पर ,नुक्कड़ पर ,घर के ड्राइंग रूम में हर जगह डीलिंग सहूलियत के साथ हो सकती है  बशर्ते आप के अन्दर एक पेशेवर डीलिंगबाज़ की आत्मा विद्यमान हो. भावनात्मक और बौद्धिक  दो प्रकार की डीलिंग ज्यादातर देखने में आती है. इसी दो श्रेणियो के अंतर्गत साधारण और विशिष्ट प्रकार की भी डीलिंग आती है. अब जैसे इन्हें ही ले लीजिये.इनको आसानी से डीलिंग गुरु की संज्ञा दी जा सकती  है. कठिन  होता है ये बता पाना कि कब ये डीलिंग नहीं कर रहे होते है. भावनात्मक डीलिंग में तो इनका कोई जवाब नहीं. हर वक्त हर जगह ये डीलिंग कर लेने में ये सक्षम है. जिससें ये मिलते है वो डीलिंग ग्रस्त हो जाता है.  डीलिंग ग्रस्त माने जब आप अपने किसी ख़ास परिचित से मिले और वो आपको देखकर नाना प्रकार के विचित्र भावो में एक  साथ डूबने इतराने लगे तो समझिये वो डीलिंग का भयंकर शिकार हुआ है.

अब टाईफाईड की बिमारी की तरह उसका इस से कुछ समय तक छूट पाना असंभव है. ये जनाब प्रोफ़ेसर से लेकर पत्रकार तक सब में डीलिंग के कीटाणु डालने में सक्षम है.  मजाल है इनका कोई भी वार खाली जाए. वैसे ये खुद भी डीलिंग के शिकार कई बार हो चुके है.  ऐसे ही एक बार जब अपने मित्र के हाथ में पट्टी बंधे होने का कारण पूछा तो जवाब सूनकर ये चारो खाने चित्त हो गए.’ यार कुछ मत पूछो!  कल रात को जब मै घर वापस लौट रहा था तो कुछ अति खतरनाक गुंडों  ने मुझ पर हमला कर दिया. उन्होंने तड़ातड़ मुझपर कई फायर किया. सब गोलिया तो इधर उधर से निकल गयी पर एक कमबख्त मेरे बाजू को चीरते हुए निकल गई’.  इनके मित्र एक झोंक में सब उगलकर चलते बने. हकीकत जबकि कुछ और ही थी.  करेंट के तेज़ झटके के कारण फिसलकर गिर पड़ने के कारण इनके कंधो में साधारण सी मोच आ गई थी.  देखा आपने यथार्थ और कल्पना का ये कितना सुन्दर उदहारण है. इसी अद्भुत सम्मिश्रण की कला में पारंगत होने के कारण इन्होने डीलिंग गुरु होने का अधिकार पा लिया है.

खैर आइए देखे मेरे एक पत्रकार मित्र किस तरह बौद्धिक डीलिंग करते है. हर आधुनिक बुद्धिजीवी की तरह इन्हें भी बुद्धि का बेजा इस्तेमाल करने की बुरी आदत है.  ये इतनी अदा से बौद्धिक  डीलिंग करते है कि कलात्मकता में सचिन का चौका भी कुछ नहीं.  ऊपर से अत्यंत शांत प्रतीत होने वाले ये सज्जन शिकार की तलाश  में अंदर से  उतने ही बेचैन रहते है. आइए जरा बौद्धिक डीलिंग से रूबरू हो ले.  इनसे जब मेरी मुलाकत होती थी तो ये जनाब अंग्रेज़ी की डिक्शनरी खोल के बैठ जाते थे और उन शब्दों का अर्थ बताते थे जिसका इस्तेमाल कोई भूले से भी ना करना पसंद करे.  पर ये जरूर करेंगे क्योकि इन्हें वो सब पसंद है जो कोई नही करता. थाईलैंड जिसको सिर्फ मै एक देश के रूप में ही जानता था इनके पास जाकर ही मुझे इस थाईलैंड शब्द का एक विशिष्ट  गूढ़  अर्थ प्राप्त हुआ!  बुद्धिजीवी आज उन्हें ही माना जाता है जिनके पास इस प्रकार के शब्दों का भण्डार हो.  हा तो मै ये बता  रहा था कि ये जनाब मेरे लिए कितना कष्ट उठा रहे थे.  लगा कितनी चिंता है इन्हें मेरे अल्प शब्द भण्डार की.  मेरे वोकेब्लरी की.  पता नहीं इनकी इस उदारता का का ऋण कभी उतेरगा की नहीं. पर एक दिन मुझे एक इंस्टंट बोध हुआ और इस प्रक्रिया का सारा रहस्य सामने आ गया और फिर मुझ ये समझते देर ना लगी कि यह अपने विकृति को ट्रान्सफर करने की कवायद भर थी.

जहाँ तक  विशिष्ट प्रकार की डीलिंग का प्रश्न है इसका इस्तेमाल राजनीति और प्रशासन के आलावा धर्म के क्षेत्र में भी व्यापक इस्तेमाल होता है.  यहाँ ये बताना जरूरी है की बुद्धि और भावुकता के मिश्रण के की अग्नि पर विशिष्ट डीलिंग पकती है.  इसकी झलक पाने के लिए आपको किसी तथाकथित सिद्ध के आश्रम में जाना पड़ेगा. आपको वहां  बताया  जायेगा कि किस तरह से इन्होने अनगिनत सिद्धियाँ हासिल की.  और फिर तुरंत हिमालय से सीधे शहर में कैश कराने आ गए. शिष्य वातावरण को हिट बनाने की कोशिश में आपके पास मंडराने  लगते है. ‘ अब इनकी महिमा को कौन समझ सकता है.  पल में ये ना जाने ये किसको गद्दी पे बिठा दे’.  शिष्य विचित्र भावो को चेहरे पे बिखेरकर एक ख़ास प्राकर के  विस्मय बोध के साथ नए मुर्गो को इसी प्रकार दाना  चुगाते है. अब जो धर्म को व्यर्थ की जगह जाकर तलाशेंगे तो और क्या हाथ लगेगा ऐसे फूहड़ अनुभवों के अतिरिक्त. थुलथुल मोटे आसामी विशिष्ट डीलिंग के सबसे आसान शिकार है.  अगर कोई अचानक माला फेरने लग जाए और घोर संसारी होते हुए भी वैराग्य की बात करने लगे तो समझिये विशिष्ट डीलिंग का तीर आर पार हो गया है.

चलते चलते ये बता देना जरूरी है कि यह व्यंग्य लेख परसाई  जी की आत्मा से मुलाक़ात का परिणाम है जो इसे लिखने का टिप्स देकर हवा में विलीन हो गई!
 

इलाहाबादी चहल पहल डीलिंग  के बीच :-)

इलाहाबादी चहल पहल डीलिंग के बीच 🙂

 

(मेरा ये व्यंग्य लेख सर्वप्रथम “आज” दैनिक जो  वाराणसी से प्रकाशित होता है में १ ५ अप्रैल २००४ को छपा था )

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