ब्लॉगर को पत्रकार बनने की कोई जरूरत नहीं !!!
इस मुद्दे पे लिंक्डइन के एक प्रतिष्ठित फोरम में आयोजित चर्चा में विदेशी और देशी मीडिया के अति सम्मानित पत्रकार, मीडिया समूह के मालिको और पारंपरिक मीडिया से हटकर सोशल मीडिया का प्रतिनिधत्व करते सम्मानित ब्लागरो ने गंभीर चर्चा की. इस चर्चा में मुख्य मुद्दा ये रहा कि ब्लॉगर को पत्रकार माना जाए कि नहीं. पारंपरिक मीडिया से जुड़े अधिकांश लोगो ने सतही कारण गिनाते हुए ब्लॉगर को पत्रकार का दर्जा देने से साफ़ इनकार कर दिया. इनका ये कहना था कि इनमे वो प्रोफेशनल दक्षता नहीं है जो कि एक पत्रकार में पायी जाती है. इस समूह का ये भी मानना था कि पत्रकार पत्रकारिता का कोर्स करके और कार्य कुशलता हासिल करके मीडिया के क्षेत्र में आते है लिहाजा इनके पास बेहतर आलोचनात्म्क वृत्ति होती है, रिपोर्टिंग स्टाइल बेहतर होती है और ये किसी मुद्दे पे पर बहुत सुलझी हुई प्रतिक्रिया देते है. इस वजह से ये ब्लॉगर से कही बेहतर होते है. पर मेरी नज़रो में चर्चा में शामिल बड़े नामो ने इस अति महत्त्वपूर्ण दृष्टिकोण की उपेक्षा कर दी: एक ब्लॉगर को एक अच्छा पत्रकार बनने की जरुरत ही क्या है ?
इस बात को बहुत अच्छी तरह से महसूस किया जा सकता है कि ब्लागरो के लगातार बढ़ते प्रभाव ने पारंपरिक मीडिया में एक खलबली सी मचा दी है. खैर इस मुद्दे पे पारंपरिक मीडिया से जुड़े पत्रकारों से मै उलझना नहीं चाहता. मै तो उन ब्लागरो को जो कि एक अच्छा पत्रकार बनने की उम्मीद पाल कर ब्लागिंग आरम्भ करते है उनको यही सन्देश पहुचाना चाहता हूँ कि एक अच्छे पत्रकार के रूप में अपना सिक्का गाड़ने कि सोच से ये सोच लाख गुना बेहतर है कि ब्लागिंग में जो अद्भुत तत्त्व निहित है उनको अपना के संवेदनशील मुद्दों को बेहतर रूप से जनता के बीच पहुचाएं.
मेरा ये मानना है कि पत्रकार और ब्लॉगर में भेद बना रहे. ये अलग बात है कि एक अच्छा पत्रकार और एक सिद्ध ब्लॉगर दोनों लगभग एक सी ही उन्नत सोच और लगभग एक सी ही कार्यशैली से किसी मुद्दे पर काम करते है. लेकिन इतनी समानता के बावजूद ब्लॉगर को आधुनिक पत्रकारिता के सांचे में नहीं ढलना चाहिए जिसमे पत्रकारिता का एक धंधे में रूपांतरण हो चुका है अपने मिशनरी स्वरूप से. ये बात भी हमको नहीं भूलनी चाहिए कि पारंपरिक मीडिया से जुड़े पत्रकार और संपादक आज के समय में किसी भी मुद्दे पे भ्रामक और स्वार्थपरक रूख रखते है. नीरा राडिया जैसे लोगो का दखल और प्रायोजित सम्पादकीय इसके सर्वोत्तम उदाहरण है.
इसका दूसरा उदाहरण विदेशी अखबार और मैगजीन है. इन सम्मानित समाचार पत्रों में अगर आप भारत से जुडी खबर पढ़े तो आपको विदेशी पत्रकारों का मनमाना और पक्षपातपूर्ण रूख द्रष्टिगोचर हो जाएगा. इसके बाद भी विदेशी मीडिया समूह अपनी निष्पक्षता और पारदर्शिता का हर तरफ बखान करता है. अधिकाँश ब्लॉगर किसी बाहरी दबाव से मुक्त होते है. इनपे किसी का जोर नहीं कि किसी मुद्दे को ये ख़ास नज़रिए से देखे. इनको मुद्दे को किसी भी दृष्टिकोण से प्रस्तुत करने की आज़ादी रहती है. ये अलग बात है कि सहज मानवीय गुण दोषों से ये भी संचालित होते है और किसी के प्रभाव में आ कर स्वार्थ से संचालित हो सकते है.
इस बात को पूरी तरह से खारिज किया जा सकता है कि किसी को एक अच्छे लेखक या पत्रकार के रूप में उभरने के लिए पत्रकारिता संस्थान से जुड़ना अनिवार्य होता है. ये विचार हास्यास्पद है कि अच्छा लिखने की कला का विकास पत्रकारिता संस्थान से जुड़कर होता है. एक उन्नत बोध जो समाचार के तत्त्वों से वाकिफ हो उसको आप कैसे किसी के अन्दर डाल सकते है ? इस तरह के बोध का उत्पादन थोड़े ही किया जा सकता है पत्रकारिता संस्थानों के अन्दर. ये बताना बहुत आवश्यक है कि ये आधुनिक समय की देन है कि लोग पत्रकारिता की डिग्री को अनिवार्यता मान बैठे है. यही वजह है की कुकुरमुत्ते की तरह पत्रकारिता संस्थानों की बाढ़ आ गयी है भारत में जो पत्रकार बनने की आस लिए युवको का शोषण कर रहे है.
खैर इसका मतलब ये नहीं कि पत्रकारिता से जुड़े अच्छे संस्थानों का कोई मोल नहीं. मेरा सिर्फ ये कहना है कि सिर्फ इस आधार पे ब्लॉगर और पत्रकार में भेद किया जाना उचित नहीं कि एक के पास डिग्री है और दूसरे के पास नहीं है.ब्लॉगर के पास अनुभव का विशाल खज़ाना होता है जिसकी अनदेखी सिर्फ इस वजह से नहीं की जा सकती कि इसने किसी पत्रकारिता संस्थान से कोर्स नहीं किया है !
अंत में यही कहूँगा कि ब्लॉगर को पत्रकार बनने की लालसा से रहित होकर लगातार उत्कृष्ट कार्य करते रहना चाहिए, बेहतरीन मापदंड स्थापित करते रहना चाहिए. ब्लॉगर को ये नहीं भूलना चाहिए कि वे सड़ गल चुकी पारंपरिक मीडिया से इतर एक बेहतर विकल्प के रूप में उभरे है. इनको पत्रकारों के समूह और मीडिया प्रकाशनों में व्याप्त गलत तौर तरीको से बच के रहने की जरूरत है. ब्लॉगर ये कभी ना भूले कि उसे पत्रकार जैसा नहीं वरन पत्रकार से बेहतर बनना है.
ये लेख मेरे कैनेडियन अखबार में छपे इस अंग्रेजी लेख पर आधारित है:
A Calling Higher Than Journalist
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