The Times Of India: Marriage Bill Is Anti-Men
It’s a matter of great satisfaction that prominent publications related with mainstream media have begun to embrace issues related with men in a fair way. The various bodies working for the cause of men across the nation have decided to ferociously protest against the recent amendments made in Hindu Marriage Laws which are not only anti-male but also do not augur well for the cause of society. I must appreciate The Times of India and its correspondents some of them whom I know personally quite well for being sympathetic towards issues sensitive in nature. The complicated issues cannot be dealt with in a proper way unless we know both the sides of story and this type of fair reporting allows us to be more informed about aspects which remain neglected owing to lack of dissemination. Right now some of the well known Men’s associations based in Bangalore, Pune, Nagpur and elsewhere are working hard to create awareness regarding misuse of laws, which they call legal terrorism. The activists right now are engaged in having dialogue with Members of Parliament with a hope to apprise them of with concerns of Men’s Associations. I am sure the day is not far when gender-neutral laws would get introduced to provide a better shape to Indian society now on the verge of disarray due to blatant misuse of power by the feminists, enjoying support of negative powers operating within the nation and in foreign lands.
विवाह कानून (संशोधन) विधेयक 2010: सरकार को पुरुष संघटनो की तरफ से कुछ बेहद महत्त्वपूर्ण सुझाव

इन अपूर्ण, गलत और भ्रामक संशोधनों को वापस लिया जाए. कानून को लिंगभेद से ऊपर रखा जाए (जेंडर न्यूट्रल), पति या पत्नी शब्द को जीवनसाथी (spouse) शब्द से सम्बोधित किया जाए.
पुरुष अधिकार से जुड़े संघटनो की कुछ प्रमुख चिंताए:
* संशोधन का मूल प्रारूप (मुख्य बिन्दुएँ)- पतियो के खिलाफ पक्षपाती है.
* इस आधार पर तलाक मांग सकती है कि उसका दांपत्य जीवन ऐसी स्थिति में पहुंच गया है, जहां विवाह कायम रहना नामुमकिन है. ‘विवाह सम्बंध टूटने और किसी भी सूरत में रिश्ता बहाल न होने’ को भी तलाक एक आधार के रूप में मान्यता प्रदान किया गया है “हिंदू विवाह अधिनियम”, 1955, और स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954 में.
* पत्नी को हक़ है पति की तरफ से पेश तलाक़ याचिका को विरोध करने का इस आधार पर कि वो गहन आर्थिक संकट से ग्रस्त है. कोर्ट इस गहन आर्थिक संकट से निज़ात दिलाने के प्रावधान अपने विवेक पर कर सकती है. (पतियो के संग पक्षपाती है)
* उन बच्चो के भरण पोषण का समुचित प्रबंध माता पिता के द्वारा उनकी आर्थिक हैसियत के अनुरूप जो अवैध संतति है.
संसदीय समिति- महिला संघटनो के द्वारा सुझाये गए प्रस्तावो से गलत तरह से प्रभावित है:
* ‘विवाह सम्बंध टूटने और किसी भी सूरत में रिश्ता बहाल न होने’ को भी तलाक एक आधार के रूप में मान्यता प्रदान करने की संस्तुति करना.
* महिला संघटनो के सुझावो से प्रेरित होकर उस वैवाहिक संपत्ति पर भी पत्नियों का अधिकार होगा जो विवाह के उपरांत अर्जित की गयी है दोनों के सहयोग से.
* पुरुष संघटनो के हर सुझावो की उपेक्षा की गयी.
कानून मंत्री द्वारा किये गए अन्य संशोधन- पुरुष हितो के विपरीत प्रावधानो की स्वीकृति:
* पत्नी का हिस्सा उस संपत्ति पर जो विवाह के पूर्व और उपरान्त अर्जित की गयी है.
* पत्नी का हिस्सा पति के द्वारा अर्जित और अर्जित करने योग्य पैतृक संपत्ति में.
हमारी आपत्तियां:
* पत्नी का कोई योगदान नहीं होता पति के द्वारा अर्जित पैतृक संपत्ति में और उस संपत्ति पर जो उसने शादी से पूर्व अर्जित की गयी है. उसको संज्ञान में लेकर प्रावधान बनाने की जरूरत नहीं.
* उस संपत्ति के बटवारे में कोई भी फैसला जो पति ने शादी के उपरांत अर्जित की है आँख मूँदकर गलत तरीक़े से नहीं होना चाहिए। पत्नी के योगदान का आकलन करना चाहिए। दो महीने की शादी और बीस साल की शादी की अवधि को एक ही मापदंड से नहीं देखा जा सकता.
* ये तर्क दोष से बाधित संशोधन है कि स्त्रियाँ शादी को नहीं तोड़ती. स्त्रियाँ ना सिर्फ शादी को तोड़ती है बल्कि कई बार शादी कर सकती है और इस तरह पूर्व में की गयी हर एक शादी से संपत्ति अर्जित कर सकती है. इस तरह के कई उदाहरण आये दिन समाचार पत्रो में प्रकाशित होते रहते है जहा लालची पत्नियों ने धोखधड़ी से शादी करने के बाद संपत्ति पे अपना दावा पेश किया या फिर झूठे 498 A के मुकदमे दर्ज कराये संपत्ति की हवस में.

ये अब एक प्रचलित हथियार बन गया है कि हर नाकाम वैवाहिक सम्बन्धो में स्त्रियाँ IPC 498 A और घरेलु हिंसा अधिनियम का व्यापक दुरुपयोग कर रही है संपत्ति हथियाने में. अब ये संशोधन भी एक प्रमुख औजार/ज़रिया बन जाएगा समाप्ति अर्जित करने के लिए.
इन संशोधनों के परिणाम/अंजाम:
* वैवाहिक वादो के गहन अध्ययन के बाद ये बात स्पष्ट उभर कर आई है कि ज्यादातर वैवाहिक विखंडन का कारण पत्नी का जबर्दस्ती उस संपत्ति पर हक़ जताना रहा है जो पति या उसके रिश्तेदारो ने अर्जित की होती है.
* विवाह अपने पवित्र संस्कारो से वंचित हो जायेंगे और ये सिर्फ संपत्ति अर्जित करने का श्रोत बन जायेंगे। ये अब धीरे धीरे एक परंपरा बनती जा रही है कि भौतिक लाभ की लालसा शादी के द्वारा बढ़ती जा रही है और इस तरह के गलत संशोधनों के व्यापक दुष्परिणाम उभर कर सामने आयेंगे।
* ये अब एक प्रचलित हथियार बन गया है कि हर नाकाम वैवाहिक सम्बन्धो में स्त्रियाँ IPC 498 A और घरेलु हिंसा अधिनियम का व्यापक दुरुपयोग कर रही है संपत्ति हथियाने में. अब ये संशोधन भी एक प्रमुख औजार/ज़रिया बन जाएगा समाप्ति अर्जित करने के लिए.
* संपत्ति का अर्जन कई वर्षो की मेहनत का परिणाम होते है ना कि कुछ वर्षो के वैवाहिक संग का. असफल वैवाहिक सम्बन्धो के चलते अपनी गाढ़ी कमाई से अर्जित संपत्ति से हाथ धोने के वजह से पतियो के आत्महत्या के दर में खासी वृद्धि देखी जायेगी जो कि पहले से ही पत्नियों के आत्महत्या के दर की दुगनी है. अपराध दर में भी इस वजह से वृद्धि देखी जायेगी।
हमारे प्रस्ताव/सुझाव:
* इन अपूर्ण, गलत और भ्रामक संशोधनों को वापस लिया जाए. कानून को लिंगभेद से ऊपर रखा जाए (जेंडर न्यूट्रल), पति या पत्नी शब्द को जीवनसाथी (spouse) शब्द से सम्बोधित किया जाए.
* संपत्ति में हिस्सा पति और पत्नी के वित्तीय योगदान के आधार पर किया जाए.
* अगर वित्तीय योगदान शून्य है तो एक फॉर्मूले का ईज़ाद किया जाए जो शादी की न्यूनतम अवधि का आकलन करे संपत्ति के बॅटवारे के हेतु और उस एक फॉर्मूले का ईज़ाद हो जो योगदान के बारे में सही रूप से निरूपण कर सके.
* शादी से पूर्व इक़रारनामे (pre-nuptial agreement) को कानूनी मान्यता दी जाए.
* इस बात को बहुत तीव्रता से महसूस किया जाता रहा है कि असफल वैवाहिक सम्बन्धो के चलते पत्नियों को गहरे वित्तीय संकट का सामना करना पड़ता है. विवाह एक संस्था है जो अगर ना चले तो एक लिए पुरस्कार (पत्नी) और एक लिए सजा नहीं होना चाहिए (पति). अगर पत्नी गहरे वित्तीय संकट का सामना कर रह है तो उसकी दूरी के लिए व्यापक प्रबंध किया जाना चाहिए ना कि निरीह पति को इसके लिए दण्डित किया जाना चाहिए. इस सन्दर्भ में हमारा सुझाव ये है है कि:
# हिन्दू विवाह उत्तराधिकार एक्ट 2005 का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए. स्त्री का हिस्सा जो उसके माता-पिता के घर बनता है उसको या तो शादी के दौरान या तलाक़ की अर्जी देने के समय (किसी भी पक्ष के द्वारा) अपने आप दे देना चाहिए.
# अगर स्त्री बेरोजगार है या जिसका कैरियर एक लम्बे अंतराल से बाधित हो गया हो तो इस तरह के महिलाओ के भरण पोषण की जिम्मेदारी और उन्हें रोजगार मुहैय्या कराने की जिम्मेदारी सरकार की होनी चाहिए बजाय इसके कि पति पर इस तरह का भार डाला जाए. इस तरह की पत्नियों के वित्तीय संकट दूर करने के लिए “तलाकशुदा पत्नी कल्याण कोष” का गठन किया जाना चाहिए।
Reference/Credit:
This is Hindi version of a letter addressed to the Parliamentarians prepared by the Men’s Rights Association.The Hindi version has been prepared by the author of this blog post.

संपत्ति का अर्जन कई वर्षो की मेहनत का परिणाम होते है ना कि कुछ वर्षो के वैवाहिक संग का. असफल वैवाहिक सम्बन्धो के चलते अपनी गाढ़ी कमाई से अर्जित संपत्ति से हाथ धोने के वजह से पतियो के आत्महत्या के दर में खासी वृद्धि देखी जायेगी जो कि पहले से ही पत्नियों के आत्महत्या के दर की दुगनी है. अपराध दर में भी इस वजह से वृद्धि देखी जायेगी।
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