एक दिन जब हम नहीं होंगे ( रहस्यवादी प्रेम कविता )

 

सब से दूर जहाँ दुनियाँ के साये नहीं है, जहा सिवाय प्रेम के कुछ नहीं :-) :-) :-)

सब से दूर जहाँ दुनियाँ के साये नहीं है, जहा सिवाय प्रेम के कुछ नहीं 🙂 🙂 🙂


आओ चले हम उस जहाँ में

जहा वक्त रुका रुका सा हो
थमा थमा सा हो
वहा बैठे हुए एक दूसरे के साये तले
फिर ये सोचे उन दिनों क्या होगा
जब हम तो नहीं होंगे
पर ये हसींन नज़ारे तब भी होंगे
और यूँ  दे अपने अस्तित्व को नए मायने
उस मौन में जो तेरे और मेरे
मौन से मिलकर बना  हो
जिसमे हम धीमे धीमे घुलते जाए
साथ ही समाते जाए उस परम मौन में
जो लम्हा लम्हा हमारे पास खिसकता रहा
चोरी चोरी से चुपके चुपके से
और निगलता रहा दोनों के एक हुए मौन को
मिल गया हमारा मौन उस परम मौन से
मिट गाये सारे भेद
और अपना एकत्व
अनित्य के दायरे से दूर
अखंड हो गया
पूर्ण हो गया।

*************************

English Version Of The Poem:

When I Be Absent In This World ( Mystical Love Poem )

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Information About The Picture:

The picture clicked by me depicts a spot located at my village situated in Mirzapur District, Uttar Pradesh, India.  It’s related with my childhood memories.

***************************

 

17 responses

  1. इन पाठको को धन्यवाद जिन्होंने इस कविता से दूरी कम की 😛 😛

    Mayank Mishra, Varanasi, Uttar Pradesh; Nikhil Garg, Noida, Uttar Pradesh; Himanshu B. Pandey, Siwan, Bihar; Daneshwar Pandey, Mumbai; Rekha Pandey, Mumbai; Rakesh Pandey, Sultanpur, Uttar Pradesh; Rajjan Mishra, Lucknow, Uttar Pradesh; Jatinder Sharma, Bureau Chief, Daily Aaj Ka Jalandhar, Jalandhar, Punjab; Arvind Sharma, Bank Employee, Indore, Madhya Pradesh; jai Prakash Nryan Sharma,Chhindwara, Madhya Pradesh; Sudhir Gawandalkar, Bangalore, Karnataka; Amitesh Anand, New Delhi; Urmila Harit,Indian Institute of Mass Communication (IIMC), New Delhi; Kripashankar Pandey, Mumbai; Manoj Sharma, Sitapur, Uttar Pradesh; Vipin Kumar Tiwari, Katni Junction, Madhya Pradesh; Satyam Thakur, Allahabad, Uttar Pradesh; Deewaker Pandey, New Delhi; Himamshu Bhushan Pandey, Siwan, Bihar; Anand G. Sharma, Mumbai; Pragya Bhushan, Lecturer at Delhi institute of Management and Technology, Ghaziabad, Uttar Pradesh; Nagesh Tripathi, Kota, Rajasthan; Anupam Verma, Mumbai; Kr. Sunil Tewari, Gorakhpur, Uttar Pradesh; Dr. Nandlal Bharti, Indore, Madhya Pradesh; Mukesh Pandey, Mumbai; Shahabuddin Mohammed, Ernakulam, Kerala; Bhartiya Sanskriti Sansthan, Bhilai, Chattisgarh; Ashish Sharma, New Delhi; Sidhnath Gupta, Doordasrhan, Lucknow, Uttar Pradesh; KN Dixit, Gorakhpur, Uttar Pradesh; Gargee Sharma, Bhopal, Madhya Pradesh, and Lokesh Pachouli, Haldwani, Uttarakahand.

  2. अति सुन्दर भाव एवं कविता ! साधुवाद अरविन्द जी !

    1. Ravi Hooda ji..

      कविताएं मै सोच के नहीं लिखता रवि जी। कभी कभार ही इस तरह के भाव आते है और अनायास ही सहज रूप से शब्दों में ढल जाते है। और ऐसा बहुत ही कम होता है। इसलिए रवि जी मेरे द्वारा लिखी गयी कविताएं बहुत ही कम है। हां सोच के लिखना चाहू तो कविताओ का अम्बार लगा दूँ हा हा हा 😛 😛 आभार आपका कि आपके मन को भायी 🙂

  3. प्रखर पाण्डेय (विप्लव) | Reply

    very creative and sensible combination of words ……. good one पाण्डेय जी …. आखिर आप के अंदर भी एक नायाब कवि साँसें ले रहा है जिसकी साँसें कभी कभी तेज़ होकर सुनाई भी दे जातीं हैं …… अच्छा है बल्कि ये तो बेहतरीन बात है ….. कविता भले ही शब्द ज्ञान द्वारा पिरोई जाती है और ऐसा माना जाता है की जिसका शब्द ज्ञान सबसे अच्छा होगा वही व्यक्ति सबसे अच्छा कवि और उच्च श्रेणी का कवि होगा पर फिर भी इन बातों के बा-वज़ूद मेरा मानना है की कवि कितना भी शब्द ज्ञान से भरपूर हो भावनाओं की भूमिका अनिवार्य होती है …जो की आपकी लेखनी में लबालब हो रही है …..

    1. आपने दूर से मेरे मन की चाह पकड़ ली। आप जैसे स्थापित कवि से मै बस ये आग्रह करने जा रहा था कि आप कुछ कहे! कुछ गुण-अवगुण का ज़िक्र करे। इसके पहले कि मेरा आग्रह शब्द में उभरता आपने पहले ही अपने विचार रख दिया। सो अब वाकई यकीन हो चला है अपने कवित्व बोध पर हा हा हा 😛 आपको बताना चाहूंगा मूलतः मै कवि और लेखक हूँ। सबसे पहले जब लिखना शुरू किया स्कूल के दिनों से तो सिर्फ ये था मन में कि केवल कथाएँ/कविताएं ही लिखूंगा। 1994 =1998 इस अवधि में मैंने ज्यादातर कविताये और लघु कहानियाँ लिखी जो हर वर्ग के पाठक वर्ग में अपने देश के साथ ही अन्य देशो में भी सराही गयी। एक एंथोलॉजी “the petals of life” की भी भूमिका बनी जिसको नामी ब्रिटिश प्रकाशक मिनेरवा ने काफी प्रशंसा की पर उस वक्त उस एंथोलॉजी को किन्ही कारणों से छपवाना संभव नहीं हुआ। फिर बाद में सामाजिकता निर्वाहन के मोह तले समाचार जगत में ऐसा उलझा की कविता/ कहानी को सहजता से उभारना संभव सा नहीं लगा। खैर जब कभी भाव प्रबल होते है और ईश्वर अनुकूल सहजता दे देता है तो कवितायेँ या कहानी समय समय पर लिख लेता हूँ।

      खैर इतने समय के बाद आपसे संवाद करके अच्छा लगा। मिलते रहा करिये इस अनित्य जगत में फुर्सत निकालकर 😛

  4. प्रखर पाण्डेय (विप्लव) | Reply

    “जीवन की पंखुरियां” संकलन की महक अच्छी है कभी publish करें कहीं तो ज़रूर भेजिएगा मुझे ये संकलन ……

    1. ये भी कोई कहने की बात है 🙂 🙂 आप कहीं भी होंगे हम आपको एक प्रति जरूर प्रेषित कर देंगे।

  5. प्रखर पाण्डेय (विप्लव) | Reply

    ना होंगे हम , ना होगे तुम
    पर निरंतर शाश्वत की सतह पर
    कभी जब कोई फूल खिलेगा मेरे लब्ज़ों की कगार पर
    तब मेरे शब्दों के एहसासों की सांगत पर वो नए साज़ लिखेंगे
    पर यकीनन उनमें मेरी तुम्हारी और हमारे जैैसे कितने दायरों की महक
    नए कपडे बदलते हुए श्रृंगार करेंगीं
    अदभुद नज़ारा होगा वो पर होगा वही शाश्वत एहसासों की श्रंखला का नवीन संस्करण
    जो आज कल भी था आज भी है और कल भी रहेगा

    – प्रखर
    ………..
    मुझे आपकी इस कविता से एक ग़ज़ल याद आई
    शायद आपने सुनी होगी
    …………
    रफ्ता रफ्ता वो मेरी हस्ती का सामां हो गए
    पहले जां फिर जान-ए-जां फिर जान-ए-जाना हो गए
    रफ्ता रफ्ता वो मेरी हस्ती का सामां हो गए
    दिन-ब-दिन बढ़ती गयी इस हुस्न की रूनाइयाँ
    पहले गुल फिर गुलबदन फिर गुलबदमा हो गए
    रफ्ता रफ्ता वो मेरी हस्ती का सामां हो गए
    आप तो नज़दीक से नज़दीक-तर आते गए
    पहले दिल फिर दिलरुबा फिर दिल के मेहमां हो गए
    रफ्ता रफ्ता वो मेरी हस्ती का सामां हो गए
    प्यार जब हद से बढ़ा सारे तक़ल्लुफ़ह मिट गए
    आपसे फिर तुम हुए फिर तू का उनवाँ हो गए
    रफ्ता रफ्ता वो मेरी हस्ती का सामां हो गए
    पहले जां फिर जान-ए-जां फिर जान-ए-जाना हो गए
    रफ्ता रफ्ता वो मेरी हस्ती का सामां हो गए

    – गायक : मेहँदी हसन

    1. बहुत सुन्दर कविता आपने रच डाली। इस उलझन में कई दिनों से रहता था कि ना होने पर हम कैसे उपस्थित रह पाएंगे इस जगत में! ये शोकग्रस्त भी करता था और मन में झंझावात भी पैदा करता रहता था। आपकी कविता पढ़ी तो यकीन मानिए बड़ा सुकून मिला। ये समझ में आया कि आप ना रहने पर भी जगत में उपस्थित रह सकते है!

      वैसे आपकी कविता पढ़कर गीताजी का ये श्लोक याद आया :

      वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि । तथा शरीराणि विहाय जीर्णा- न्यन्यानि संयाति नवानि देही ।।२२।। Chap. 2

      एक गीत नौशाद की मेला से भी याद आया: ये ज़िन्दगी के मेले कम ना होंगे

  6. प्रखर पाण्डेय (विप्लव) | Reply

    correction in my words in 1st pera’
    जो कल भी था आज भी है और कल भी रहेगा ……

    1. Good to notice that you have the habit of noticing errors in one’s own written words!!

  7. Poet’s words for Mile Sur Mera Tumhara, USA:

    आपने इसे शेयर करने योग्य समझा। बहुत ख़ुशी हुई जी 🙂 ये जो तस्वीर आप इस कविता के साथ देख रही है ये मेरे अपने गाँव की है। उस पेड़ की है जिसकी छाँव के तले बचपन से बैठता चला आ रहा हूँ।

    ******************
    Poet’s words for Shiv Dewangan, Hong Kong:

    कविताये लेखनी के क्षेत्र में मेरा पहला प्रेम है-तीव्र और स्थायी लगाव से युक्त 🙂

  8. प्रखर पाण्डेय (विप्लव) | Reply

    वाकई अर्थपूण गीत है

  9. Swami Prabhu Chaitanya, Patna, Bihar, said:

    बहुत सुन्दर !

    ********
    Author’s Response:

    आप का सुन्दर कहना सूखे ओंठ पर शबनम की कुछ बूंदे टपक जाने जैसा है 🙂 🙂

  10. प्रखर पाण्डेय (विप्लव) | Reply

    वह क्या बात है ….. आपने अभी जैसे एक पेड़ को अपने बचपन की यादों से जोड़ा है ये भी हमारी उसी विरासती मूल्यों को दर्शाता है जो की हमारे बुज़ुर्गों ने धरती की रक्षा हेतु हमारे जीवन और उसके जज़्बातों को एक अहम पहलु से भावात्मक जुड़ाव दे रखा है …..आशा है यही जुड़ाव हम अपनी आने वाली पीढ़ी को यथावत दे सकें …..

  11. हां जिन चीज़ो ने मेरे बचपन को यादगार बनाया है उनसे मेरा मेरा नाता गहरा है ….”आशा है यही जुड़ाव हम अपनी आने वाली पीढ़ी को यथावत दे सकें “——-जरूर 🙂

  12. Poet’s words for Nagesh Tripathi, Kota, Rajasthan:

    कविताये यद्यपि मेरा पहला प्रेम है पर फिर भी कम लिखता हूँ इन्हे 🙂

    **************
    Poet’s words for Urmila Harit, Indian Institute of Mass Communication (IIMC), New Delhi:

    कविताएं मेरा प्रथम प्यार है पर फिर भी कम उभरती है! इसके बावजूद जब अच्छे पाठक भँवरे की तरह रसपान करने आ जाते है तो बहुत अच्छा लगता है! दोनों ही संस्करण पर ध्यान डालने के लिए धन्यवाद 🙂

    **************************

    Poet’s words for Pragya Bhushan, Lecturer at Delhi institute of Management and Technology, Ghaziabad, Uttar Pradesh:

    अच्छा लग रहा है कि आप जैसे सुधि पाठको ने इस कविता पे अपनी उपस्थिति दर्ज करायी 🙂

    **********************

    Poet’s Words For Chandrapal S. Bhasker, United Kingdom:

    अरे कैसे है आप 🙂 चलिए इतने दिनों के बाद आपने मेरे पेज पर कुछ पढ़ने की जरुरत महसूस की 🙂 प्रथम प्यार आपको हमेशा अपनी ओर खींचता है। कविता लेखन के साथ भी ऐसा ही मेरा कुछ नाता है। इसका अंग्रेजी संस्करण भी है इसके साथ। उम्मीद है आपने वो देखा होगा।

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