थ्री चीयर्स फार माय आलोचक ब्रिगेड! आप ना होते तो मुझ लेखक का सम्मान काहे बढ़ता!
लेखक को भारतीय समाज में बड़ी संदेह की नज़रो से देखा जाता है. मेरा तो ये मानना था ही पर अरुंधती रॉय का भी ऐसा ही मानना है ये मुझे ना मालुम था. वो तो मैंने गलती से उनके एक भाषण का अंश सुन लिया तो देखा वो रोना रो रही थी अमेरिका में कि साहब भारत में तो हम जैसे लेखको को लिखने बोलने की आज़ादी ही नहीं है. कश्मीर में कितना अत्याचार हो रहा है और हमको इसके बारे में तो कुछ बोलने ही नहीं दिया जा रहा है. उनकी बात सुन के तो गुस्सा आ ही रहा था पर उस सें ज्यादा इस बात पे गुस्सा आ रहा था कि इतने बड़े बकवास को अमेरिकन कितने मगन होके सुन रहे थें. अच्छे लेखको को तो कोई नहीं सुन रहा पर अरुंधती राय जो तथ्यों को तोड़ मरोड़कर सफ़ेद झूठ का पुलिंदा तैयार करती है उसके बहुत से ग्राहक विदेशो में पड़े है. नाम, पैसा और शोहरत सब इनके पास है.
खैर मै अपनी बात पे आता हूँ. इस बात से मुझे बहुत संतोष मिला कि अपने कुछ एक कर्मो की वजह से भारतीय समाज में असम्मानीय और अप्रासंगिक से हो चले गंभीर लेखको की इज्ज़त में चार चाँद लग गया. मतलब मेहनतकश भारतीय सोसाइटी में पलने बढ़ने वाला ये निरीह जीव भी अगर ढेला फेंके तो ढेला सीधा मंगल ग्रह तक पहुच सकता है. यानी इनके भी कर्म रंग ला सकते है. इसके लिए मै अपने आलोचक भाई बंधुओ और आलोचक बहनों को विशेष धन्यवाद देना चाहूँगा कि समय समय पर अपनी बेकार की “भौकन क्रिया” से मतलब अपनी निरर्थक आलोचना से मेरे प्रभाव का वैलेऊ एडिशन (value addition) करते रहते है. सितम्बर चार,२०१२, को अपने काले कोट को ध्यान में रखते हुए एक प्रतिष्ठित वेबसाइट पे माननीय जस्टिस भक्तवत्सला के समर्थन में एक याचिका पर अपने हस्ताक्षर किये जिसमे ये मांग की गयी थी कि माननीय जस्टिस भक्तवत्सला के सराहनीय योगदान को देखते हुए इनके प्रमोशन पे विचार किया जाए. जैसा कि होता है वेबसाइट पे मेरे नाम से एक सन्देश का एक नोट आया कि आपको अपने समर्थन के लिए धन्यवाद दिया जाता है. पर मुझे पता नहीं था कि इस के बाद क्या गुल खिलने वाला था.
खैर इस याचिका में ये कहा गया था कि “नारीवाद से संचालित (मेरे लिए तो नारीवाद से पीड़ित) इस भारत देश में माननीय जस्टिस भक्तवत्सला का काम सराहनीय है क्योकि अदालतों में व्याप्त नारीवादी तंत्र को धता बताकर पति पत्नी के मामलो को वाकई विवेक की रौशनी में निर्णीत करना लोहे के चने चबाने के बराबर है. माननीय न्यायधीश ने पुरुष विरोधी भारतीय मीडिया को चेताते हुएँ और नारीवादी विचारधारा को प्रभावहीन करते हुएँ ऐतहासिक निर्णय दिए है. इनके योगदान को नज़रंदाज़ करना संभव नहीं जिसकी वजह से सेक्शन ४९८ (a) का दुरुपयोग बिल्कुल कम हो गया जो कि महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है. इस वजह से इस सेक्शन के तहत दायर फर्जी मुकदमो से प्रताड़ित पतियों को काफी राहत मिली है जिनसे इनके आत्महत्या आदि घटनाओं में काफी कमी आई है. ये सर्वविदित है कि इस सेक्शन के तहत दायर फर्जी मुकदमो की बाढ़ ने पतियों की आत्महत्या दर में काफी इजाफा किया है. भारत में इस तरह के क्रान्तिकारी सोच रखने वाले न्यायधीशो की सख्त कमी है और इस याचिका के जरिए ये अपील की जाती है कि इस तरह के न्यायधीशो में वृद्धि हो और माननीय जस्टिस भक्तवत्सला का प्रमोशन सुनिश्चित किया जाए.”
अभी मैंने इस याचिका पर हस्ताक्षर किया ही था कि एक अन्य प्रतिष्ठित ऑनलाइन मैगजीन काफिला ने कुछ ही घंटो के बाद जोर शोर से माननीय जस्टिस भक्तवत्सला को हटाने के लिए अभियान शुरू कर दिया. ये बताना जरूरी हो जाता है कि इस ऑनलाइन मैगजीन में मै अपनी उपस्थिति अपनी प्रतिक्रियाओ के माध्यम से दर्ज करता रहा हूँ. मै इसका कुछ और मतलब नहीं निकालूँगा सिवाय इसके कि जब भी आप अच्छा करने चलते है एक आंधी आपके खिलाफ चलने लगती है. बहरहाल इस याचिका में क्या कहा गया है ये जानना जरूरी है. इस याचिका में ये मांग की गयी है कि ” जस्टिस भक्तवत्सला ने भारतीय संविधान जिसकी रक्षा की शपथ उन्होंने ली है, जो कि समस्त नागरिको, स्त्री और पुरुष, सबको बराबर का अधिकार देता है का गहरा अनादर किया है. इस वजह से ये अब इस अति महत्त्वपूर्ण पद के दायित्व निर्वाहन के अयोग्य साबित हो गए है. इस याचिका पे हस्ताक्षर के जरिए भारत के प्रधान न्यायधीश माननीय जस्टिस श्री एस एच कपाडिया से अनुरोध है कि जस्टिस के भक्तवत्सला को अपने विवादास्पद बयानों की वजह से उनके पद से तुरंत हटाया जाए.”
मैंने दोनों पक्ष पाठको के सामने रख दिया. बाकी आप सम्मानित पाठकगण जाने. अब आप लोग समझे बुझे कि इसमें सही-गलत, उचित-अनुचित क्या है. मै तो एक बार फिर इस धरा के सबसे निरीह जीव लेखक के बारे में सोचने लग गया हूँ. अभी तो इस बात से खुश हूँ कि मेरे आलोचकों ने मेरी कलम को एक नयी उंचाई दे दी, लेखकीय यात्रा में एक नया अध्याय जोड़ दिया. कम से कम इतना तो साबित हुआ कि जब एक लेखक की कलम से बात निकलती है तो वो सिर्फ दूर तक ही नहीं जाती बल्कि देर सबेर असर भी लाती है. साथ साथ इस चिंतन से माथे में बल पड़ गया है कि आप ने जरा सी चिंगारी क्या पैदा की कि अन्धकार रूपी बारिश उसें बुझाने के लिए बरसने लग जाती है. इस देश में ऐसा कब तक होता रहेगा मित्रो ?
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