मुजफ्फरनगर के दंगे: कुछ कडवे भयानक सच जिनका जिक्र ना हुआ!
अखिलेश यादव जब भारतीय राजनीति में अहम् किरदार अदा करने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो कुछ लोगो में शायद ये झूठी आस जाग उठी कि शायद एक युवा चेहरा कुछ बेहतर परिवर्तन ला दें. लेकिन सिर्फ चेहरे बदलने से चाहे वो युवा ही क्यों ना हो तब तक बात नहीं बनती जब तक आप के पास स्पष्ट नीति ना हो. हुआ भी वही लोक लुभावनी योजनाओं के दम पर बनी ये सरकार आज ना सिर्फ विवादों में फँस गयी है जहा नौकरशाह सहमे से है बल्कि नित नए दंगो ने प्रदेश को अशांत क्षेत्र बना दिया है. मुज़फ्फरनगर के दंगे वीभत्स तस्वीर पेश करते है और ये बताते है कि राजनेता किस हद तक गिर सकते है अपने प्रभाव को बचाने के लिए.
हम कानून राज की बात करते है और दामिनी बलात्कार काण्ड पर इस देश में बहुत उबाल उठा लेकिन मुजफ्फरनगर में इस दंगे से पहले कितने बलात्कार हिन्दू औरतो के साथ मुस्लिमो ने किये उसको किसी सरकार ने संज्ञान में लेने की जरुरत क्यों नहीं महसूस की? इसकी वजह से सात सितम्बर को जाट समुदाय ने एक पंचायत बुलाई गयी बहु बेटियों के सुरक्षा के लिए. इसमें शामिल होने के लिये जा रहे लोगो पे हमले हुए और उसके बाद स्थिति बेकाबू हो गयी. जब किसी सरकार के पास नीति नहीं होती तो ताकतवर चेहरे कठपुतली की तरह सरकार को नचाते है. यही हाल इस वर्तमान सरकार का भी है. दंगे किस कारण से हुए ये तो कई खबरों का विषय बन गयी है लेकिन इस जरूरी तथ्य पर शायद चर्चा ना हुई हो कि किस तरह खतरनाक हथियारों का जमावाड़ा जिसमे ऐ के 47 बंदूके तक शामिल है मुस्लिम वर्ग में इकठ्ठा है! हैरानगी की बात है कि मस्जिद जो इबादत का ठिकाना होना चाहिए इन हथियारों को छुपाने का केंद्र बनती जा रही है. इंटेलिजेंस विभाग क्या सिर्फ छूरी कट्टे की तफ्तीश के लिए बनी है?
ये केंद्र सरकार और राज्य सरकार के इन विभागों से पूछा जाना चाहिए कि जब धार्मिक स्थल इस तरह के आतंकी गतिविधियों का ठिकाना बन जाए तो उसके पास क्या रास्ते है इनको समाप्त करने के? या अल्पसंख्यक वर्ग के लोग मनमानी करे और प्रशासन खामोश रहे तो उसके क्या नतीजे होंगे? क्योकि ये तय है कि अगर कार्यवाही हुई तो वही मुस्लिमो के साथ भेदभाव हो रहा है, उन्हें सताया जा रहा है, फँसाया जा रहा है इस तरह का शोर हर तरफ से उठेगा। इसलिए अगर सरकार के पास हिम्मत ना हो तो कम से कम सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट इस तरह के भयानक सच को स्वतः संज्ञान में लेकर केंद्र और राज्य सरकार को विवश करे ये बताने के लिए कि इसके रोकथाम के लिए इनके पास क्या तरीके है और अब तक इन्होने क्या किया है?
गुजरात के दंगो पे गोधरा का सच भुलाकर सेक्युलर मीडिया ने इस बात का बहुत रोना रोया कि गुजरात सरकार ने समय रहते कार्यवाही नहीं की तो अब उत्तर प्रदेश में जो हमने देरी देखी, तथ्यों को नष्ट करके मुस्लिम वर्ग को राहत पहुचाने की कोशिश देखी उसके क्या मतलब निकाले जाए? यहाँ तक कि केंद्र सरकार भी ये कह रही है कि दंगो के भयावहता के बारे में प्रदेश सरकार ने उसे अँधेरे में रखा. खैर इस देश की राजनीति ये हो गयी है कि महिलाओ और अल्पसंख्यको को लुभाओ। उनके हर कुकर्मो पे पर्दा डाल दो. हो सकता है तात्कालिक रूप से महिलाओ और अल्संख्यको को ये सब भला लगे. लेकिन इसका दूरगामी परिणाम ये होगा कि उन महिलाओ और मुस्लिमों को तकलीफ झेलनी पड़ेगी जिनका इस गन्दी राजनीति से कोई वास्ता नहीं होगा। और सबसे बड़ा नुक्सान तो इस देश को होगा जिसने आज़ादी के बाद इस तरह के अलगाववादी और आसुरी नेताओ के उदय की कल्पना तक ना की होगी।
References:
RECENT COMMENTS