अंतराष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाने की जरुरत क्यों आन पड़ी? अंतराष्ट्रीय पुरुष दिवस की सार्थकता और उपयोगिता.
अंतराष्ट्रीय पुरुष दिवस उन्नीस नवंबर को सत्तर से अधिक देशो में मनाया जाता है जिसमे त्रिनिदाद एंड टोबैगो, जमैका, ऑस्ट्रेलिया, भारत, चीन, यूनाइटेड स्टेट्स, रोमानिया, सिंगापुर, माल्टा, यूनाइटेड किंगडम, साउथ अफ्रीका, तंज़ानिया, ज़िम्बाब्वे, बोत्सवाना, हंगरी, आयरलैंड,घाना, कनाडा, डेनमार्क, नॉर्वे, ऑस्ट्रिया, बोस्निआ एंड हेर्ज़ेगोविना, फ्रांस, इटली, पाकिस्तान, अंटीगुआ एंड बारबुडा, सेंट किट्स एंड नेविस, सेंट लूसिया, ग्रेनेडा एंड केमन आइलैंड्स आदि देश शामिल है प्रमुख रूप से। इस सन्दर्भ में व्यापक ग्लोबल समर्थन हासिल हुआ इस दिवस को.
अंतराष्ट्रीय पुरुष दिवस का आयोजन सर्वप्रथम त्रिनिदाद एंड टोबैगो में 1999 से शुरू हुआ डॉक्टर जेरोम टिलक सिंह के द्वारा जिनके लिए उनके पिता एक रोल मॉडल थें.
अंतराष्ट्रीय पुरुष दिवस की जरूरत क्यों?
अंतराष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाने का मुख्य प्रयोजन पुरुषत्व और पुरुष होने की भावना का सम्मान करना है.
ये इस वजह से भी मनाया जाना आवश्यक है कि ताकि पुरुषो ने समाज के उत्थान और विकास के लिए जो सहयोग दिया उसको मान्यता मिले; वे जो बलिदान देते है अपनों के लिए उसको महसूस किया जा सके; और वे जिन समस्यायों से ग्रसित है उसके बारे में समाज और औरो को अवगत कराया जा सके.
इस दिवस को मनाने का एक प्रमुख कारण ये भी है कि कुछ प्रमुख समस्याएँ जो पुरुष वर्ग के सामने उभर के आती है उनके बारे में समाज में चेतना जाग्रत किया जा सके.
पुरुष वर्ग को अक्सर समाज के हाथो उपहासत्मक, नकारात्मक और उपेक्षा से ग्रसित मानसिकता का सामना करना पड़ता है जिसकी वजह से अक्सर वे कई प्रकार के मानसिक विकृतियों का शिकार हो जाते है और ऐसा इसलिए होता है क्योकि वे अक्सर अपने समस्याओं को लोगो से नहीं बाँटते है और उन्हें अपने तक ही सीमित रखते है. इस ना बांटने के वजह से ये भ्रम पैदा हो जाता है कि पुरुषों की जिंदगी बिल्कुल चिकनी सड़क के सामान है जिसपे कोई अवरोध नहीं है जबकि हकीकत ये है कि इनकी राहे कांटो से भरी रहती है. और इस अज्ञानता के कारण समाज सही ढंग से कभी भी पुरुषो के अधिकारो पर नहीं गौर करता है और ना ही उनके हितो को प्राथमिकता देता है.
आज पुरुष के ऊपर कार्य को उत्कृष्ट तरीके से करने का अत्यधिक दबाव है जो पुरुषत्व की भावना के प्रधान होने के कारण उन्हें जड़ और कठोर बना दे रहा है. पुरुष होने के नाते ये अपमानजनक सा लगता है अगर वे अपने समस्यायों के बारे में लोगो से बात करते है और औरो को इससे अवगत कराते है. बांटने का खतरा ये रहता है कि इन बातो कि वजह से वो उपहास का बिंदु बन सकता है और अगर वो ना बांटे तो वो अहंकारग्रस्त करार दे दिया जाता है.
पुरुष होना आज के युग में अपने कुछ नए मायने लेके आया है, कुछ नए लक्ष्य लेके आया है. अंतराष्ट्रीय पुरुष दिवस पर पुरुष इस बात के लिए प्रेरित होते है कि वे पुरुष होने के महत्व और चुनौतियों पर बात कर सकते है.
पुरुष के पास अपनी समस्याएँ रखने का कोई उचित मंच या स्पेस नहीं है. पुरुषो के समस्याओं पर मुख्यधारा के मीडिया में शायद ही चर्चा होती हो. उसकी एक वजह ये है कि पुरुष कभी नहीं अपने दुखो, चिंताओ और तनाव पर लोगो के बीच विचार विमर्श करते है.
अपने में सीमित रहने कि एक वजह ये है कि बचपन से इन्हे गलत संस्कारो के बीच पाला पोसा जाता है जहा बहुत ज्यादा अपने बारे में बोलने को पुरुषत्व के विपरीत माना जाता है. सो ये अक्सर सुनने में आता है जहा पे एक लड़के को ये कहा जाता है कि क्यों लड़कियो की तरह रो रहे हो … मर्द बनो!
इस तरह के गलत सुझाव् जो बचपन से पुरुषो के मन पर थोप दिए जाते है उनकी वजह से ये होता है कि वो कभी भी खुलकर अपनी बाते बांटने में झिझकता है और कतराता है. अपनी तमाम समस्यायों और उलझनो को अपने में कैद करके रखता है जिसकी वजह से मनोवैज्ञानिक रूप से उसका सही विकास अवरुद्ध हो जाता है.
इस वजह से सारी समस्याएं इस प्रकार से उसके अंदर फँस जाती है जिस तरह एक नाली में सें गंदे पानी का बहाव का रुक जाना। इस वजह से वे कई प्रकार की बीमारियो का शिकार हो जाते है. समाज को आगे बढ़कर पुरुषो की इन समस्याओं को समझना पड़ेगा। इनके भावनाओ और जस्बातों को ठीक ठीक समझना होगा।
वे दिन शायद अब सिर्फ किसी सपने के समान है जब समस्या से दो चार होने पर पुरुष एकांतवास ले लेते थे किसी गुफा में.
इस वजह से पुरुषो को ना सिर्फ अपने को बेहतर तरीके से अपने को अभिव्यक्त करना सीखना पड़ेगा बल्कि अपने साथी पुरुष मित्रो के भावनाओ, समस्याओ और दुखो को सही सही समझने की कला विकसित करनी पड़ेगा। अक्सर हम अपने साथी पुरुष मित्रो के समस्याओं को कमतर करके आंकते है. इस गलत प्रवत्ति पर अंकुश लगाना पड़ेगा। सो इस बार के अंतराष्ट्रीय पुरुष दिवस का विषय है कि पुरुष मुखर हो ( अपने समस्याओ के सन्दर्भ में) और लोगो के बीच अपनी बाते रखे.
पुरुषो के मुख्य मुद्दे:
पुरुष कई प्रकार के समस्याओ से जूझ रहे है जिनके बारे में लोगो को जानकारी ना होने के कारण, चेतना के अभाव के कारण समाज में पुरुष विरोधी माहौल व्याप्त रहता है. कुछ प्रमुख मुद्दे इस प्रकार से है:
पुरुषो के साथ अक्सर भेद भाव होता है पारिवारिक न्यायालयों में.
इस बात की सम्भावना नब्बे प्रतिशत तक है कि अगर तलाक होता है तो पिता अक्सर बच्चे पर अपना कानूनी हक़ खो देते है.
विवाहित पुरुष विवाहित स्त्रियो के मुकाबले दुगने रफ़्तार से आत्महत्या करते है.
सरकार और न्यायालयों के पास विवाहित पुरुषो के आत्महत्या को रोकने की कोई नीति नहीं है.
अगर महिला पुरुष का शोषण करती भी है तो भी समाज ऐसी महिलाओ को सजा नहीं देता है.
स्त्रियो की अपेक्षा पुरुष चार गुना अधिक रफ़्तार से हादसो में मरते है.
समाज ने पुरुष को इस सांचे में ढाल रखा है कि वे सब तरह का जोखिम उठाते है, अपनी जाने गंवाते है और वो भी ज्यादातर अवैतनिक मजदूर की तरह.
पुरुष जो आहुति देते है, जो बलिदान करते है उनका कोई मोल नहीं होता और वे मात्र उनका कर्तव्य मान लिया जाता है.
पुरूष जो समाज के उत्थान में अपना सहयोग देते है वे अक्सर चर्चा का विषय नहीं बनती और ये सहयोग इतिहास के पन्नो में कही दब सा जाता है.
ये तो केवल कुछ ही मुद्दे है जो अभी उभर कर आये है. अभी बहुत से मुद्दे है जो तह में दबे हुए है और जिन पर अभी चर्चा होनी बाकी है.
पिताओ के मुख्य मुद्दे:
पिता भी कई मुद्दो से रूबरू है जो संक्षेप में इस प्रकार है:
अलगाव के उपरान्त अगर पिता अपने बच्चे से मिलना चाहे या उनके साथ समय बिताना चाहे तो उसे कई प्रकार से अपमानित होना पड़ता है.
ऐसे कई पिता है जिनको अपनी अत्याचारी पत्नियों के हाथो कई प्रकार की मानसिक प्रताड़ना से गुजरना पड़ता है, इमोशनल ब्लैकमेल होना पड़ता है अगर वे अलगाव के बाद अपने बच्चो से मिलने का प्रयास करते है.
अगर क़ानूनी तौर पे अलगाव हो गया है तो अक्सर पिता को अपने बच्चो से मिलने नहीं दिया जाता, उन्हें एक दूसरे के साथ समय नहीं व्यतीत करने दिया जाता।
न्यायालय और समाज के द्वारा पिता को सिर्फ “एटीएम मशीन” और “स्पर्म डोनर” मान लिया गया है जिसकी वजह से भारतीय समाज “फ़ादरलेस सोसाइटी” की तरफ बढ़ चला है.
अंतराष्ट्रीय स्तर पर हुए शोधो और अध्ययन से ये पता चला है कि “फ़ादरलेस सोसाइटी” में निम्नलिखित बाते प्रधान है:
पिता के अस्तित्व से वंचित समाज में बच्चे:
पांच गुना अधिक आत्महत्या करते है.
बत्तीस गुना अधिक सम्भावना रहती है उनके घर से भागने की.
बीस गुना अधिक इस बात कि सम्भावना है कि उनमे व्यवहार सम्बधित दोष उत्पन्न हो जाए.
चौदह गुना इस बात कि सम्भावना है कि वे बलात्कार करे.
नौ गुना अधिक वे हाई स्कूल की पढाई से वंचित रह जायेंगे मतलब अधूरी छोड़ देंगे।
१० गुना इस बात कि अधिक सम्भावना है कि वे ड्रग्स लेने के आदि हो जाए.
नौ गुना इस बात कि सम्भावना है कि वे राज्य द्वारा स्थापित संस्थानो के भरोसे रह जाए जीवन यापन के लिए.
बीस गुना इस बात कि सम्भावना है कि वे जेल जाने को मजबूर हो जाए.
इस प्रकार के समाज में तीन मिलियन लड़किया सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिसीसेस से पीड़ित है और इस प्रकार के समाज में चार में से एक टीनेजर बच्चा सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिसीसेस से पीड़ित है.
सिफ्फ़ और क्रिस्प के बारे में:
सेव इंडियन फॅमिली फाउंडेशन एक गैर सरकारी संगठन (NGO) है जो पुरुषो के अधिकारो के लिए लड़ रही है, लिंगभेदी कानूनो के खात्मे के लिए प्रयासरत है और समाज में व्याप्त पुरुषो के प्रति घृणा के खात्मे के प्रति प्रतिबद्ध है. ये भारत में शुरू पहला ऐसा संगठन है जो पुरुषो को एक मंच प्रदान करता है अपनी बात रखने का, अपने चुनौतियों का जिक्र करने का और जिन विपरीत परिस्थितयो में वे काम कर रहे है खासकर वैवाहिक समस्याओं के सन्दर्भ में उनके बारे में खुलकर अपनी बाते रखने के लिए. सिफ्फ़ रिश्तो के उलझाव में फंसे पुरुषो को उनसे निदान पाने के बारे में रास्ते दिखाता है, उन्हें प्रक्षिक्षण देता है और ऐसा कॉर्पोरेट संस्थाओ के लिए काम करने वाले पुरुषो के लिए भी किया जा रहा है. अब तक हज़ारो पीड़ित पुरुषो ने सिफ्फ़ से जुड़कर समस्यायों से निज़ात पाने में कामयाबी पायी है.
चिल्ड्रन राइट्स इनिशिएटिव फॉर शेयर्ड पैरेंटिंग (CRISP) एक गैर सरकारी संघटन (NGO) है जो पिताओ को अपने बच्चो से तादात्म्य स्थापित करने में सहयोग प्रदान करता है खासकर उस स्थिति में जहाँ माता पिता के बीच अलगाव हो गया हो. क्रिस्प ने कई अवसरों पर विधि आयोग से संवाद स्थापित किया है और सांसदो से मुलाकात कर पिताओ के बच्चे के प्रति लगाव को अधिक संवेदनशीलता से देखे जाने का अनुग्रह किया है. अब क्योंकि ज्यादा से ज्यादा पुरुष सरंक्षक की भूमिका का निर्वाहन करने में सलंग्न है क्रिस्प का कहना ये है कि अलगाव की स्थिति में शेयर्ड पैरेंटिंग मतलब संयुक्त रूप से पालन पोषण को अनिवार्य कर दिया जाए.
The post also got extensive coverage in leading Hindi Newspapers, courtesy Rajesh Vakahariaji, President, Save India Family Foundation, Nagpur, Maharashtra:
Reference:
The article is based on literature provided by SIFF and CRISP.
Pics Credit:
Beginning Of A New Era: Men’s Rights News Reports Which Featured In Newspapers Published From Lucknow And Allahabad

Author Of This Post At Fifth Men’s Rights National Conference Held In Nagpur, Maharashtra, From August 16- August 18, 2013.
The Fifth Men’s Rights National Conference, held in Nagpur in the second week of August 2013, got tremendous coverage in mainstream media in Allahabad and Lucknow. It’s matter of self-pride since newspapers in this region are still not that familiar with concept of men’s rights. It’s a new phenomenon for them. In fact, issues pertaining to rights of men are still taken in lighter vein. Even the ones who are supposed to be more informed than ordinary class of people like reporters, editors and lawyers remain nonchalant when they come to hear about exploitation of men.
Fortunately, the extensive coverage of news related with Men’s Rights National Conference held in Nagpur marks a beginning of new era in this part of India. I am sure in coming days talks related with rights of men will not evoke irresponsible remarks. Have a look at the various news reports which appeared in Allahabad region’s prominent newspapers. It proved to be a herculean task to make them find meaning in talks related with men’s issues.I am happy that I was able to shatter the inertness prevalent in the minds of people who are supposed to be the custodians of human rights and made them understand the seriousness attached with cause of men. Many thanks to those reporters, editors and lawyers who responded positively as I spoke about the rights of men. Hope the cause of men’s attain new heights in coming days
****************************************************
Link Related To This News Report: The Times Of India, Allahabad Edition
*******************************************************

Northern India Patrika: Oldest English Newspaper In Allahabad Region Gave Enough Coverage To Rights Of Men…
Link To This News Report: Northern India Patrika
*****************************************************
3. Daily News Activist Published From Lucknow
***********************************************************
4. Jansandesh Times Published From Allahabad, Varanasi, Gorakhpur And Lucknow.
Links Related To This News Report Published On October 03, 2013: Visit The Archives Section Of Jandsandesh Times
And yes, many thanks to Amlesh Vikram Singh, Correspondent associated with Jansandesh Times, who made sincere efforts to get this news report published.
**************************************************************
An Important News Item Related With Rights Of Men:
Deciphering The Significance Of Men’s Rights On Indowaves
Deciphering The Significance Of Men’s Rights Movement Published In Northern India Patrika
Deciphering The Significance Of Men’s Rights Movement On Website 498.in
In The City Of Oranges To Save The Men ( Photo Story)
I came to visit Nagpur to attend 5th National Men’s Rights Conference which was organized by Save India Family Foundation ( SIFF) from August 16 to August 18, 2013. Nearly one year back I was in the same city for various other reasons. However, last time I failed to capture the various moods of this city, but I was luckier this time when I used the camera to capture some beautiful images. Although the cause for which I was in the city did not grant me much room to venture outside into the jungles, or, for that matter, move in the heart of the city that frequently. Anyway, thanks to my destiny, some images of which I can be really proud of came my way.

The stoppage of Super-fast trains never allows one to alight on minor stations..When train stopped on this station for few seconds, I got off to have this image 🙂

The Rail Tracks Take Many Such Beautiful Turns On This Rail Route…It Was A Tough Task To Capture This Image Since The Train Was Moving At Great Speed And It Was Proving To Be Touch Task To Hold The Camera…
- ….

The Men’s Conference Venue Was Located At Pench Tiger Reserve, 100 KM away from Nagpur..The way to it passed through woods …Lovely sight….

Rudyard Kipling’s Mowgli Must Have Used This Lovely Muddy Path To Trace His Other Friends In The Jungle 😛 😛

I Stood On This Machaan To Have In My Sight Tiger Tiger Burning Bright…I Am Sure My Presence Terrified Him 😛 😛 😛

My Friend Anand Prakash…He Runs A Pulse Mill There..He Is Not Camera Friendly..It Took Me Some To Convince Him To Have This Image 😛 😛 😛

Met My Journalist Friend Anjeev Pandey..Had Some Great Time Together..He Is A Nice Soul..Informed and Quite Sensitive Person…Enjoyed His Hospitality That Included Tasty Lunch…Despite Being Busy In Writing Of Book He Came To Find Moments For Me..Thanks Anjeevji 🙂 🙂 🙂

At Anjeev Pandey’s Home I Met This Extremely Talented Sound Recordist Sri Daamu Raoji..Anjeev Pandeyji Is Currently Involved In Writing A Book On Him..This Extremely Talented Person Came To Handle Sound Arrangements At All Major Events In Nagpur Since 1950! Above all, I Noticed That He Was Man Of Humility..Glad To Have Met Him….
समाज की दशा और दिशा तब सुधरेगी जब पुरुषो का उत्पीडन बंद होगा, पुरुष विरोधी कानूनों का खात्मा होगा!!
नागपुर में पिछले महीने पुरुष अधिकारों के प्रति समर्पित सेव इंडिया फॅमिली फाउंडेशन (SIFF) ने अपने पांचवे राष्ट्रीय सम्मलेन का भव्य और सफल आयोजन किया। मुख्य समारोह जो तीन दिनों का था, १६ अगस्त से लेकर १८ अगस्त तक, का आयोजन नागपुर से १०० किलोमीटर दूर पेंच टाइगर रिज़र्व के शांत और रमणीक स्थल पर हुआ. पेंच के जंगल नोबेल पुरस्कार विजेता रुडयार्ड किपलिंग से सम्बन्ध रखता है जहा पे उन्होंने मशहूर किरदार मोगली को जन्म दिया। बहरहाल इसी जगह पे तीन दिनों तक वैचारिक कसरत में सलंग्न रहना एक संवेदनशील मुद्दे पर एक सुखद और यादगार अनुभव रहा. ये कहने में कोई सकोच नहीं कि पुरुष अधिकारों के प्रति अभी भी बहुत बड़ा वर्ग उदासीन है लिहाज़ा ऐसे आयोजन समय की मांग बन गए है जो इस मुद्दे पे देश और देश के बाहर एक उपयुक्त भूमि का निर्माण कर सके.
इस सम्मलेन का आयोजन राजेश वखारिया और नागपुर की SIFF टीम ने नागपुर में अन्य महत्तवपूर्ण संस्थाओ के साथ मिलकर किया जिनमे रविन्द्र दरक का योगदान सराहनीय था. इस राष्ट्रीय सम्मलेन में SIFF की देश भर में फैली शाखाओ ने शिरकत की जिसमे बेंगालूरू , पुणे, मुंबई, लखनऊ, कन्याकुमारी, चेन्नई, इलाहबाद, हैदराबाद, नई दिल्ली और अन्य जगहों से आये सत्रह राज्यों के कुल १५० से अधिक् जुझारु कार्यकर्ताओ ने अपनी सहभागिता दर्ज करायी जिन्होंने देश भर में फैले 40,000 एक्टिविस्ट्स का प्रतिनिधित्व किया। इसके साथ ही कुछ प्रसिद्ध विदेशी संस्थाओ जिसमे मैरिटल जस्टिस, यूनाइटेड किंगडम और इन्साफ, यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका, प्रमुख थे ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। उल्लेखनीय बात ये रही कि जर्मनी, जापान, ऑस्ट्रेलिया, रूस, सिंगापुर और मिडिल ईस्ट से भी एक्टिविस्टस का आगमन हुआ.
समारोह में मैंने एक लेखक/ब्लॉगर की हैसियत से अपनी सहभागिता दर्ज कराई। चूंकि पुरुष अधिकारों में बहुत पहले से विचार विमर्श में सलंग्न रहा हूँ जो मेरे कई लेखो में उभर कर सामने आये है लिहाज़ा इस समारोह के जरिये मुझे कई और पहलुओ को बारीकी से समझने का अवसर प्राप्त हुआ.यद्धपि इस सम्मलेन में हुई चर्चाओ का फलक, विषय विन्दु कुछ सीमित सा रह गया, कुछ जरूरी सन्दर्भ जो परिवार के विघटन के प्रमुख कारण होते है जैसे उपभोक्तावाद, सांस्कृतिक हमले, इन पर कोई ख़ास चर्चा नहीं हुई और इसके अलावा संचालन में प्रक्रियागत ख़ामिया भी रह गयी लेकिन इसके बावजूद कई मुद्दों पर सार्थक चर्चा हुई. डॉ पोनप्पा, जो कि मैसूर से पधारे सर्जन थें, ने सही व्यक्त किया कि जिन मुद्दों को हम लेकर चल रहे है वे एक गहन गंभीरता की मांग करते है जो अगर इस तरह के समरॊह में भी अगर न दिखे तो तकलीफ होती है.
ये सर्वविदित है कि IPC 498a, डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट जैसे घातक कानूनो ने समाज की कमर तोड़कर रख दी है. इनका जिस तरह से व्यापक दुरुपयोग हुआ है उसको सुप्रीम कोर्ट ने कानूनी आतंकवाद की संज्ञा दी है. ये बेहद अफ़सोसजनक है कि कांग्रेस अपने वोट बैंक के चलते इस स्थिति में कोई सुधार नहीं कर पा रही. उलटे महिलाओ का वोट पक्का करने के लिए हिंदी विवाह अधिनियम (संशोधन) बिल, २०१०, पारित करा रही है जिसके पास हो जाने के बाद पुरुषो को आपसी सहमती से हासिल तलाक के उपरान्त अपनी गाढ़ी कमाई से अर्जित संपत्ति से हाथ धोना पड़ेगा। इस लाचार और पंगु सरकार के पास अपने अस्तित्व को बचाने के लिए सिवाय इस तरह के आत्मघाती कदमो के अलावा कोई और कदम नहीं सुझाई पड़ता है. सरकार में बैठे शामिल मंत्री और महत्त्वपूर्ण संस्थाओ को चला रहे अफसर शायद रेत में शुतुरमुर्ग की तरह सर गाड कर बैठे है कि उनको ये सरकारी आंकड़े जो कि ये दर्शाते है 242 पुरुष और 129 स्त्री हर दिन आत्महत्या करते है ( NCRB) की नाजुकता और गंभीरता समझ में नहीं आती है. इसको और बारीकी से देखे तो 71 प्रतिशत के लगभग शादी शुदा पुरुष आत्महत्या करते है तो लगभग 67 प्रतिशत शादी शुदा महिलाये आत्महत्या करती है.
कितने अफ़सोस की बात है कि जहा महिलाओ का पक्ष सुनने के लिए कई संस्थान है वही पुरुष को सड़ने गड़ने को छोड़ दिया जाता है उसको अपनी तमाम समस्याओ के साथ. खैर आधुनिक सभ्यता अपने उस मकाम पर आ गयी है जब पुरुषो का हर तरीके से शोषण बंद हो चाहे वो किसी भी रूप में हूँ और किसी स्तर पर हो. उनके योगदान का सही रूप से मूल्यांकन हो. लेकिन तमाशा देखिये कि कांग्रेस सरकार ना केवल परिवार संस्था को तहस नहस करने में लगी है बल्कि कानूनी आतंकवाद के जरिये पुरुषो को लाचार और अक्षम बनाने पर तुली है. आखिर हिन्दू विवाह अधिनियम (संशोधन) बिल, २०१०, जैसे अपूर्ण और भ्रामक कानून को बनाने का उद्देश्य क्या है जो संविधान के कई मूल पहलुओं की उपेक्षा करता है? जेंडर इक्वलिटी के दायरे में में क्या पुरुषो को आपत्ति करने का कोई अधिकार नहीं है? फिर ऐसा कानून लाने की क्या जरूरत है जो सिर्फ हिन्दू संपत्ति के बटवारे की बात करता हूँ? ऐसा ही संशोधन मुस्लिम पर्सनल कानून पर क्यों नहीं लागू होता? कितने खेद की बात है कि कांग्रेस की अक्षम सरकार ने विवाह नाम की संस्था की धज्जिया उड़ा दी पर हिन्दू खामोश है और नर के भेस में नारी समान पुरुष खामोश है.
इसलिए नागपुर में आयोजित राष्ट्रीय सम्मलेन ख़ासा महत्व रखता है. ये एहसास दिलाता है कि इस तरह के आयोजन अनिवार्य हो गए है सरकार को शीशा दिखाने के लिए और समाज में एक सार्थक बदलाव लाने के लिये. इस सम्मलेन में कुछ महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किये गए जिनमे प्रमुख है पुरुषो के लिए अलग मंत्रालय बनाने के लिए ताकि उनके समस्याओ पर बेहतर चिंतन हो सके; पुरुषो की जिंदगी को खतरनाक धंधो में भागिरदारी कम की जाए; वैवाहिक कानून जो कि आज समानता के कानून की अवहेलना करते है उनको “जेंडर इक्वल” बनाया जाए कानून की चौखट में; पिता को भी समान रूप से शेयर्ड पेरेंटिंग के भावना के अंतर्गत बच्चो को पालन पोषण करने की छूट दी जाए तलाक मंजूर होने के उपरान्त ताकि बच्चो को माता पिता का सामान रूप से सरंक्षण प्राप्त हो. इसके अलावा इस बात पे भी बल दिया गया कि पुरुषो की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं का निराकरण करने की एक सार्थक पहल हो सरकार और समाज दोनों द्वारा।
सम्मलेन का समापन हिन्दू विवाह अधिनियम (संशोधन) बिल, २०१० को तुरंत वापस मांग लेने के साथ हुआ. सम्मलेन में बहुत से लोगो को पुरुषो के अधिकार के प्रति चेतना जगाने लिए सम्मानित भी किया गया जिसमे इस लेख के लेखक हिस्से में भी ये सम्मान आया, जिनका इलाहाबाद में इलाहाबाद हाई कोर्ट के वकीलों ने एक समारोह आयोजित कर इस उपलब्धि के लिए सम्मानित किया। बहुत जरूरी है ऐसे सम्मलेन, इस तरह के सम्मान समाज का अस्तित्व बचाने के लिए और इस बात को बल देने के लिए कि पुरुष भी स्त्री की तरह समाज की एक प्रमुख इकाई है. SIFF और इससे जुड़े लोग बधाई के पात्र है इस तरह के क्रांतिकारी पहल के लिए. उम्मीद है इस तरह के संस्थान समय के साथ नयी ऊंचाई को प्राप्त कर समाज को नयी दशा और दिशा देने में निश्चित रूप से कामयाव होंगे।
References:
The Times Of India
P.S.: Media Persons Are Permitted To Publish This Article In Their Respective Publications. However, They Are Requested To Give Due Credit To The Author/Blog Page Apprising Him Of Its Publication As Early As Possible.
************************************************************
फोटो जो हमने और अन्य साथी मित्रो ने खींची सम्मलेन की, और कुछ फोटो फुरसत के पलो की!!!

स्वरुप सरकार से तो काफी मुलाकाते हुए थी आभासी जगत में लेकिन यथार्थ के धरातल पर मिलन रोचक रहा. जिस अंदाज़ में ये बोलते है फेमिनिस्ट ब्रिगेड को कुछ ऐसे ही एग्रेसिव हथौड़ो की जरूरत थी 😛

मेरे संवेदनशील मित्र जोयंतो जो अपने इलाहाबाद के होते हुए भी नागपुर में पहले पहल मिले 🙂 बीच में शायद राजेश वखारिया जी ही जैसा कोई शख्स दिख रहा है 🙂 बगल में हम है और उसके बाद शम्मी जी है जिनसे सम्मलेन समाप्ति पर कार में काफी रोचक बाते हुई!

विराग से मिलकर काफी प्रसन्नता हुई और उसकी एक वजह ये थी कि हम इन्टरनेट पर अक्सर बातचीत करते रहते है..और ये सिलसिला काफी पुराना है

स्वर्णकार जी जो शायद विलासपुर से पधारे थें मेरे कमरे में ही रुके थे। अध्यात्म और अधिकारों का गठजोड़ बहुत हुआ फुरसत के क्षणों में इनके साथ

राजेश जी मिलना होगा सोचा ना था। बहुत पुराने साथी है मेरे। खैर दिल्ली और इलाहाबाद के वकील मिले तो आपस में 🙂

गोकुल से मेरी पहली मुलाक़ात वर्षो पहले हुई थी इन्टरनेट पे अपने ही किसी पोस्ट पर चर्चा के दौरान। और मिलना सालो बाद नागपुर में हुआ

अनाडी” जी जो लखनऊ से पधारे ने जो “चाय” पिलाई कि उसकी मिठास अभी भी बनी हुई है. इन्होने ये तो साबित ही कर दिया कि हास्य और व्यंग्य वो विधा है कि जिसकी मार बहुत गहरी होती है

पांडुरंग कट्टी से मै पहले कभी नहीं मिला था सो मिलना मन में जगह कर गया. आप जैसे और लोगो की जरुरत है जो देश में बेहतर सोच को जन्म दे सके

अमर्त्य का लगाव देखकर प्रसन्नता हुई. अमर्त्य में अच्छा ये लगा कि कम से कम कुछ लोग तो पढने में यकीन रखते है गहरे में जाकर। दीपिका जी का योगदान इस मामले में महत्त्वपूर्ण है कि डाक्यूमेंट्री विधा को एक ऐसे मुद्दे में इस्तेमाल कर रही है जिसको वाकई विस्तार की जरूरत है. बहरहाल दोनों लोगो से मिलकर ख़ुशी हुई.

प्रकाश ने जो सहूलियत प्रदान की सम्मलेन में और सम्मलेन के खत्म होने के बाद बारिश में भीगते हुए कुछ दूर तक छोड़ना याद आता है. पहले भी नागपुर आया था तो तब भी मिलना इनसे अच्छा लगा था. प्रकाश में सम्मलेन मेंकोई पेपर तो नहीं पढ़ा लेकिन अगर ये कुछ कहते तो उसको सुनना दिलचस्प रहता।
RECENT COMMENTS