अँधेरे के मनहूस गर्त में डूबी उत्तर प्रदेश सरकार

ये है करेली पॉवर हाउस. आप खुद देखे किस तरह ड्यूटी आवर्स में इस पर ताला लगा है. ये तब होता है जब कोई बड़ी फाल्ट आ गयी होती है. कर्मचारी बजाय शिकायत सुनने के इस तरह ताला लगाकर गायब हो जाते है.
लैपटॉप बाटती उत्तर प्रदेश की सरकार को शायद इस बात की परवाह नहीं कि बिन रौशनी के ये लैपटॉप कूड़े के ढेर में फेंकने लायक चीज़ है. इस सरकार को शायद ये एहसास नहीं कि जनता इस तरह के वाहियात स्कीम से खुश नहीं होती। जनता तब प्रसन्न रहती है जब जनता से सरोकार रखती आवश्यक सेवाए सुचारू रूप से पहुचती रहती है. लेकिन जिस सरकार में मंत्री और अफसर दोनों बेलगाम घोड़े की तरह हो गए हो वहा फरियाद करने का क्या औचित्य? इलाहाबाद एक महत्वपूर्ण शहर है ये बताने की जरूरत नहीं लेकिन यहाँ जिस तरह सरकारी संस्थाए काम कर रही उससे लगता नहीं लखनऊ में बैठे आकाओ या इलाहाबाद में खुद इस सरकार के नुमाइन्दो को कोई फिक्र है यहाँ के हालातो से. इलाहाबाद में जब सारे शहर में दशहरे की धूम थी शहर का एक ख़ास इलाका भावापुर जो करेली पॉवर हाउस से संबद्ध है अँधेरे में डूबा रहा दो दिनों तक लगातार। सिर्फ दो दिनों तक अँधेरे में डूबे रहता तो कोई बड़ी बात नहीं थी. ये इलाका पिछले ढेढ़ महीने से बिजली की समस्या से जूझ रहा. हद तब हो गयी जब दशहरे के दिन और उसके अगले दिन १८ घंटो से अधिक बिजली बेवजह गायब रही. और यहाँ का एक मंत्री को ये सफ़ेद झूठ बोलते लाज नहीं आई कि इलाहबाद शहर में तो २१ घंटे बिजली आती है!
मायावती के शासन काल में कम से कम सरकारी अफसरों में एक जवाबदेही का भय था. यही करेली का सबस्टेशन सबसे बेहतर पॉवर हाउस में से एक था मायावती के शासन में. पब्लिक की समस्या को सुनने के लिए एक टेलीफोन भी था जिससे कम से कम शिकायत तो दर्ज हो ही जाती थी. समाजवादी पार्टी के सत्ता में आते ही इस पॉवर स्टेशन के अधिकारी निरंकुश हो गए. टेलीफोन कहा गया पूछने पर कर्मचारी बत्तमीजी से बतायेंगें कि खो गया है! दशहरे के अवसर पर किसी इलाके की बिजली अट्टारह घंटो से अधिक काट देना एक जुर्म है क्योकि शिकायत करने पर कुछ घंटो में बिजली देने का प्रावधान है.लेकिन इस करेली पॉवर स्टेशन में फैली दुर्दशा इस सरकार में फैली अराजकता को स्पष्ट दर्शाती है और ये दिखा जाती है कि इस सरकार की कार्यप्रणाली किस प्रकार की है.
इस पॉवर स्टेशन में पिछले डेढ़ महीनो से समस्या चल रही है. पहले पहल पूछने पर ये बताया जाता था कि फीडर बदले जा रहे है और उसके बदलते ही इस इलाके में ट्रांसफार्मर फूंकने इत्यादि की समस्या हल हो जायेगी. इस बाबत अधिकारियों के बयान कई दिनों तक अखबार में छपते रहे और जनता धैर्य धारण किये रही. बिजली के अधिकारी लोगो को आप अक्सर सुनते मिल जायेंगे कि साहब फला केंद्र पर कर्मचारियों को पब्लिक ने पीटा. अधिकारी इसके पहले अपनी करतूतों को जाहिर भी कर दिया करे तो बेहतर रहेगा! इस करेली पॉवर स्टेशन पे फैली अराजकता को देखे और ये पाठक सोच कर बताये जब पानी की किल्लत, गर्मी और उमस से जूझती जनता की समस्या को पॉवर हाउस के कर्मचारी/अधिकारी संज्ञान में लेना जरूरी ना समझे तो क्या हो? यहाँ के इलाके के अधिकतर ट्रांसफार्मर फूँक गए है. क्यों? क्योकि यहाँ के अधीनस्थ कर्मचारी नाम न छपने के शर्त पर ये आपको बता देंगे कि अफसरों ने कितने अवैध कनेक्शनो को कम क्षमता वाले ट्रांसमिशन पर डाल रखा है. क्या नतीजा होगा इसका?
आप पूछेंगे क्यों नहीं अधिकारी इस बात को ध्यान में लेते? तो इस सबस्टेशन की कहानी ये है कि इस पॉवर हाउस में कोई अधिकारी तकरीबन ना के बराबर बैठता है. इसका नतीजा ये है कि लाइनमैन टाइप के लोग रहते है जिनको अगर कोई हादसा हो जाए तो ये भी नहीं मालूम कि करना क्या है. क्योकि कोई अधिकारी भी नहीं बैठता लिहाजा नीचे के कर्मचारी या तो आपको मिलेंगे नहीं या अगर दिखे भी तो ड्यूटी के वक्त दारुबाज़ी जैसी हरकतों में लिप्त मिलेंगे. अगर कोई बड़ी फाल्ट आ गयी तो ये सबस्टेशन में ताला लगाकर भाग जायेंगे. इसी सबस्टेशन पर कुछ दिनों पहले एक कर्मचारी नशे में पोल पर चढ़ गया और बड़े हादसे का शिकार हो गया. अगले दिन इलाहाबादी पत्रकारों ने पत्रकारिता के गिरते स्टैण्डर्ड को दर्शाते हुए इस घटना को गायब करते हुएं लिखा कि हाई टेंशन वायर टूट जाने से करेली सबस्टेशन की बिजली गुल!
ये पॉवर स्टेशन मुस्लिम बहुल्य इलाके में पड़ता है. इस वक्त इस केंद्र में अधिकतर इसी वर्ग के कर्मचारी भी तैनात है जो कितने काबिल है वो आप अगर ऑफ द रिकार्ड अधीनस्थ कर्मचारियों से पूछे तो खुद समझ में आ जाएगा! ये बताना कोई बहुत जरूरी ना होता अगर इस इलाके में इस बात की सुगबुगाहट ना होती कि इस दशहरे में इस तरह के लापरवाही सुनियोजित थी. जाहिर है ये बात इस केंद्र से के कर्मचारियों के बीच से ही उठी है. इसी शहर में कुछ दिनों पहले अखिलेश यादवजी का आगमन हुआ. जिस करेली केंद्र को अधिकारी अभी कई दिनों से बुरी तरह फाल्ट ग्रसित बता रहे थें उसी से अबाधित २४ घंटे बिजली आई. उनके जाने के अगले दिन बिजली फिर चली गयी. केंद्र फिर फाल्टग्रस्त हो गया!
खैर मै सुनी सुनाई बातो पे कम यकीन रखता हूँ. दशहरे के दूसरे दिन जब बिजली सब जगह आ रही थी (भावापुर से जुड़े मुस्लिम इलाको जैसे अकबरपुर इत्यादि में) पर भावापुर में बिजली नदारद थी. फ़ोन करने किसी अधिकारी के पास सिवाय बहानेबाजी के कोई ठोस जवाब नहीं था कि क्यों ऐसा हो रहा है और ऐसा कब तक होगा. ये इस सबस्टेशन की कहानी नहीं है. ये इस सरकार की विकृत और बीमार मानसिकता की निशानी है. शायद इस सबस्टेशन के लाइनमैन दबी ज़बान में कडुवा सच कह रहे है कि इस तरह के गैर जिम्मेदार अफसरों के रहते आप किस सुधार की कल्पना कर सकते है! तकलीफ इस बात की भी है कि इसी इलाके में हाई कोर्ट के अधिकारी, अन्य विभागों के अधिकारी, हाई कोर्ट के जज भी रहते है. शहर के अन्य उच्च अधिकारी अगर इस बात को संज्ञान में नहीं ले रहे है तो ये क्यों खामोश बैठे है? इस इलाके की साधारण पब्लिक जो अब बहुत गुस्से में आ गयी है वो शायद पीटने पाटने के सिवाय कुछ ज्यादा ना करे लेकिन हाई कोर्ट या इस शहर के अन्य अधिकारी तो इस करेली केंद्र के कर्मचारियों/ अधिकारियो को उनकी इस लापरवाही पर कड़ी सजा दिला सकते है. यही करने का वक्त आ गया है. सुधार ऐसे ही आता है.

लैपटॉप बाटने से पहले बिजली तो ठीक तरह से देना सीखे ये सरकार!! सरकारी पैसा बिजली देने में लगाए बेहतर नतीजे मिलेंगे।
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मुजफ्फरनगर के दंगे: कुछ कडवे भयानक सच जिनका जिक्र ना हुआ!
अखिलेश यादव जब भारतीय राजनीति में अहम् किरदार अदा करने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो कुछ लोगो में शायद ये झूठी आस जाग उठी कि शायद एक युवा चेहरा कुछ बेहतर परिवर्तन ला दें. लेकिन सिर्फ चेहरे बदलने से चाहे वो युवा ही क्यों ना हो तब तक बात नहीं बनती जब तक आप के पास स्पष्ट नीति ना हो. हुआ भी वही लोक लुभावनी योजनाओं के दम पर बनी ये सरकार आज ना सिर्फ विवादों में फँस गयी है जहा नौकरशाह सहमे से है बल्कि नित नए दंगो ने प्रदेश को अशांत क्षेत्र बना दिया है. मुज़फ्फरनगर के दंगे वीभत्स तस्वीर पेश करते है और ये बताते है कि राजनेता किस हद तक गिर सकते है अपने प्रभाव को बचाने के लिए.
हम कानून राज की बात करते है और दामिनी बलात्कार काण्ड पर इस देश में बहुत उबाल उठा लेकिन मुजफ्फरनगर में इस दंगे से पहले कितने बलात्कार हिन्दू औरतो के साथ मुस्लिमो ने किये उसको किसी सरकार ने संज्ञान में लेने की जरुरत क्यों नहीं महसूस की? इसकी वजह से सात सितम्बर को जाट समुदाय ने एक पंचायत बुलाई गयी बहु बेटियों के सुरक्षा के लिए. इसमें शामिल होने के लिये जा रहे लोगो पे हमले हुए और उसके बाद स्थिति बेकाबू हो गयी. जब किसी सरकार के पास नीति नहीं होती तो ताकतवर चेहरे कठपुतली की तरह सरकार को नचाते है. यही हाल इस वर्तमान सरकार का भी है. दंगे किस कारण से हुए ये तो कई खबरों का विषय बन गयी है लेकिन इस जरूरी तथ्य पर शायद चर्चा ना हुई हो कि किस तरह खतरनाक हथियारों का जमावाड़ा जिसमे ऐ के 47 बंदूके तक शामिल है मुस्लिम वर्ग में इकठ्ठा है! हैरानगी की बात है कि मस्जिद जो इबादत का ठिकाना होना चाहिए इन हथियारों को छुपाने का केंद्र बनती जा रही है. इंटेलिजेंस विभाग क्या सिर्फ छूरी कट्टे की तफ्तीश के लिए बनी है?
ये केंद्र सरकार और राज्य सरकार के इन विभागों से पूछा जाना चाहिए कि जब धार्मिक स्थल इस तरह के आतंकी गतिविधियों का ठिकाना बन जाए तो उसके पास क्या रास्ते है इनको समाप्त करने के? या अल्पसंख्यक वर्ग के लोग मनमानी करे और प्रशासन खामोश रहे तो उसके क्या नतीजे होंगे? क्योकि ये तय है कि अगर कार्यवाही हुई तो वही मुस्लिमो के साथ भेदभाव हो रहा है, उन्हें सताया जा रहा है, फँसाया जा रहा है इस तरह का शोर हर तरफ से उठेगा। इसलिए अगर सरकार के पास हिम्मत ना हो तो कम से कम सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट इस तरह के भयानक सच को स्वतः संज्ञान में लेकर केंद्र और राज्य सरकार को विवश करे ये बताने के लिए कि इसके रोकथाम के लिए इनके पास क्या तरीके है और अब तक इन्होने क्या किया है?
गुजरात के दंगो पे गोधरा का सच भुलाकर सेक्युलर मीडिया ने इस बात का बहुत रोना रोया कि गुजरात सरकार ने समय रहते कार्यवाही नहीं की तो अब उत्तर प्रदेश में जो हमने देरी देखी, तथ्यों को नष्ट करके मुस्लिम वर्ग को राहत पहुचाने की कोशिश देखी उसके क्या मतलब निकाले जाए? यहाँ तक कि केंद्र सरकार भी ये कह रही है कि दंगो के भयावहता के बारे में प्रदेश सरकार ने उसे अँधेरे में रखा. खैर इस देश की राजनीति ये हो गयी है कि महिलाओ और अल्पसंख्यको को लुभाओ। उनके हर कुकर्मो पे पर्दा डाल दो. हो सकता है तात्कालिक रूप से महिलाओ और अल्संख्यको को ये सब भला लगे. लेकिन इसका दूरगामी परिणाम ये होगा कि उन महिलाओ और मुस्लिमों को तकलीफ झेलनी पड़ेगी जिनका इस गन्दी राजनीति से कोई वास्ता नहीं होगा। और सबसे बड़ा नुक्सान तो इस देश को होगा जिसने आज़ादी के बाद इस तरह के अलगाववादी और आसुरी नेताओ के उदय की कल्पना तक ना की होगी।
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