तीन आवारा कुत्ते जिन्होंने रात भर रखवाली कर त्यागे हुए नवजात शिशु की जान बचाई
इस जगत की सत्ता लगता है ईश्वर के हाथो से निकलकर शैतान के हाथो में चली गयी है। अगर ऐसा न होता तो दुनिया में चीज़ें इतनी उलझाव भरी न होती और हर साफ़ सुथरी चीजों में हम गलत मायने न ढूँढ रहे होते। इस दुनिया में अच्छे दोस्त दुश्मन बन जाते है पल में, माता पिता बच्चो को जुर्म और धूर्तता सिखाते है जिन्हें वो बड़े जतन से पालते पोसते है, आपके विश्वास को बार बार छला जाता है उनके द्वारा जो विश्वसनीय होते है, प्रेमी जो प्यार के वादे करते है बड़े बड़े पर एक दुसरे से अलग होते है जरा सी बात पर, दोस्त दुश्मन से ज्यादा ख़तरनाक साबित होते है और पति पत्नी जो आपस में रीति रिवाजो से जुड़ते है उनके सम्बन्ध वैसे ही होते है जैसे कोई एक सेक्स वर्कर से स्थापित करता है।
नेट पर किसी लेख के लिए शोध करते वक़्त मुझे कुछ सोचने पर विवश कर देने वाली तस्वीर हाथ लग गयी। तपन मुखर्जी के द्वारा ली गयी इस तस्वीर में एक नवजात शिशु को घेरे तीन सड़क पर घूमने वाले कुत्ते घेर कर बैठे थें। इस के नीचे जो समाचार छपा था उसमे इस बात का उल्लेख था कि इन कुत्तो ने ना सिर्फ रात भर इस शिशु की रखवाली की वरन उस भीड़ के साथ साथ पुलिस स्टेशन भी गए। वापस तभी लौटे जब इस शिशु को इस तरह के बच्चो का पालन पोषण करने वाली संस्था के हवाले करने की प्रक्रिया पूरी हो गयी और बच्चा संस्था के हवाले कर दिया गया।
इस नवजात शिशु को कोई लोक लाज के खातिर या गरीबी के हाथों विवश होकर 23 मई 1996 की शाम को कलकत्ता के किसी इलाके में कूड़ेदान के समीप छोड़कर चला गया था। सोचने को लोग ये सोच सकते है कि जनसँख्या विस्फ़ोट से ग्रसित से इस देश में इस तरह की घटना बहुत मामूली है। जहा लोग भ्रूण हत्या जैसे कुकर्मो में लिप्त है, जहा लोक लाज को बचाने की नौटंकी के चलते तहत कोई किसी स्तर तक गिर सकता है वह पे इस तरह की खबर को ज्यादा तूल देने की जरुरत क्या है। लेकिन इस सब के बावजूद मुझे खासी तकलीफ हुई इस तस्वीर को देखकर। इस दुनिया में ऐसे बहुत पति पत्नी है जो बच्चो की चाह में उम्र गुज़ार देते है पर औलाद के सुख से वंचित रह जाते है। दूसरी तरफ जिनके पास बच्चे है वे या तो उन पर अत्याचार करते है सही तरीके से भरण पोषण न करके या फिर उन्हें इस तरह से मरने के लिए खुले में छोड़ कर चले जाते है।
इस युग में मनुष्य भले ही हैवान हो चला हो पर जानवरों ने ईश्वर की सत्ता की लाज रखते हुए उसके अंश को अपने में समेट कर रखा हुआ है। ये समझते है कि वास्तविक संवेदनशीलता किस चिड़िया का नाम है और मनुष्य ने जो भारी भरकम शब्दावली विकसित की है जैसे कि “दायित्व बोध” उनको किस तरह से चरितार्थ करना है। नहीं तो ये सब बातें किसी भारी भरकम किताबो में दम तोड़ रही होती। कितनी बड़ी बिडम्बना है कि नए नए कारण खोज कर चाहे बन्दर हो या कुत्ते इन्हें मौत के घाट उतारा जा रहा है। पर मनुष्य अपने आप को बचाता जा रहा है जबकि वो जंगल पर्वतो को अपने स्वार्थ के लिए लगातार नष्ट करने का दोषी है, सारे मानवीय संबंधो का गला घोंटने का जिम्मेदार है। इस परिपेक्ष्य में ये सड़क छाप कुत्ते बधाई के पात्र है जिहोने ईश्वर की सबसे अनमोल कृति मनुष्य को ईश्वरीय गुणों से साक्षात्कार करवाया और ये बताया की सच्ची हमदर्दी किसे कहते है। पत्रकार पिनाकी मजूमदार भी बधाई की पात्र है कि इस खबर को जिस संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करना चाहिए था उन्होंने ठीक वैसा ही किया। इन्होने ये साबित किया कि अभी भी लोकतंत्र के ढहते चौथे स्तम्भ को कुछ लोग मजबूती से सहारा देकर टिकाये हुए है, इसकी गरिमा में वृद्धि कर रहे है।
Pics Credit and References:
Photograph by Tapan Mukherjee, courtesy Aajkaal, a Bengali daily (Dated 25th May 1996)
Original News Report Filed By Pinaki Mujumdar
Savage Humans and Stray Dogs, a book by Hiranmay Karlekar, Sage Publications 2008
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