मोदी से जुडी कुछ बाते: ना पक्ष में और ना विपक्ष में !

मोदी आ जरूर रहे है लेकिन उनके लिए प्रधानमंत्री का मुकुट किसी कांटो से भरे ताज के समान ही होगा। देखना यही है कि इन विषम परिस्थितियों में वे किस तरह देश को विकास के राह पे ले जाते है. सबसे बड़ी बात यही है कि हिन्दू जनमानस के भावनाओं का वो कितना ख्याल रख पाएंगे इस तरह के माहौल में जहा सिर्फ मुस्लिम अधिकार या क्रिस्चियन अधिकार ही सेक्युलर भावना का आधार बन चुके है!
चुनाव के वक्त किसी एक बड़ी लहर का होना एक विशेष घटना होती है. लहर तभी होती है जब किसी जनप्रिय नेता का अचानक निधन हो जाए दुखद तरीके से या राजनैतिक हलकों में किसी स्कैम या स्कैंडल की वजह से किसी ख़ास पार्टी की तरफ लहर का माहौल बन जाए. इसलिए मोदी के पक्ष में लहर कई कारणों से अनोखी है. एक तो ये किसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना की उपज नहीं है और दूसरी ये कि ये किसी बड़े कारण से नहीं उपजी है. इस लहर के पीछे कारण सिर्फ ये है कि लोग बदलाव चाहते है. कांग्रेस के कथनी और करनी में फर्क को देखते देखते लोग त्रस्त हो चुके है. ऐसे में नरेंद्र मोदी जिन्होंने गुजरात में अच्छा काम कर दिखाया तमाम विघटनकारी शक्तियों से सामना करते हुए वे लोगो के नज़रो में आशा की एक बड़ी किरण बन के उभरे है. और इस कदर उभरे है कि हर गली कूंचो में लोग इनके बारे में चर्चा कर रहे है. इन चर्चाओ में हर तबके के लोग शामिल है और हर उम्र वर्ग के लोग शामिल है. देहातो में आप निकल जाए वहा भी मोदी की लहर है. और ये सिर्फ सुनियोजित प्रचार के चलते संभव नहीं हुआ है बल्कि आश्चर्यजनक तरीके से मोदी में उपजे विश्वास के चलते सम्भव हुआ है.
नरेंद्र मोदी ने गुजरात में अच्छा काम किया ये तो है ही लेकिन कांग्रेस का दोहरा चरित्र लोगो ने भली भाँति समझ लिया ये एक बड़ी वजह है. लोगो ने ये समझ लिया है कि कांग्रेस राज के चलते इस देश में कुछ भी सही संभव नहीं. ये सिर्फ लोगो का शोषण करने के लिए बनी पार्टी है जिसमे नेता के नाम पर किसी एक परिवार के प्रति सम्मान रखने वाले चापलूस भरे पड़े हैं. ऐसा शायद ही कभी इस देश में हुआ हो कि किसी प्रधानमन्त्री की छवि इतने असहाय और कमजोर व्यक्ति के रूप में उभरी हो जबकि उसके पास गुणों का भण्डार रहा हों. उसकी सबसे बड़ी वजह ये थी कि कांग्रेस ने कभी भी अच्छे आदमी को ताकत नहीं सौपी. सिर्फ उन्ही लोगो को आगे बढ़ाया जिन्होंने चमचागिरी और चाटुकारिता में यकीन रखा. अच्छे लोगो को कांग्रेस ने निकम्मा बना के छोड़ा. अब की पीढ़ी ने ये कांग्रेस का चरित्र समझ लिया और वो बदलाव चाहती है. मोदी ना होते कोई और नेता इतने ही कद का होता तो वो भी लहर को जन्म दे देता. लेकिन नियति ने यह एक मौका मोदी को दिया है.
अगर हम मोदी के नज़रिये से देखे तो ये एक अच्छी घटना भी है और अच्छी नहीं भी है. वो इसलिए कि विरोधाभासों से भरे इस देश में जब आप किसी एक व्यक्ति पे इतना भरोसा कर लेते है और उससे इतनी सारी उम्मीदे पाल लेते है तो ऐसे में उसको अपने पोटेंशियल को आज़माना और सब की उम्मीदों पर खरे उतरना असंभव सा हो जाता है. लोगो का मोदी के प्रति उत्साह देख कर तो ये लगता है कि मोदी के आने के बाद क्रन्तिकारी बदलाव आएगा उस देश में जो पिछले साठ-सत्तर सालो क्या कई युगो से गुलामी के चक्र में पिसता चला आ रहा है. ये लोगो का इस कदर उम्मीदे पाल लेना, इतना उत्साह से लबरेज़ हो जाना खलता है. लोगो को उम्मीदे पालने में तार्किक और न्यायसंगत होना चाहिए ताकि आने वाला आदमी कुछ सही कर पाये वरना कुछ समय बाद लोग फिर चिढ़ने, कुढ़ने और गरियाने लगते है.
आप पहले इस देश का चरित्र देखे. जिस कांग्रेस पार्टी ने इतने सालो तक राज किया उसके पास किस तरह के नेता है. जो इनका यूथ आइकॉन है इनकी नज़रो में और जो दुर्भाग्य से इनका प्रधानमंत्री पद का दावेदार भी है वो इतनी निकृष्ट सोच रखता है कि वे किसी की निजी जिंदगी में कीचड़ उछालने से बाज़ नहीं आता जबकि यही पार्टी महिलाओं का सम्मान करने का दम्भ पालती है! ये पार्टी युवा सोच का सम्मान करने वाली के रूप में अपने को प्रमोट कर रही है. तो क्या युवाओ की सोच इतनी सतही हो गयी है कि सत्ता का मोह किसी के निजी जिंदगी के उन किस्सों को उजागर करे जिनका वर्तमान से कुछ लेना देना ना हो?
इस देश में कांग्रेस के अलावा कुछ तथाकथित सेक्युलर पार्टिया भी है जिन्हे अपने प्रोग्रेसिव होने का दम्भ है और विगत वर्षो में ये कुछ इस कदर प्रोग्रेसिव हुई कि मुख्यधारा में शामिल राजनैतिक दलों के समूह से ही इनका लोप हो गया. बल्कि राजनैतिक दल के रूप में मान्यता भी घटे वोट प्रतिशत के कारण समाप्त हो गई. लेकिन इनके कुछ प्रकाशन अभी भी इनके नाम का भोंपू बजाते रहते है बेसिर पैर के लेखो के जरिये. सो इन प्रकाशनों के जरिये ये सन्देश दिया जा रहा है कि मोदी के आ जाने से “नरम फांसीवाद” का उदय होगा और ये कुछ ऐसा ही है जिस तरह हिटलर ने सत्ता प्राप्त की थी. इस तरह की सायकोटिक और पैरानॉयड सोच की वजह से ही भारत की जनता ने इन्हे मुख्यधारा से ही हटा दिया. इनका खुद का इतिहास ही क्रूर तानाशाहों से भरा रहा है लिहाज़ा इनका इस तरह से भयाक्रांत होना और लोगो में भी बेवजह भय उत्पन्न करना इनका एकमात्र धंधा बन गया है. ये खुद कितने साफ़ सुथरे चरित्र वाले रहे है इसका नमूना तो आप पश्चिम बंगाल में देख सकते है जहा मार्क्सवादी गुंडों ने कितने सालो तक आर्गनाइज्ड बूथ कैप्चरिंग करके किसी को सत्ता में आने ना दिया. कथनी और करनी में कितना ज्यादा फ़ासला हो सकता है ये इस पार्टी ने देश में सबको दिखाया।
इसी पार्टी की विचारधारा के लोगो ने देश और विदेश की मेनस्ट्रीम मीडिया में अपने दलाल रख छोड़े है जिनका मुख्य काम यही है कि जहा दक्षिणपंथी सोच हावी होते हुए दिखे वहा पे तुरंत इस बात को प्रचारित करना शुरू कर दो कि देश की कल्चरल डाइवर्सिटी को खतरा है, मुसलमानो के बुरे दिन आ गए है, क्रिस्चियनस के बुरे दिन आ गए है इत्यादि. गुजरात के दंगो का जिन्न भी निकल कर बाहर आ जायेगा. याद करिये जब गुजरात में मोदी एक बार फिर बहुमत से जीत कर आये थे तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया उस वक्त किस नज़रिये से जीत को देख रही थी; ये देखे कि इस बात पे बहस हो रही थी कि मुस्लिमो का वोट प्रतिशत क्या रहा है और कहा पे मुस्लिमो ने वोट दिया और कहा नहीं दिया! मुस्लिम वोट के नाम पे होने वाले तमाशे को खुद मुस्लिम ही अगर सुलझा सके अपनी कबीलाई मानसिकता से ऊपर उठ कर तो बेहतर होगा. क्योकि बाहर से कोई इन्हे समझाए प्रेशर डाल कर तो खुद इनके भीतर और बाहर भी एक गलत सन्देश जाता है. लिहाज़ा इन्हे ही कुछ करना होगा ताकि इनके नाम पे होने वाले वीभत्स तमाशे बंद हो सके. पता नहीं क्यों मुस्लिमो ने हमेशा अपने को इस्तेमाल होते रहने देना पसंद किया है? इनके अंदर अभी भी बंद दिमागों का प्रभाव है जो इन्हे कभी भी वर्तमान में सही तरीके से जुड़ने से रोकता है और हर गलत ताकत से इनको जोड़ देता है. हो सकता है इनको अपने इस्तेमाल होते रहने में हित सधते दिखते है!

अमेरिका को ना पाकिस्तान में हुए हिन्दुओ पर अत्याचार दिखा और ना ही कभी उसे पाकिस्तान में कल्चरल डाइवर्सिटी खतरे में दिखी! केवल भारत में ही उसे ये खतरा दिखता है और वो भी चुनावो के वक्त या किसी और नाजुक समय में!
ऐसा नहीं कि हैलुसिनेशन का शिकार मेनस्ट्रीम मीडिया या राजनेता सिर्फ भारत में ही हलचल मचाते है बल्कि ऐसे नाज़ुक क्षणों में विदेशो में भी इस तरह के हैलुसिनेशन से ग्रसित लोग हर तरह की नौटंकी करने लगते है. अब अमेरिका में देखिये जैसे ही वहा के लोगो को मोदी के सत्ता में आने की संभावना दिखी वही पे अमेरिकी कांग्रेस में अच्छी खासी बहस छिड़ गयी कि मोदी के आगमन का मतलब कल्चरल डाइवर्सिटी को खतरा है जबकि भारत ही वो देश है साउथ एशिया में जहा कल्चरल डाइवर्सिटी सबसे स्थिर रही है. बिडम्बना देखिये कि रेसोलुशन ४१७ तब कभी नहीं लाया गया जब पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिन्दू और सिख संप्रदाय पे बर्बर जुल्म हुए और उनका प्रतिशत लगातार घटता रहा इनके पलायन की वजह से. खुद अपने देश में कश्मीरी पंडितो पे हुए जुल्म को किसी अमेरिकी संस्था ने संज्ञान में लेने की कोशिश नहीं की. इस रेसोलुशन में गुजरात दंगो के लिए मोदी को जिम्मेदार माना गया जो ये दर्शाता है कि निहित स्वार्थ के चलते सोचने वाले दिमाग कितने संकीर्ण हो जाते है. ये बहस तब हो रही है जब सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चले गहन इन्वेस्टीगेशन ने मोदी को क्लीन चिट दी और यहाँ तक कि गुजरात दंगो की दोबारा जांच की मांग को भी ख़ारिज कर दिया. गोधरा में ट्रेन में हुए नरसंहार को भी स्पेशल कोर्ट ने एक संप्रदाय विशेष को ही दोषी माना और इसमें शामिल लोगो को मौत की सजा दी. अमेरिका जो ऊँची सोच का दम्भ रखता है शायद उसे भारत की न्याय परंपरा से अधिक संकीर्ण सोच से ग्रसित और गलत ताकतों द्वारा पोषित मेनस्ट्रीम मीडिया के कुछ प्रकाशनों पे ज्यादा ही भरोसा है.
मोदी आ जरूर रहे है लेकिन उनके लिए प्रधानमंत्री का मुकुट किसी कांटो से भरे ताज के समान ही होगा. देखना यही है कि इन विषम परिस्थितियों में वे किस तरह देश को विकास के राह पे ले जाते है. सबसे बड़ी बात यही है कि हिन्दू जनमानस के भावनाओं का वो कितना ख्याल रख पाएंगे इस तरह के माहौल में जहा सिर्फ मुस्लिम अधिकार या क्रिस्चियन अधिकार ही सेक्युलर भावना का आधार बन चुके है! क्या वो विखंडित हिन्दू आस्था को एक बेहतर मजबूती दे पाएंगे? क्या इतनी सारी उम्मीदे पाले असंख्य लोगो की आशाओ पे मोदी खरे उतर पाएंगे? ये तो सिर्फ अब आने वाला वक्त ही बतायेगा. बेहतर तो यही है कि इतनी सारी उम्मीदे पालने से अच्छा है कि मोदी को अपने हिसाब से चलने दिया जाए!
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India Need Not To Appreciate Obama For Osama’s End
It’s entirely a silly gesture to be euphoric about Obama’s achievement. I see no reason as to why we Indians hail him as a great leader when it’s pretty much clear that his role like his predecessors is too keep alive the imperialistic designs of US, to keep expanding the hegemony of US. India needs to remember well that for presidents of United States the “interests” matter more. This explains why the so-called War on Terror is designed more to sustain the ambitions of United States rather than making world devoid of dangerous terrorist. It explains why the violation of human rights in killing of Osama is justified but when India wishes to be straight forward in wiping out the terrorists’ hideouts in Pakistan, the reluctance of United States comes on the surface in form of mild and strong reactions.
The strange thing is that these hideouts started bothering United States once they started affecting the designs of America. On the contrary, our long desire to declare Pakistan a terrorist state always met a rough response on the part of American policymakers. They kept offering aides and donations on one pretext or another to Pakistan, which it kept using against us by spending them on anti-India forces. I must ask is Mr. Obama in a state of coma when it comes to identification of terrorists operating in India with overt and covert support of Pakistan? The irony is that despite our diplomatic efforts in light of so many evidences, we are asked by the US administration to abide by the International laws. The US is always in denial mode while estimating the real face of Islamic terrorism in India. The moment we take strict actions in Jammu and Kashmir, the American clouts in Amnesty International are the first ones to raise eyebrows. However, “revenge” for Mr.Obama is justified as Osama led to rise of many American kids who grew up in absence of their parents.
Curiously, the same logic is not applicable if India on the same grounds take strict against its enemies inside and outside. Is Mr.Obama’s administration unaware of role of Pakistan in 26/11 attacks? However, as a humiliating gesture it asked India to submit proofs and other than delivering customary warning to Pakistan we got nothing. I am really surprised that we chose to turn a blind eye to WikiLeaks, which brought in open the real face of American policymakers. It treats India as “a self-appointed frontrunner for a permanent UN security council seat.”
The revelations only confirm our suspicion that it treats us a fool that can be fooled all the time with sweet doses of assurances and talks that refer to strengthening ties with India. The same strengthening of ties does not include elimination of terrorists mentioned in the list of dangerous terrorists prepared by India. It appears that these terrorists are serving the cause of humanity in the eyes of Obama.
I refuse to hail Obama as a great leader until he displays same level of honesty in dealing with Pakistan. I refuse to treat him as custodian of human values in the wake of his continued rejection of ground realities pertaining to large scale of migration of Kashmiri Pandits and Tibetans. As long as a troubled status quo remains in Tibet and Kashmir, I am in no mood to pay attention to achievements of Obama much less acknowledge him as a wonderful leader. Obama is as selective in approach as his predecessors. He can provide support to smaller nations in Middle East but it refuses to support in explicit terms the refugees belonging to Kashmir and Tibet. Kashmiri Pandits and Tibetans are non-existent for him. They and their kids are living in heaven for Mr.Obama.
References:
WikiLeaks And Hillary On India
The Plight Of Kashmiri Pandits
KPS Gill Talks About Kashmiri Pandits
India’s List Of Dangerous Terrorists
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