पिता को समर्पित दिवस पर अपने ह्रदय की कठोर बात!!

अपने पिताजी के साथ कालेज के दिनों की तस्वीर: मेरे पिता मेरे लिए पहले भी आदर्श थे और भविष्य में भी रहेंगे मतभिन्नता के बावजूद!
पिता को समर्पित दिवस, जिसे आज २१ जून को पूरे विश्व में मनाया गया, पर अपने ह्रदय की कठोर बात!! अपना इलाहाबाद शहर विचित्र है. हम कहते कुछ और है लेकिन हमारे मित्र तक वही बात पहुचकर वो बात हो जाती है जो हमने या तो कही नहीं होती या फिर वो चीज़ हमारे साथ होती ही नहीं वैसा ही उस बात का स्वरूप हो जाता है. आश्चर्य तो इस बात का है कि मित्र सक्षम है दूध का दूध और पानी का पानी करने में लेकिन वे भी जो बात का आशय नहीं होता या फिर जो वस्तुस्थिति नहीं होती उसी की चर्चा करते है. अपने पिता से मेरे सिर्फ वैचारिक मतभेद है और होना भी चाहिए लेकिन इसका स्वरूप विकृत नहीं है जैसा मेरा कुछ मित्रो ने दुष्प्रचार शहर में कर रखा है.
नजदीक के मित्रो से अपेक्षा ये होती है कि वो जो सच है उसी का पक्ष रखे ना कि मिथ्या या भ्रामक बातो को फैलाए. मुझे मित्रो से कठोरता से बात करने में कोई दिलचस्पी नहीं लेकिन अगर वे इस तरह का भ्रम मेरे बारे में फैलायेंगे तो उनसे दूरी बनाने में मुझे कोई झिझक नहीं होगी. मेरे पिता मेरे लिए पहले भी आदर्श थे और भविष्य में भी रहेंगे मतभिन्नता के बावजूद. ये शायद मेरे सक्षम मित्र हज़म नहीं करना चाहते, समझना नहीं चाहते, महसूस नहीं करना चाहते. ऐसे मित्र फिर ना तो मुझे जानते है और ना ही मेरे जीवन के किसी पक्ष से उनका कोई सही लगाव है. शायद इसीलिए वे मेरे और मेरे पिताजी के संबंधो का सतही आकलन करने भर में ही ज्यादा दिलचस्पी रखते है. खैर ऐसे लोग ना मुझे ही जानते है और ना मेरे पिताजी को!! एक पीढ़ी और उसके बाद की जो पीढ़ी होती है उसमे वैल्यूज को लेकर उठा पटक तो रहती है और ये रहनी भी चाहिए विकास की धारा को नए आयाम देने के लिए. बस कुछ इसी तरह की बात है अपने और अपने पिताजी के बीच. लेकिन ये कभी भी विकृति के स्तर पर नहीं पंहुचा और उस स्तर पर पंहुचेगा भी नहीं. हा जो लोग सिर्फ और सिर्फ नकारात्मक ख्यालात के चलते इस तरह की कल्पना के लिए विवश है वे सोचने के लिए स्वंतंत्र है लेकिन ऐसे लोगो का उस हकीकत से फासला हमेशा बना रहेगा जो मेरी तरफ है.
चलते चलते इससे इतर बात कहेंगे. आज हम ये देखते है, खासकर कोर्ट केसेज में, कि बच्चो के अधिकार को लेकर पति पत्नी आपस में लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ते है जो शायद ना उनके रिश्ते के लिए ठीक होता है और ना बच्चे के भविष्य के लिए. बच्चे के बेहतर भविष्य के लिए आवश्यक है कि बच्चे को माता-पिता का साथ बराबर अनुपात में मिले. ये भी एक खतरनाक ट्रेंड के रूप में उभरा है कि माता पिता अपनी अपनी काबिलियत को प्रमाणित करने के लिए अपने अपने कार्य क्षेत्र में इतने व्यस्त है कि बच्चे की परवरिश अपूर्ण तरीके से हो रही है. इस लाइफस्टाइल से क्या हासिल हो रहा है ये अभिभावकों को गंभीरता से समझना होगा. शायद इसी वजह से समाज का बिखराव कुछ निश्चित सा हो चला है.
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