
मुझे पुरुषो से नफरत है!
भाई देखिये विशेषज्ञ टाइप के लोग जो भरी भरकम शब्दावली में यकीन रखते है इस लेख से दूर रहे. एक सीधे साधे मनइ (आदमी) की हल्की सी ये कोशिश है इस गंभीर विषय को गैर पारंपरिक तरीके से समझने या समझाने की. कहने को तो नारी मुक्ति की पटकथा रची गयी स्त्री के अस्तित्व को नए मायने देने के लिए पर अगर भारत के परिपेक्ष्य में देखा जाए तो नारी मुक्ति ने वही काम किया है कि मर्ज़ बढ़ता ही गया ज्यों-ज्यों दवा की. जैसे कोई बिल्ली पाल ले चूहे मारने के लिए और बिल्ली आतंकी हो जाए. तो क्या मै यह कहना चाहता हू कि नारी मुक्ति आंदोलनों या नारी विमर्शो की भारत में कोई जरूरत नहीं थी? ऐसा नहीं पर शायद हमको पश्चिमी मानकों पे आधारित माडल को अपनाने कि बजाय इस देश के अनुरूप ही कोई ढांचा विकसित करना चाहिए था. इसके आभाव में हुआ ये कि कहने को तो नारी मुक्ति यहाँ के औरतो की समस्यायों को सुलझाने का प्रयत्न करती है पर असलियत में माडल वही है जो पश्चिमी जगत में व्याप्त है. इसका नतीजा यह हुआ है की आज पुरुष औरतो के सहयोगी नहीं “नैचुरल एनेमी” बन के उभर रहे है. दोनों के रिश्तो में प्रेम नहीं प्रतिस्पर्धा बढ रही है. विश्वास की जगह संदेह ने ले ली है. एक नारी मुक्ति प्रेमी नारी का कहना है की ये बात बिल्कुल झूठ है कि भारत में नारी आन्दोलन का स्वरूप आयातित है. मै कहता हू कि ये सफ़ेद झूठ है. अगर आयातित नहीं है तो आज जो हमारे यहाँ के औरतो में लक्षण उभर रहे है या जो समस्याए सामने आ रही है वो बिल्कुल ठीक वैसे ही क्यों है जो कि पश्चिमी जगत वर्षो से भोग रहा है ?
ये माना कि यहाँ कि औरते भी तमाम समस्यायों से ग्रस्त है पर क्या यही एक वजह काफी थी आँख मूंदकर नारी मुक्ति के लहर में बहने की ? मै ये जानना चाहूँगा की नारी मुक्ति के व्यर्थ प्रपंचो से भारतीय समाज को क्या उपलब्धि हासिल हुई है सिवाय इसके की समाज का बिखराव और सुनिश्चित हुआ है. मै नहीं समझता हू कि अगर भारतीय नारिया अगर आज विभिन्न क्षेत्रो में विकसित आत्मविश्वास से काम में जुटी है तो इसमें नारी मुक्ति आन्दोलनों का कोई योगदान है. ये भारतीय समाज का नैसर्गिक विकास क्रम है जिसमे स्त्रीयों ने हमेशा महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है इस तथाकथित “पितृसत्तात्मक ” समाज में. ये सही है की बढ़ता लिंगानुपात, भ्रूण हत्या , दहेज़ हत्या, बलात्कार या और पीछे जाए तो सती प्रथा जैसी समस्याए हमारे अपने समाज का हिस्सा है पर सोचने की बात ये है की क्या इनके निदान के लिए हमे नारी मुक्ति जैसे विदेशी नशे का सहारा लेना पड़ेगा. या इस विदेशी नशे के देशी ब्रांड के सहारे रहना पड़ेगा. चलिए अगर विदेशी ब्रांड के देशी संस्करण से ही अगर भारतीय नारी मुक्त होगी तो हमे कोई शिकायत नहीं पर समस्या ये है कि इसके जो भयानक साइड एफ्फेक्ट है उनसे कौन छुटकारा दिलाएगा?
चलिए भारतीय नारी तथाकथित “पितृसत्तात्मक” पंजो से मुक्त से धीरे धीरे मुक्त हो रही है पर मुक्त होके जो नए विकार थोप रही है उनसे इस भारतीय समाज को कौन मुक्ति दिलाएगा ? शायद ये इसी नारी मुक्ति का परिणाम है की पुरुषो को स्त्री अत्याचार से बचाने या पीडितो के लिए शहरो में नए नए हेल्प लाइन केंद्र खुल रहे है. एक नारी मुक्ति प्रेमी महिला का कहना है की भारतीय नारी मुक्ति पुरुषो की भी समस्याओ का अवलोकन करता है और उनकी भी बेहतरी के रास्ते सुझाता है. डोस तो उन्होंने मीठा दिया पर है ये मीठे जहर से भी खतरनाक. मुझे बहुत ख़ुशी होती अगर नारी मुक्ति सच में नारी की समस्यायों को हल कर रही होती. लेकिन सच्चाई कडुवी है. असल में नारी मुक्ति सेकुलर गिरोह की रखैल बन के रह गयी है. इसका काम केवल समाज को तोड़ने का रह गया है ताकि असंतोष व्याप्त हो जो इनके हिसाब से क्रांति का माहौल तैयार करता है. इसी माहौल में इनका गेम संभव है. स्त्रीयों को बिना बरगलाये ये काम संभव नहीं. स्त्रीयों को बरगलाने में सिद्ध सेकुलर गिरोह ने कम से कम स्त्री जाति का महत्व इस मामले में समझा की सत्ता तक पहुचने में ये अच्छा माध्यम बन सकती. नारी मुक्ति से अच्छा आड़ इसे और क्या मिल सकता था. सो अच्छे के भेष में समाज को तोड़ने का काम हिट हो गया.

बुरका महिलाओ की आज़ादी दर्शाता है 🙂
इसके लिए विदेशी या सेकुलर संस्थानों से पढ़े लेखको या बुद्धिजीवियों की जमात ने पहले भारतीय समाज की भ्रामक तस्वीर पेश की फिर नारी मुक्ति का नशा ठेल दिया. एक तमाशा देखिये. अभी इलाहाबाद में नारी मुक्ति व्याख्यान में एक वक्ता ने निहायत वाहियात बात कही और उसे से भी मज़ेदार बात ये हुई कि अगले दिन अखबारों में यही बात बड़ी प्रमुखता से छपी. उस वक्ता ने यह कहा कि अभी आधी स्त्रीयों को पता ही नहीं वो बंधन में है. अब उनको नहीं पता तो नहीं पता पर आपकी पेट में दर्द क्यों हो रहा है? अरे भाई इसिलए दर्द हो रहा है कि नारी मुक्ति नाम के दूकान की सेल डाउन हो रही है. सच्चाई ये है की मै इलाहाबाद में ऐसे सेकुलर आत्माओ को जानता हू जो बाहर तो स्त्री मुक्ति पर भयानक लेक्चर देते है पर घर में अपनी स्त्रीयों का हर तरीके से शोषण करते है. मीडिया भी अपने निहित स्वार्थो के कारण इस नारी मुक्ति को अपने तरीके से कैश कर रहा है.और मार्केट के लिए तो नारी मुक्ति वरदान बन के आया है. सोचिये अगर मर्दों की फेयरनेस क्रीम स्त्रीयों के फेयरनेस क्रीम से अलग हो तो मार्केट की निकल पड़ी ना. इस नारी मुक्ति से नारियो का वास्तव में कितना कल्याण हुआ ये तो अलग बात है मगर कुछ क्षेत्र जैसे कानून,सिनेमा,माडलिंग इत्यादि की तो चांदी हो गयी है.
कोर्ट कचहरी में जाए तो भूमि विवाद के बाद स्त्रीयों से जुड़े विवाद ही अधिक है. चलिए सेकुलर इतिहास ने तो भारतीय इतिहास की सब अच्छाईयो को खारिज किया. मसलन हिन्दुओ की पितृसत्तात्मक व्यवस्था में हमेशा स्त्री की उपस्थिति की अवहेलना हुई. उस हिन्दू समाज में जिसने अर्धनारीश्वर जैसी अदभूत सोच दी. मै मान लेता हू कि सेकुलर इतिहास ने सच बताया. पर मै जानना चाहता हू कि इस सेकुलर गिरोह के द्वारा प्रायोजित नारी मुक्ति ने क्या दिया सिवाय बिखराव के जिसमे स्त्रिया मोहरा बन के रह गयी है आत्मविश्वास सहित. ये इतने उदारवादी हो गए है कि इनको हिन्दू व्यस्था के अंतर्गत विवाह से तो खिन्नता है या स्त्रीयों के रोल से खिन्नता है इस हिन्दू व्यस्था के अन्दर मगर इस व्यवस्था से परे अगर कोई ” हाई प्रोफाइल रंडी ” भी है तो वो इनकी नज़र में पूर्ण आजाद और वास्तविक स्त्री है. यही है इनका खतरनाक दोहरा चरित्र. आप ये देखिये की हर सहज व्यवस्था में इनको दोष दिखाई पड़ता है. मैंने कहा ना नारी मुक्ति को तो ये भारतीय समाज के लिए अपरिहार्य बताता है क्योकि हिन्दुओ ने इतनी गलत परंपराओ को जन्म दिया कि स्त्रिया तो दोयम दर्जे की चीज़ हो गयी. पर असल में इसे भारतीय समाज में स्त्रीयों की दशा से कुछ लेना देना नहीं. इनको मतलब है अपने उद्देश्य से. और वो है अस्थिरता और असंतोष की उत्पत्ति. आपको एक उदहारण दू तो समझ में आएगा की नारी मुक्ति के नाम पे कौन सी विचारधारा को धीरे से सरका दिया जाता है हौले हौले.
तनु वेड्स मनु के रिव्यू को एक सेकुलर मैगजीन में पढ़ा. लेखिका ने वहा तक तो तनु को प्रोग्रेसिव माना जब तो अपने मित्र के साथ तकरीबन लेस्बियन की तरह जुडी थी मगर इस लेखिका को फ़िल्म से आपति कहा हुई जब नायिका चुपचाप विवाह कर लेती है. यह चुचाप विवाह को नियति मान लेना इस लेखिका को बहुत अखरा. मै कुछ नहीं कहूँगा. अब पाठक खुद ही समझे मेरा इशारा. इसी प्रकार अब एक दूसरी खबर देखे. एक महिला की लाश बोरे में मिलती है स्टेशन पर. तकलीफ हुई खबर पढ़कर. मगर सेकुलर खबर ने ये तो बताया कि सुशिक्षित और बोल्ड महिला कि हत्या हुई पर ये नहीं बताया कि उसी सुशिक्षित स्त्री के कई पुरुषो से सम्बन्ध थे और पति के ऐतराज़ करने पे वो हिंसक हो उठती थी. कई बार उसने ब्लेड से पति के चेहरे पे वार भी किया. चलिए शराब वगैरह भी पीती थी इसको मै नहीं बताता. कोई ये ना समझे कि मै पति को जस्टिफाय कर रहा हू! मै सिर्फ इस बात पे आपत्ति प्रकट कर रहा कि अगर आप समाचार दे रहे है तो तथ्यों के साथ खेलवाड़ करके भ्रामक तस्वीर क्यों पेश कर रहे है. और मीडिया को तो केवल मसाला चाहिए. अजीब तमाशा लोगो ने बना रखा है जिसमे अवैध सम्बन्ध तो जायज है मगर विवाह जैसे संस्था को निभाना एक मजबूरी या गुलामी का प्रतीक है. हैरानगी इस बात पर भी है कि इसी सेकुलर मीडिया या नारी मुक्ति के ठेकेदारों को मुस्लिम समाज में व्याप्त महिलाओ की बदतर स्थिती से कोई शिकायत नहीं. अभी अरब जगत में हुए एक भीषण अग्निकांड में बहुत से स्कूली छात्राओ की मौत हो गयी. क्योकि कठमुल्लों में उन्हें कमरे में बंद कर दिया.वजह. सर पे दुप्पटा नहीं था और चेहरा खुला था. सेकुलर कुत्ते वहा नहीं भौकते जहा भौकना चाहिये.
अंत में मै यही कहूँगा आप बेशक स्त्रीयों की दशा को सुधारिए.कौन नहीं चाहता कि उनकी दशा सुधरे. पर नारी मुक्ति के नाम पे समाज में बिखराव ना पैदा करे. उस समाज को ना जन्म दे जिसमे विकृत सम्बन्ध स्वीकार्य पारंपरिक संबंधो पे हावी जो जाए. एक सम्मानित महिला सम्पादक अवैध संबंधो की वकालत करती है तो तकलीफ होती है.मतलब वैध बोझ है और अवैध जायज. कुल मिला के नारी मुक्ति के मीठे नशे से बचे. क्योकि हर तरह का नशा सिर्फ उतरने पर तकलीफ ही देता है. और फिर सब कुछ लुटा के होश में आये तो क्या फायदा . समय रहते हम सब चेत जाए तो बेहतर रहेगा. वरना दुष्परिणाम बहुत भयानक है जिनका अफ़सोस कोई इलाज़ नहीं. नारी मुक्ति नाम के छलावे से बचे. यही बेहतर रहेगा.

महिला कभी गलत नहीं होती!
References:
सेकुलर मैगजीन
महिला की लाश
अग्निकांड
महिला सम्पादक
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