हिन्दू विवाह अधिनियम में शादी के पूर्व समझौते को कानूनी मान्यता देने में हिचक क्यों है?
हिन्दू जीवन पद्धति में विवाह को एक संस्कार का दर्ज दिया है लेकिन आधुनिक जीवन शैली में ये संस्कार कम और कॉन्ट्रैक्ट ज्यादा हो गया है. ये एक दुखद स्थिति है लेकिन बदलते समय का शायद यही तकाज़ा है. कितने खेद की बात है कि जो रिश्ते विश्वास और आपसी प्रेम पे टिके रहते थे आज एक मज़ाक सा बन गए है. विश्वास और प्रेम की रक्षा अब आपसी सौहार्द के जरिये ना होकर कानूनी गणित के भरोसे होती है. लिहाज़ा जो कटुता सिर्फ बड़े शहरो में पति और पत्नी के बीच दिखती थी वो अब कस्बो और ग्रामीण क्षेत्रो में भी व्याप्त हो गयी है. सरकार की नियत यदि मान भी ली जाए कि हिन्दू विवाह अधिनियम में जो भी संशोधन किया गए है वो बदलते समय के अनुरूप है और पति पत्नी के हितो की रक्षा करते है तो भी सच्चाई यही है कि ये पति पत्नी के संबंधो का सिर्फ नाश ही करते है.
इसकी वजह ये है कि हमारे यहाँ कानून की रफ़्तार क्या है और ये किस तरह से काम करता है ये सब जानते है. स्त्रियों की पक्षधरता को आतुर सामाजिक व्यवस्था और कानूनी व्यवस्था ने कम से कम ये तो सुनिश्चित ही कर दिया है कि पुरुष हाशिये पे पड़ा सिसकता रहे. अब नया संशोधन देखे हिन्दू विवाह अधिनियम में कि ये पत्नी को तो तलाक की याचिका का विरोध करने की आज़ादी देता है लेकिन पुरुषो को ये अधिकार नहीं। अगर कुछ कसर रही गयी थी पुरुषो को शादी करने की गलती करने के लिए तो वो नए अधिनियम में संपत्ति के बटवारे से सम्बंधित कानून ने पूरा कर दिया कि अगर तलाक आपसी सहमती से होता है तो पति की संपत्ति में पत्नी की हिस्सेदारी भी बनती है.
ये लगभग तय हो गया है कि अगर अब कोई हिन्दू विवाह पद्धति से शादी करता है तो वो सुख और समृद्धि की कल्पना करना छोड़ दे. ये लगभग एक सजा सरीखा हो गया है. ये बात समझाने में दिक्कत होती है मुझे कि जिन संबंधो में विश्वास का लोप हो गया हो वहा कानूनी चाबुक चला देने भर से क्या सम्बन्ध टिके रह जायेंगे ? सेव इंडिया फॅमिली फाउंडेशन जो पुरुषो के अधिकारों के रक्षा करने में एक अग्रणी संस्था है का कहना बिलकुल सही है कि इस तरह के दमनकारी कानून केवल स्त्री पुरुष के बीच वैमनस्यता को और घना करेंगे। प्रकाश ठाकरे जो सेव इंडिया फॅमिली फाउंडेशन नागपुर शाखा से जुड़े एक कर्मठ कार्यकर्ता है का कहना उचित जान पड़ता है कि जिस तरह से कानून का दखल मानवीय रिश्तो में लगातार बढ़ता जा रहा है उसकी परिणिति केवल संबंधो का विनाश ही सुनिश्चित करती है. प्रकाश ठाकरे क्योकि खुद भुक्तभोगी है और दहेज़ से सम्बंधित मुकदमे में एक लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद सफलतापूर्वक बाहर निकल आये है लिहाज़ा इनकी बातो में एक कडुवी सच्चाई झलकती है.
प्रकाश ठाकरे का ये सुझाव गौर करने लायक है कि वर्तमान संशोधन जो कि संपत्ति के बटवारे की बात करता है इससे बेहतर है विवाह पूर्व समझौते को भारत में कानूनी दर्ज दिया जाए ताकि अगर शादी के बाद तलाक की नौबत आती हो तो कई प्रकार की उलझनों और समस्याओ से बचा जा सके. ये बिलकुल सही है प्रकाश जी का कहना कि आखिर कानून ही सब बात का निर्धारण क्यों करे ? पति पत्नी ही विवाह पूर्व समझौते के तहत क्यों नहीं अपने रिश्ते को क्या दिशा देनी है तलाक के बाद वो खुद क्यों नहीं निर्धारण करते? अभी तो हालत ये है कि शादी के टूटने के बाद कोर्ट बटवारे का निर्धारण करेगी, बच्चो को कौन और कैसे संभालेगा ये भी कोर्ट बतायेगी। इतने दुश्वारियों से आसानी से बचा जा सकता है अगर विवाह पूर्व समझौते को कानूनी जामा अगर पहना दिया जाए तो.
ये बता देना आवश्यक होगा कि हिन्दू विवाह अधिनियम में जो भी बदलाव किया जा रहा है वो पश्चिमी देशो में आधारित कानूनों पे आधारित है. हैरानगी इस बात पर हो रही है कि आपसी सहमती से तलाक के बाद संपत्ति बंटवारे कैसे करना है इस जटिल संशोधन को तो अपना लिया लेकिन इससे आसान तरीका जो कि विवाह पूर्व समझौता हो सकता था उसे कानूनी शक्ल देने की जरूरत नहीं समझी गयी ? ये बताना उचित रहेगा की इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट के तहत आप चाहे तो ऐसा विवाह पूर्व समझौता कर सकते है. बड़े शहरों में तो ये कुछ कुछ प्रचलन में है भी पर इसका अस्तित्व अभी कम लोकप्रिय है. उसकी एक वजह ये है कि न्यायालय अभी इस तरह के कांट्रेक्ट पर संदिग्ध रूख रखती है. अगर इस तरह के विवाह पूर्व समझौते को जो कि पश्चिमी देशो में खासे लोकप्रिय है अगर भारत में लागू हो जाए तो पति और पत्नी दोनों की फजीहत होने से बच जायेगी. कोर्ट का दखल भी ना के बराबर हो जाएगा। पश्चिमी देशो में इस तरह के समझौते से संपत्ति निर्धारण मे आसानी होती है और शादी के टूटने के बाद दोनों को सही दिशा देने में ये सहायक है. इस तरह के समझौते जो भारत में सिर्फ कॉन्ट्रैक्ट एक्ट के तहत ही किये जा सकते है अगर विवाह अधिनियम में शामिल कर दिया जाए तो बहुत से समस्याओं से बचा जा सकता है और न्यायालय का भी बोझ घटेगा.
खैर बेहतर तो यही रहेगा कि शादी एक संस्कार ही रहे जिसकी आधारशिला प्रेम और विश्वास पे टिके। अगर ये संभव ना हो तो कम से उन रास्तो को चुने जो शादी के टूटने के बाद पति और पत्नी के सम्मान की रक्षा कर सके. विवाह पूर्व समझौते इस दिशा में एक सराहनीय कदम हो सकता है जो शादी के टूटने के बाद कोर्ट में पति पत्नी का समय और इज्ज़त दोनों को तार तार होने से बचाते है.
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