मोदी के जीत के मायने कुछ अनकहे संदर्भो के दायरे में!

ये मोदी की भी जीत नहीं है। ये उस युवा सोच की जीत है जो अपने राष्ट्र को सचमुच विकास के राह पे ले जाना चाहता है तिकड़मी गन्दी राजनीति से ऊपर उठा कर। ये उस हिन्दू आस्था और स्वाभिमान की जीत है जिसके दायरे में संकीर्ण हित नहीं वरन संपूर्ण विश्व आता है।
मोदी के जीत में कुछ गहरे आयाम है। मोदी का जीतना एक विलक्षण घटना है। इसको कई संदर्भो में समझना बहुत आवश्यक है। ये समझने की भूल ना करे कि ये भारतीय जनता पार्टी की जीत है। ये मोदी की भी जीत नहीं है। ये उस युवा सोच की जीत है जो अपने राष्ट्र को सचमुच विकास के राह पे ले जाना चाहता है तिकड़मी गन्दी राजनीति से ऊपर उठा कर। ये उस हिन्दू आस्था और स्वाभिमान की जीत है जिसके दायरे में संकीर्ण हित नहीं वरन संपूर्ण विश्व आता है। ये उसी हिन्दू आस्था की जीत है जिसे सदियों से दासता के आवरण में रखकर खत्म करने की कोशिश की गयी हर तरह के आक्रमणकारियों के द्वारा लेकिन जिसने दम तोड़ने से इंकार कर दिया। मेरी नज़रो में तो प्रथम दृष्टया मोदी की जीत इस विखंडित हिन्दू आस्था को जीवंत करने के दिशा में एक शुरुआत है जिसमे अभी कई स्वर्णिम पड़ाव आने है। मोदी में लोगो को इस राष्ट्र को सेक्युलर मायाजाल से ऊपर उठाकर सचमुच के विकास को मूर्त रूप में लाने और इसे गतिमान बनाये रखने की असीम संभावना दिखी। इस कारण उन्हें पूरे राष्ट्र ने कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक उन्हें हाथो हाथ ले लिया। इस आकांक्षा में मोदी कितने खरे उतरते है ये वक़्त बताएगा लेकिन खरे उतरने के अलावा उनके पास विकल्प भी कोई और नहीं है। मोदी तो भारत के राजनैतिक पटल पर एक चक्रवर्ती सम्राट बन कर आ गए लेकिन इसके पहले आसुरी शक्तियों ने चुनावी माहौल में जो करतूतें की उस पर एक नज़र डालना जरूरी हो जाता है।
लोकसभा २०१४ के चुनाव प्रचार सबसे विकृत और बिल्कुल एक व्यक्ति विशेष के विरोध पर केंद्रित थे। ये बहुत दुखी कर देने वाली बात है। आप अमेरिका के राष्ट्रपति के चुनाव को देखे। वह मुद्दो पे आधारित बहस होती है। राष्ट्र हित सबसे ऊपर होता है और कुछ छींटाकशी वहा पर भी होती है लेकिन इसके बावजूद वहाँ राष्ट्र हित से जुड़े हर संवेदनशील मुद्दो पर गंभीर बहस होती है। हमारे यहाँ राहुल गांधी ने जिनके पास तो अपनी एक टीम भी थी पर युवा सोच के नाम पर मोदी के पत्नी को लेकर टीका टिप्पणी की! शायद हमारे यहाँ विकास इसी तरह किसी के निजी ज़िन्दगी के बारे में इस तरह की सोच रखकर होता है। किसी भी पार्टी ने देश हित से जुड़े मुद्दो पर अपनी राय स्पष्ट रखने की जरुरत नहीं महसूस की। वामदाल प्रकाशक/समर्थक तो लगता है जब तक अस्तित्व में है तब तक वे अपने गढ़े हुए निरथर्क शब्दों के जाल में उलझे रहेंगे और हर वो दंगे जिसमे उन्हें मुसलमानो का समर्थन हासिल हो सके उनकी सहानभूति बटोरकर वे उन्हें उभारते रहेंगे। ये मनहूस पलो को हरा रखते है ताकि जब जरुरत हो इनसे वोट मिल सके। अमेरिका आदि देशो में भी ऐसे ही टाइप के लोग है जो मोदी को गुजरात दंगो के लिए जिम्मेदार ठहराने वाली बात पे बहस तभी करते है जब भारत में चुनाव जैसे महत्वपूर्ण क्षण आते है। इसके अलावा हमारे यहाँ कुछ क्षेत्रीय दल है जिनके नेताओ के पास नीति तो कुछ नहीं सिवाय जातिगत राजनीति के विकृत मोहरो के अलावा लेकिन अकांक्षा सिर्फ यही है कि प्रधानमन्त्री कैसे बने। इनके पास भी राष्ट्र को देने के लिए कुछ नहीं सिवाय सीमित लफ़्फ़ाज़ी के कि सांप्रदायिक शक्तियों को रोकना है। जबकि सबसे गन्दी सांप्रदायिक राजनीति ये छोटे क्षेत्रीय दल खुद करते है।
सो इस बार के चुनावी संग्राम में इलेक्शन दर इलेक्शन बेहतर सोच को अपनाते मतदाताओ ने जिस तरह चादर से धूल हटाते है वैसे ही कुछ दलों को भारत के राजनैतिक नक़्शे से निकाल फेंका। ये दल अभी तक केवल विष ही बोते रहे है। इनके पास विकास के एजेंडे के नाम पर लोक लुभावन नीतियों के अलावा कुछ नहीं होता था और उसे भी ठीक से क्रियान्वित नहीं कर पाते थे। इन्होंने इतने सालो तक ना ही केवल मतदाताओ को ठगा वरन देश की संप्रुभता और अखंडता को भी तकरीबन गिरवी रख कर छोड़ा। वाम मोर्चा के सदस्यों ने तो केवल फ़ासीवाद ना उभरे हर हिन्दू विरोधी गतिविधि को जीवित रखा कांग्रेस के छुपे सहयोग के दम से और सब हिन्दू समर्थक या राष्ट्र समर्थक नायको को हिटलर की संज्ञा देते रहे। सही है जिस पार्टी ने सबसे बड़े तानाशाहों को जन्म दिया हो गरीब मज़दूरों के हितो के लड़ाई के नाम पर उनका इस तरह के मतिभ्रम का शिकार होना आश्चर्यजनक नहीं लगता। इस पार्टी विशेष के लोगो का आलोचना के नाम पर आलोचना करना कौवों के कर्कश कांव की तरह जगजाहिर है और इसीलिए इनके पेट में जब तक मोदी राज रहेगा तब तक रह रह कर पेट में मरोड़े उठती रहेंगी।
मोदी की जीत सोशल मीडिया की जीत नहीं पर हां ये जरूर है कि कांग्रेस के फैलाये झूठ का पर्दाफाश करने में इसने अहम भूमिका निभायी। अब तक कांग्रेस अपने मायाजाल को, स्व-निर्मित अर्धसत्य को लोगो पर थोपते हुए लोगो को ठगती आई। लेकिन सोशल मीडिया के दमदार इस्तेमाल ने मेनस्ट्रीम के बिके पत्रकारों जो कांग्रेस के लिए झूठ बेचते थे की दाल न गलने दी। कांग्रेस की करतूत वैसे भी सबको मालूम थी लेकिन सोशल मीडिया ने इस सन्दर्भ में युवा सोच को बेहतर ढंग से जागृत किया। एंटी इंकम्बैंसी भी हमेशा सक्रिय रहती है लेकिन मोदीराज के आने में सोशल मीडिया और एंटी इंकम्बैंसी से भी ऊपर युवाओ की इस सोच ने कामयाबी दिलाई कि अब केवल उसी को सत्ता मिलेगी जो सच में विकास करेगा या विकास लाने में काबिल होगा। इसी वजह से सडको पे हर तरफ युवा धूप में बिना किसी प्रचार के मोदी को सुनने गए, सोशल मीडिया पर मोदी से जुडी हर गतिविधि को ट्रैक किया और फिर हर गली और मुहल्लों में चाहे शहर हो या गाँव उत्साह से भरे रहे। वंशपोषित राजनीति जो समाजवादी पार्टी और कांग्रेस करती आई रही थी उसका इन्होने इस तरह से नाश कर दिया। ये पहली ऐसी लहर थी जिसका निर्माण किसी घटना विशेष ने नहीं किया। इस राष्ट्र प्रेम से ओतप्रोत लहर ने ही हर तरह के जहरीले प्रचार कि मुस्लिमो का पतन हो जाएगा को दबाते हुए हिन्दू सोच को सत्ता पे आसीन किया जिसने सदियों से पूरे विश्व को अपना समझा।
मोदी आ जरूर गए है लेकिन अब इनके सामने बेहद दुष्कर कार्य है। सो मतदाताओ को अपनी आकांक्षाओं में ना सिर्फ संयमित रहना पड़ेगा बल्कि बदलाव की अधीरता से पीड़ित ना होकर मोदी जी को अपने हिसाब से काम करते रहने देना होगा। बदलाव कोई जादू की छड़ी से नहीं आते कि आपने घुमाया और बदलाव हो गया। वर्तमान में इस राष्ट की ये दशा ये हो गयी है कि जैसे कोई गंभीर बीमारी से पीड़ित मरीज़ अंतिम साँसे ले रहा हो। सो ये सोचना कि सत्ता संभालते ही एक दिन के अंदर ऐसा मरीज़ दौड़ने भागने लगेगा केवल कोरी कल्पना है। हां मोदी को इस बात को समझना जरूर है कि अब उनके पास सिवाय अच्छा करने के और कोई अन्य विकल्प नहीं है। हिन्दुओ को अगर दिग्भ्रमित करने की चेष्टा करेंगे तो उन्हें भी हाशिये पर लाने में युवा ब्रिगेड देर ना करेगी। हिन्दू तो वैसे भी अपनी निष्कपट मन के कारण हर तरह का छल का शिकार होता आया है लेकिन अब और नहीं। इसी सोच ने इस अविश्वसनीय बदलाव को जन्म दिया और यही सोच अब इस बात को भी सुनिश्चित करेगी कि राष्ट्रहित में अच्छे कार्य होते रहे। और इसीलिए ये जरूरी है कि अब आने वाले वर्षो में कोई भी हिंदू विरोधी पार्टी अस्तित्व में ही ना आये। ये तभी संभव होगा जब मोदीराज में ईमानदारी से सार्थक बदलाव होते रहे। मोदी जी ऐसा ही करेंगे हम सब राष्ट प्रेम से जुड़े लोगो का यही मानना है।

ये जरूरी है कि अब आने वाले वर्षो में कोई भी हिंदू विरोधी पार्टी अस्तित्व में ही ना आये। ये तभी संभव होगा जब मोदीराज में ईमानदारी से सार्थक बदलाव होते रहे। मोदी जी ऐसा ही करेंगे हम सब राष्ट प्रेम से जुड़े लोगो का यही मानना है।
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मोदी से जुडी कुछ बाते: ना पक्ष में और ना विपक्ष में !

मोदी आ जरूर रहे है लेकिन उनके लिए प्रधानमंत्री का मुकुट किसी कांटो से भरे ताज के समान ही होगा। देखना यही है कि इन विषम परिस्थितियों में वे किस तरह देश को विकास के राह पे ले जाते है. सबसे बड़ी बात यही है कि हिन्दू जनमानस के भावनाओं का वो कितना ख्याल रख पाएंगे इस तरह के माहौल में जहा सिर्फ मुस्लिम अधिकार या क्रिस्चियन अधिकार ही सेक्युलर भावना का आधार बन चुके है!
चुनाव के वक्त किसी एक बड़ी लहर का होना एक विशेष घटना होती है. लहर तभी होती है जब किसी जनप्रिय नेता का अचानक निधन हो जाए दुखद तरीके से या राजनैतिक हलकों में किसी स्कैम या स्कैंडल की वजह से किसी ख़ास पार्टी की तरफ लहर का माहौल बन जाए. इसलिए मोदी के पक्ष में लहर कई कारणों से अनोखी है. एक तो ये किसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना की उपज नहीं है और दूसरी ये कि ये किसी बड़े कारण से नहीं उपजी है. इस लहर के पीछे कारण सिर्फ ये है कि लोग बदलाव चाहते है. कांग्रेस के कथनी और करनी में फर्क को देखते देखते लोग त्रस्त हो चुके है. ऐसे में नरेंद्र मोदी जिन्होंने गुजरात में अच्छा काम कर दिखाया तमाम विघटनकारी शक्तियों से सामना करते हुए वे लोगो के नज़रो में आशा की एक बड़ी किरण बन के उभरे है. और इस कदर उभरे है कि हर गली कूंचो में लोग इनके बारे में चर्चा कर रहे है. इन चर्चाओ में हर तबके के लोग शामिल है और हर उम्र वर्ग के लोग शामिल है. देहातो में आप निकल जाए वहा भी मोदी की लहर है. और ये सिर्फ सुनियोजित प्रचार के चलते संभव नहीं हुआ है बल्कि आश्चर्यजनक तरीके से मोदी में उपजे विश्वास के चलते सम्भव हुआ है.
नरेंद्र मोदी ने गुजरात में अच्छा काम किया ये तो है ही लेकिन कांग्रेस का दोहरा चरित्र लोगो ने भली भाँति समझ लिया ये एक बड़ी वजह है. लोगो ने ये समझ लिया है कि कांग्रेस राज के चलते इस देश में कुछ भी सही संभव नहीं. ये सिर्फ लोगो का शोषण करने के लिए बनी पार्टी है जिसमे नेता के नाम पर किसी एक परिवार के प्रति सम्मान रखने वाले चापलूस भरे पड़े हैं. ऐसा शायद ही कभी इस देश में हुआ हो कि किसी प्रधानमन्त्री की छवि इतने असहाय और कमजोर व्यक्ति के रूप में उभरी हो जबकि उसके पास गुणों का भण्डार रहा हों. उसकी सबसे बड़ी वजह ये थी कि कांग्रेस ने कभी भी अच्छे आदमी को ताकत नहीं सौपी. सिर्फ उन्ही लोगो को आगे बढ़ाया जिन्होंने चमचागिरी और चाटुकारिता में यकीन रखा. अच्छे लोगो को कांग्रेस ने निकम्मा बना के छोड़ा. अब की पीढ़ी ने ये कांग्रेस का चरित्र समझ लिया और वो बदलाव चाहती है. मोदी ना होते कोई और नेता इतने ही कद का होता तो वो भी लहर को जन्म दे देता. लेकिन नियति ने यह एक मौका मोदी को दिया है.
अगर हम मोदी के नज़रिये से देखे तो ये एक अच्छी घटना भी है और अच्छी नहीं भी है. वो इसलिए कि विरोधाभासों से भरे इस देश में जब आप किसी एक व्यक्ति पे इतना भरोसा कर लेते है और उससे इतनी सारी उम्मीदे पाल लेते है तो ऐसे में उसको अपने पोटेंशियल को आज़माना और सब की उम्मीदों पर खरे उतरना असंभव सा हो जाता है. लोगो का मोदी के प्रति उत्साह देख कर तो ये लगता है कि मोदी के आने के बाद क्रन्तिकारी बदलाव आएगा उस देश में जो पिछले साठ-सत्तर सालो क्या कई युगो से गुलामी के चक्र में पिसता चला आ रहा है. ये लोगो का इस कदर उम्मीदे पाल लेना, इतना उत्साह से लबरेज़ हो जाना खलता है. लोगो को उम्मीदे पालने में तार्किक और न्यायसंगत होना चाहिए ताकि आने वाला आदमी कुछ सही कर पाये वरना कुछ समय बाद लोग फिर चिढ़ने, कुढ़ने और गरियाने लगते है.
आप पहले इस देश का चरित्र देखे. जिस कांग्रेस पार्टी ने इतने सालो तक राज किया उसके पास किस तरह के नेता है. जो इनका यूथ आइकॉन है इनकी नज़रो में और जो दुर्भाग्य से इनका प्रधानमंत्री पद का दावेदार भी है वो इतनी निकृष्ट सोच रखता है कि वे किसी की निजी जिंदगी में कीचड़ उछालने से बाज़ नहीं आता जबकि यही पार्टी महिलाओं का सम्मान करने का दम्भ पालती है! ये पार्टी युवा सोच का सम्मान करने वाली के रूप में अपने को प्रमोट कर रही है. तो क्या युवाओ की सोच इतनी सतही हो गयी है कि सत्ता का मोह किसी के निजी जिंदगी के उन किस्सों को उजागर करे जिनका वर्तमान से कुछ लेना देना ना हो?
इस देश में कांग्रेस के अलावा कुछ तथाकथित सेक्युलर पार्टिया भी है जिन्हे अपने प्रोग्रेसिव होने का दम्भ है और विगत वर्षो में ये कुछ इस कदर प्रोग्रेसिव हुई कि मुख्यधारा में शामिल राजनैतिक दलों के समूह से ही इनका लोप हो गया. बल्कि राजनैतिक दल के रूप में मान्यता भी घटे वोट प्रतिशत के कारण समाप्त हो गई. लेकिन इनके कुछ प्रकाशन अभी भी इनके नाम का भोंपू बजाते रहते है बेसिर पैर के लेखो के जरिये. सो इन प्रकाशनों के जरिये ये सन्देश दिया जा रहा है कि मोदी के आ जाने से “नरम फांसीवाद” का उदय होगा और ये कुछ ऐसा ही है जिस तरह हिटलर ने सत्ता प्राप्त की थी. इस तरह की सायकोटिक और पैरानॉयड सोच की वजह से ही भारत की जनता ने इन्हे मुख्यधारा से ही हटा दिया. इनका खुद का इतिहास ही क्रूर तानाशाहों से भरा रहा है लिहाज़ा इनका इस तरह से भयाक्रांत होना और लोगो में भी बेवजह भय उत्पन्न करना इनका एकमात्र धंधा बन गया है. ये खुद कितने साफ़ सुथरे चरित्र वाले रहे है इसका नमूना तो आप पश्चिम बंगाल में देख सकते है जहा मार्क्सवादी गुंडों ने कितने सालो तक आर्गनाइज्ड बूथ कैप्चरिंग करके किसी को सत्ता में आने ना दिया. कथनी और करनी में कितना ज्यादा फ़ासला हो सकता है ये इस पार्टी ने देश में सबको दिखाया।
इसी पार्टी की विचारधारा के लोगो ने देश और विदेश की मेनस्ट्रीम मीडिया में अपने दलाल रख छोड़े है जिनका मुख्य काम यही है कि जहा दक्षिणपंथी सोच हावी होते हुए दिखे वहा पे तुरंत इस बात को प्रचारित करना शुरू कर दो कि देश की कल्चरल डाइवर्सिटी को खतरा है, मुसलमानो के बुरे दिन आ गए है, क्रिस्चियनस के बुरे दिन आ गए है इत्यादि. गुजरात के दंगो का जिन्न भी निकल कर बाहर आ जायेगा. याद करिये जब गुजरात में मोदी एक बार फिर बहुमत से जीत कर आये थे तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया उस वक्त किस नज़रिये से जीत को देख रही थी; ये देखे कि इस बात पे बहस हो रही थी कि मुस्लिमो का वोट प्रतिशत क्या रहा है और कहा पे मुस्लिमो ने वोट दिया और कहा नहीं दिया! मुस्लिम वोट के नाम पे होने वाले तमाशे को खुद मुस्लिम ही अगर सुलझा सके अपनी कबीलाई मानसिकता से ऊपर उठ कर तो बेहतर होगा. क्योकि बाहर से कोई इन्हे समझाए प्रेशर डाल कर तो खुद इनके भीतर और बाहर भी एक गलत सन्देश जाता है. लिहाज़ा इन्हे ही कुछ करना होगा ताकि इनके नाम पे होने वाले वीभत्स तमाशे बंद हो सके. पता नहीं क्यों मुस्लिमो ने हमेशा अपने को इस्तेमाल होते रहने देना पसंद किया है? इनके अंदर अभी भी बंद दिमागों का प्रभाव है जो इन्हे कभी भी वर्तमान में सही तरीके से जुड़ने से रोकता है और हर गलत ताकत से इनको जोड़ देता है. हो सकता है इनको अपने इस्तेमाल होते रहने में हित सधते दिखते है!

अमेरिका को ना पाकिस्तान में हुए हिन्दुओ पर अत्याचार दिखा और ना ही कभी उसे पाकिस्तान में कल्चरल डाइवर्सिटी खतरे में दिखी! केवल भारत में ही उसे ये खतरा दिखता है और वो भी चुनावो के वक्त या किसी और नाजुक समय में!
ऐसा नहीं कि हैलुसिनेशन का शिकार मेनस्ट्रीम मीडिया या राजनेता सिर्फ भारत में ही हलचल मचाते है बल्कि ऐसे नाज़ुक क्षणों में विदेशो में भी इस तरह के हैलुसिनेशन से ग्रसित लोग हर तरह की नौटंकी करने लगते है. अब अमेरिका में देखिये जैसे ही वहा के लोगो को मोदी के सत्ता में आने की संभावना दिखी वही पे अमेरिकी कांग्रेस में अच्छी खासी बहस छिड़ गयी कि मोदी के आगमन का मतलब कल्चरल डाइवर्सिटी को खतरा है जबकि भारत ही वो देश है साउथ एशिया में जहा कल्चरल डाइवर्सिटी सबसे स्थिर रही है. बिडम्बना देखिये कि रेसोलुशन ४१७ तब कभी नहीं लाया गया जब पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिन्दू और सिख संप्रदाय पे बर्बर जुल्म हुए और उनका प्रतिशत लगातार घटता रहा इनके पलायन की वजह से. खुद अपने देश में कश्मीरी पंडितो पे हुए जुल्म को किसी अमेरिकी संस्था ने संज्ञान में लेने की कोशिश नहीं की. इस रेसोलुशन में गुजरात दंगो के लिए मोदी को जिम्मेदार माना गया जो ये दर्शाता है कि निहित स्वार्थ के चलते सोचने वाले दिमाग कितने संकीर्ण हो जाते है. ये बहस तब हो रही है जब सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चले गहन इन्वेस्टीगेशन ने मोदी को क्लीन चिट दी और यहाँ तक कि गुजरात दंगो की दोबारा जांच की मांग को भी ख़ारिज कर दिया. गोधरा में ट्रेन में हुए नरसंहार को भी स्पेशल कोर्ट ने एक संप्रदाय विशेष को ही दोषी माना और इसमें शामिल लोगो को मौत की सजा दी. अमेरिका जो ऊँची सोच का दम्भ रखता है शायद उसे भारत की न्याय परंपरा से अधिक संकीर्ण सोच से ग्रसित और गलत ताकतों द्वारा पोषित मेनस्ट्रीम मीडिया के कुछ प्रकाशनों पे ज्यादा ही भरोसा है.
मोदी आ जरूर रहे है लेकिन उनके लिए प्रधानमंत्री का मुकुट किसी कांटो से भरे ताज के समान ही होगा. देखना यही है कि इन विषम परिस्थितियों में वे किस तरह देश को विकास के राह पे ले जाते है. सबसे बड़ी बात यही है कि हिन्दू जनमानस के भावनाओं का वो कितना ख्याल रख पाएंगे इस तरह के माहौल में जहा सिर्फ मुस्लिम अधिकार या क्रिस्चियन अधिकार ही सेक्युलर भावना का आधार बन चुके है! क्या वो विखंडित हिन्दू आस्था को एक बेहतर मजबूती दे पाएंगे? क्या इतनी सारी उम्मीदे पाले असंख्य लोगो की आशाओ पे मोदी खरे उतर पाएंगे? ये तो सिर्फ अब आने वाला वक्त ही बतायेगा. बेहतर तो यही है कि इतनी सारी उम्मीदे पालने से अच्छा है कि मोदी को अपने हिसाब से चलने दिया जाए!
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