मोदी का स्वाधीनता दिवस भाषण: इसमें छुपे निहितार्थ!
मोदीजी का स्वाधीनता दिवस भाषण कई मामलो में ऐतिहासिक और विलक्षण है। ये भाषण सिर्फ वाक् कौशल का जबरदस्त नमूना नहीं था बल्कि ये एक नेता के दृढ सोच और स्पष्ट दृष्टि का आईना था। अभी तक इस तरह के अवसरों पर दिए जाने वाले भाषण सिर्फ महज एक खानापूर्ति होते थे जिसमे साधारण जनमानस की नाममात्र की दिलचस्पी होती थी। इस बार लाल किले के प्राचीर से दिए गए भाषण में मौजूद अद्भुत तत्वों ने सबका ध्यान अपनी तरफ खींचा और उन उदासीन वर्गों में भी जो अब तक नेताओ के भाषण की खिल्ली उड़ाते थे कायदे से एक सन्देश गया कि बात निकलती है तो दूर तलक जाती है और एक अकेला चना भी भाड़ फोड़ सकता है।
“यह भारत के संविधान की शोभा है, भारत के संविधान का सामर्थ्य है कि एक छोटे से नगर के गरीब परिवार के एक बालक ने आज लाल किले की प्राचीर पर भारत के तिरंगे झण्डे के सामने सिर झुकाने का सौभाग्य प्राप्त किया। यह भारत के लोकतंत्र की ताकत है, यह भारत के संविधान रचयिताओं की हमें दी हुई अनमोल सौगात है। मैं भारत के संविधान के निर्माताओं को इस पर नमन करता हूँ।” कांग्रेस सरकार के पतन के पीछे जो सबसे बड़ा कारण था वो ये था कि कांग्रेेस ने कभी भी संवैधानिक संस्थाओ का मोल नहीं समझा। सत्ता के नशे में डूबे निकम्मे कांग्रेसी नेताओ ने संविधान को ताक पर रख कर काम किया जिसका नतीजा ये हुआ कि संसद और सुप्रीम कोर्ट आपस में कई बार टकराव की मुद्रा में आ गए। राज्यपाल जैसे गरिमामय पद मोहरो की तरह इस्तेमाल होने लगे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले कागज़ पे लिखे व्यर्थ के प्रलाप लगने लगे थे। इस परिदृश्य में मोदी जी का संविधान के ताकत को नए मायने देना, एक संजीवनी प्रदान करना बहुत दुर्लभ घटना है। भारत ही एक ऐसा देश है जहा लोकतंत्र ने अपने को सही ढंग से विस्तार प्रदान किया है। इसका सशक्त होके उभरने में ही देश का कल्याण है।
कई बार ये लगता है कि देश में सिर्फ ब्यूरोक्रेट्स का शासन है। ये देश उन्ही लोगो का है जो या तो सरकारी पदो पे आसीन है या उनका है जो बड़े बड़े शहरों में कॉर्पोरेट घरानो के मालिक है। इस भ्रम को मोदीजी ने बहुत बेरहमी से तोड़ दिया। इस सड़े गले से भ्रामक तथ्य को मोदी ने इस सुनहरे सच से बदल दिया कि “यह देश राजनेताओं ने नहीं बनाया है, यह देश शासकों ने नहीं बनाया है, यह देश सरकारों ने भी नहीं बनाया है, यह देश हमारे किसानों ने बनाया है, हमारे मजदूरों ने बनाया है, हमारी माताओं और बहनों ने बनाया है, हमारे नौजवानों ने बनाया है, हमारे देश के ऋषियों ने, मुनियों ने, आचार्यों ने, शिक्षकों ने, वैज्ञानिकों ने, समाजसेवकों ने, पीढ़ी दर पीढ़ी कोटि-कोटि जनों की तपस्या से आज राष्ट्र यहाँ पहुँचा है। देश के लिए जीवन भर साधना करने वाली ये सभी पीढ़ियाँ, सभी महानुभाव अभिनन्दन के अधिकारी हैं”
आज़ादी से लेकर अब तक किसान प्रधान देश में किसान हमेशा हाशिये पे रहा। इसका नतीजा ये हुआ कि किसान के लड़के दो कौड़ी की सरकारी नौकरी करने को प्राथमिकता देने लगे। आज आप गाँव में जाकर देखिये लड़के सिपाही/क्लर्क बनने की जुगाड़ में लगे रहते है और खेती के आश्रित रहने में उन्हें अपना भविष्य अंधकारमय लगता है, शर्मिंदगी महसूस होती है। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे बड़े प्रदेशो में तो ये हालत है कि किसानी करना मतलब लोहे के चने चबाना जैसा हो गया है। बीज महंगा है, उर्वरक महंगे है, बिजली नहीं है, पानी का जुगाड़ नहीं है और उत्पाद का कोई ठीक खरीदार नहीं है। मोदी ने इस दर्द को महसूस किया है। वो ये जानते है कि किसान इस देश की रीढ़ है और बिना इनको मुख्यधारा में लाये आप विकास के उच्चतम सोपान को नहीं पा सकते। इसलिए उनका गाँव और किसानो के प्रति झुकाव ह्रदय को झकझोर देता है। “जवान, जो सीमा पर अपना सिर दे देता है, उसी की बराबरी में “जय जवान” कहा था। क्यों? क्योंकि अन्न के भंडार भर करके मेरा किसान भारत मां की उतनी ही सेवा करता है, जैसे जवान भारत मां की रक्षा करता है। यह भी देश सेवा है। अन्न के भंडार भरना, यह भी किसान की सबसे बड़ी देश सेवा है और तभी तो लालबहादुर शास्त्री ने “जय जवान, जय किसान” कहा था”। उम्मीद है मोदी की गाँव से जुड़े संकल्प से उभरे योजनाये गाँवों का कायापलट करने में सहायक होंगी।
नौजवानो की बड़ी भीड़ है इस देश में सो इनको “स्किल्ड वर्कर ” बनाकर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को उन्नत बनाने का संकल्प एक बेहतरीन दृष्टिकोण है। ये मोदी की दूरदर्शिता दर्शाता है कि आयातित प्रोडक्ट्स पर अपनी निर्भरता को कम करना चाहते है। अभी तक तो ये होता आया है कि युवाओ को सरकारे सिर्फ दिवास्वप्न दिखती रही है। सो उम्मीद यही है कि मोदी राज में युवाओ को एक सार्थक यथार्थपरक दिशा मिलेगी। अंत में मोदी जी की उस दृष्टि को उभारना चाहता हूँ जो इस भाषण की ख़ास बात रही और वो था उनका इस देश की संस्कृति और महापुरुषों के प्रति अभिन्न श्रद्धा। श्री अरविन्द और स्वामी विवेकानंद के वचनो और संस्कृत कथनो का उल्लेख करके उन्होंने ये बता दिया कि देश की जड़ो का सम्मान किये बिना भविष्य की तरफ झांकना कोई मायने नहीं रखता। भौतिक विकास आध्यात्मिक जगत से जुड़े बिना सिर्फ भटकाव ही सुनिश्चित करता है, सिर्फ विनाश ही करता है। सो इस देश को जरूर विकासोन्मुख बनाये मगर इस पूरी कवायद में जड़ो को ना भूल जाए।
Full speech can be read here: प्रधानमंत्री का संबोधन

श्री अरविन्द के वचनो और संस्कृत कथनो का उल्लेख करके उन्होंने ये बता दिया कि देश की जड़ो का सम्मान किये बिना भविष्य की तरफ झांकना कोई मायने नहीं रखता।
पिक्स क्रेडिट:
Words Of Aurobindo Ghosh And Poetry Of Neeraj Besides Sanskrit Verses On India’s Glory!
The views expressed herein unfold Sri Aurobindo’s methadology to deal with huge challenges India was going to face in post-Independence era. Sri aurobindo conveyed these views between 1910-1922 in Arya- an English monthly published by Sri Aurobindo.
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“How shall we recover our lost intellectual freedom and elasticity? By reversing, for a time at least, the process by which we lost it, by liberating our minds in all subjects from the thraldom to authority. That is not what reformers and the Anglicised require of us. They ask us, indeed, to abandon authority, to revolt against custom and superstition, to have free and enlightened minds. But they mean by these sounding recommendations that we should renounce the authority of Sayana for the authority of Max Muller, the Monism of Shankara for the Monism of Haeckel, the written Shastra for the unwritten law of European social opinion, the dogmatism of Brahmin Pandits for the dogmatism of European scientists, thinkers and scholars. Such a foolish exchange of servitude can receive the assent of no self-respecting mind. Let us break our chains, venerable as they are, but let it be in order to be free, in the name of truth, not in the name of Europe. It would be a poor bargain to exchange our old Indian illuminations, however dark they may have grown to us, for a derivative European enlightenment or replace the superstitions of popular Hinduism by the superstitions of materialistic Science.”
“Our first necessity, if India is to survive and do her appointed work in the world, is that the youth of India should learn to think, to think on all subjects, to think independently, fruitfully, going to the heart of things, not stopped by their surface, free of prejudgments, shearing sophism and prejudice asunder as with a sharp sword, smiting down obscurantism of all kinds as with the mace of Bhima….”
“Let us not, either, select at random, make a nameless hotchpotch and then triumphantly call it the assimilation of East and West. We must begin by accepting nothing on trust from any source whatsoever, by questioning everything and forming our own conclusions. We need not fear that we shall by that process cease to be Indians or fall into the danger of abandoning Hinduism. India can never cease to be India or Hinduism to be Hinduism, if we really think for ourselves. It is only if we allow Europe to think for us that India is in danger of becoming an ill-executed and foolish copy of Europe…. We must … take our stand on that which is true and lasting. But in order to find out what in our conceptions is true and lasting, we must question all alike rigorously and impartially. The necessity of such a process not for India, but for all humanity has been recognised by leading European thinkers. It was what Carlyle meant when he spoke of swallowing all formulas. It was the process by which Goethe helped to reinvigorate European thinking. But … Europe has for some time ceased to produce original thinkers, though it still produces original mechanicians…. China, Japan and the Mussulman states are sliding into a blind European imitativeness. In India alone there is self-contained, dormant, the energy and the invincible spiritual individuality which can yet arise and break her own and the world’s fetters.”
Source: Bharat Vani
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These beautiful verses in Sanskrit unfold glory of India’s past. They make you aware of great souls who made their presence felt on this great divine land. The verses also let you know about beautiful places, rivers and mountains which make this part of the world a poetry carved on planet earth. I first noticed these verses on page of Sri Vijay Krishna Pandey.
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ॐ नमः सच्चिदानंदरूपाय परमात्मने
ज्योतिर्मयस्वरूपाय विश्वमांगल्यमूर्तये॥१॥
प्रकृतिः पंचभूतानि ग्रहलोकस्वरास्तथा
दिशः कालश्च सर्वेषां सदा कुर्वंतु मंगलम्॥२॥
रत्नाकराधौतपदां हिमालयकिरीटिनीम्
ब्रह्मराजर्षिरत्नाढ्याम् वन्दे भारतमातरम् ॥३॥
महेंद्रो मलयः सह्यो देवतात्मा हिमालयः
ध्येयो रैवतको विन्ध्यो गिरिश्चारावलिस्तथा ॥४॥
गंगा सरस्वती सिंधु ब्रह्मपुत्राश्च गंदकी
कावेरी यमुना रेवा कृष्णा गोदा महानदी ॥५॥
अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवंतिका
वैशाली द्वारका ध्येया पुरी तक्शशिला गया ॥६॥
प्रयागः पाटलीपुत्रं विजयानगरं महत्
इंद्रप्रस्थं सोमनाथस्तथामृतसरः प्रियम्॥७॥
चतुर्वेदाः पुराणानि सर्वोपनिषदस्तथा
रामायणं भारतं च गीता षड्दर्शनानि च ॥८॥
जैनागमास्त्रिपिटकः गुरुग्रन्थः सतां गिरः
एष ज्ञाननिधिः श्रेष्ठः श्रद्धेयो हृदि सर्वदा॥९॥
अरुन्धत्यनसूय च सावित्री जानकी सती
द्रौपदी कन्नगे गार्गी मीरा दुर्गावती तथा ॥१०॥
लक्ष्मी अहल्या चन्नम्मा रुद्रमाम्बा सुविक्रमा
निवेदिता सारदा च प्रणम्य मातृ देवताः ॥११॥
श्री रामो भरतः कृष्णो भीष्मो धर्मस्तथार्जुनः
मार्कंडेयो हरिश्चन्द्र प्रह्लादो नारदो ध्रुवः ॥१२॥
हनुमान् जनको व्यासो वसिष्ठश्च शुको बलिः
दधीचि विश्वकर्माणौ पृथु वाल्मीकि भार्गवः ॥१३॥
भगीरथश्चैकलव्यो मनुर्धन्वन्तरिस्तथा
शिबिश्च रन्तिदेवश्च पुराणोद्गीतकीर्तयः ॥१४॥
बुद्ध जिनेन्द्र गोरक्शः पाणिनिश्च पतंजलिः
शंकरो मध्व निंबार्कौ श्री रामानुज वल्लभौ ॥१५॥
झूलेलालोथ चैतन्यः तिरुवल्लुवरस्तथा
नायन्मारालवाराश्च कंबश्च बसवेश्वरः ॥१६॥
देवलो रविदासश्च कबीरो गुरु नानकः
नरसी तुलसीदासो दशमेषो दृढव्रतः ॥१७॥
श्रीमच्छङ्करदेवश्च बंधू सायन माधवौ
ज्ञानेश्वरस्तुकाराम रामदासः पुरन्दरः ॥१८॥
बिरसा सहजानन्दो रमानन्दस्तथा महान्
वितरन्तु सदैवैते दैवीं षड्गुणसंपदम् ॥१९॥
रविवर्मा भातखंडे भाग्यचन्द्रः स भोपतिः
कलावंतश्च विख्याताः स्मरणीया निरंतरम् ॥२०॥
भरतर्षिः कालिदासः श्रीभोजो जनकस्तथा
सूरदासस्त्यागराजो रसखानश्च सत्कविः ॥२१॥
अगस्त्यः कंबु कौन्डिण्यौ राजेन्द्रश्चोल वंशजः
अशोकः पुश्य मित्रश्च खारवेलः सुनीतिमान् ॥२२॥
चाणक्य चन्द्रगुप्तौ च विक्रमः शालिवाहनः
समुद्रगुप्तः श्रीहर्षः शैलेंद्रो बप्परावलः ॥२३॥
लाचिद्भास्कर वर्मा च यशोधर्मा च हूणजित्
श्रीकृष्णदेवरायश्च ललितादित्य उद्बलः ॥२४॥
मुसुनूरिनायकौ तौ प्रतापः शिव भूपतिः
रणजितसिंह इत्येते वीरा विख्यात विक्रमाः ॥२५॥
वैज्ञानिकाश्च कपिलः कणादः शुश्रुतस्तथा
चरको भास्कराचार्यो वराहमिहिर सुधीः ॥२६॥
नागार्जुन भरद्वाज आर्यभट्टो वसुर्बुधः
ध्येयो वेंकट रामश्च विज्ञा रामानुजायः ॥२७॥
रामकृष्णो दयानंदो रवींद्रो राममोहनः
रामतीर्थोऽरविंदश्च विवेकानंद उद्यशः ॥२८॥
दादाभाई गोपबंधुः टिळको गांधी रादृताः
रमणो मालवीयश्च श्री सुब्रमण्य भारती ॥२९॥
सुभाषः प्रणवानंदः क्रांतिवीरो विनायकः
ठक्करो भीमरावश्च फुले नारायणो गुरुः ॥३०॥
संघशक्ति प्रणेतारौ केशवो माधवस्तथा
स्मरणीय सदैवैते नवचैतन्यदायकाः ॥३१॥
अनुक्ता ये भक्ताः प्रभुचरण संसक्तहृदयाः
अविज्ञाता वीरा अधिसमरमुद्ध्वस्तरि पवः
समाजोद्धर्तारः सुहितकर विज्ञान निपुणाः
नमस्तेभ्यो भूयात्सकल सुजनेभ्यः प्रतिदिनम् ॥ ३२॥
इदमेकात्मता स्तोत्रं श्रद्धया यः सदा पठेत्
स राष्ट्रधर्म निष्ठावानखंडं भारतं स्मरेत् ॥३३॥
जयति पुण्य सनातन संस्कृति…जयति पुण्य भूमि भारत…
सदा सुमंगल…वंदेमातरम…..
जय श्री राम
Source: Vijay Krishna Pandey
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These verses in Hindi written by famous poet Neearj unfold the charishma of feeling called love!
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जब तक आँसू साथ रहेंगे,
मुझको याद किया जायेगा;
जहाँ प्रेम की चर्चा होगी,
मेरा नाम लिया जायेगा ।
जब भी कोई सपना टूटा,
मेरी आँख वहाँ बरसी है;
तड़पा हूँ मैं जब भी कोई,
मछ्ली पानी को तरसी है ।
गीत दर्द का पहला बेटा,
दुःख है उसका खेल खिलौना
कविता तब मीरा होगी,
जब हँस कर ज़हर पिया जायेगा ।
जहाँ प्रेम की चर्चा होगी,
मेरा नाम लिया जायेगा ।
-By Neeraj
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Pics Credit:
एक दिन जब हम नहीं होंगे ( रहस्यवादी प्रेम कविता )
आओ चले हम उस जहाँ में
जहा वक्त रुका रुका सा हो
थमा थमा सा हो
वहा बैठे हुए एक दूसरे के साये तले
फिर ये सोचे उन दिनों क्या होगा
जब हम तो नहीं होंगे
पर ये हसींन नज़ारे तब भी होंगे
और यूँ दे अपने अस्तित्व को नए मायने
उस मौन में जो तेरे और मेरे
मौन से मिलकर बना हो
जिसमे हम धीमे धीमे घुलते जाए
साथ ही समाते जाए उस परम मौन में
जो लम्हा लम्हा हमारे पास खिसकता रहा
चोरी चोरी से चुपके चुपके से
और निगलता रहा दोनों के एक हुए मौन को
मिल गया हमारा मौन उस परम मौन से
मिट गाये सारे भेद
और अपना एकत्व
अनित्य के दायरे से दूर
अखंड हो गया
पूर्ण हो गया।
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English Version Of The Poem:
When I Be Absent In This World ( Mystical Love Poem )
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Information About The Picture:
The picture clicked by me depicts a spot located at my village situated in Mirzapur District, Uttar Pradesh, India. It’s related with my childhood memories.
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When I Be Absent In This World ( Mystical Love Poem )
Let’s venture out to quiet place
Where time has come to standstill
Where moments love to freeze
And at such a place
Sitting under shade of each other’s soul
Ponder about those days
When we be missing from this world
And yet life’s beauty be prevailing around
In all its majestic grandeur
And such an introspection
Would add a new dimension
In our existence
In our collective silence
Conceived as your silence merged with mine
That annihilated our beingness
And as that happened
We kept coming close
To the realm of Absolute
Which steadily and slowly
Kept moving towards us
Silently embracing our collective silence
The separation vanished altogether
And prevailed absolute oneness
Untouched by impermanence
Gaining entry into realm
Where oneness gets wedded to totality
In light of incessant togetherness.
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Hindi Version Of The Poem:
एक दिन जब हम नहीं होंगे ( रहस्यवादी प्रेम कविता )
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Information About The Picture:
The picture clicked by me shows River Ganges flowing through my village situated in Mirzapur District, Uttar Pradesh, India.
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ब्लॉगर को पत्रकार बनने की कोई जरूरत नहीं !!!
इस मुद्दे पे लिंक्डइन के एक प्रतिष्ठित फोरम में आयोजित चर्चा में विदेशी और देशी मीडिया के अति सम्मानित पत्रकार, मीडिया समूह के मालिको और पारंपरिक मीडिया से हटकर सोशल मीडिया का प्रतिनिधत्व करते सम्मानित ब्लागरो ने गंभीर चर्चा की. इस चर्चा में मुख्य मुद्दा ये रहा कि ब्लॉगर को पत्रकार माना जाए कि नहीं. पारंपरिक मीडिया से जुड़े अधिकांश लोगो ने सतही कारण गिनाते हुए ब्लॉगर को पत्रकार का दर्जा देने से साफ़ इनकार कर दिया. इनका ये कहना था कि इनमे वो प्रोफेशनल दक्षता नहीं है जो कि एक पत्रकार में पायी जाती है. इस समूह का ये भी मानना था कि पत्रकार पत्रकारिता का कोर्स करके और कार्य कुशलता हासिल करके मीडिया के क्षेत्र में आते है लिहाजा इनके पास बेहतर आलोचनात्म्क वृत्ति होती है, रिपोर्टिंग स्टाइल बेहतर होती है और ये किसी मुद्दे पे पर बहुत सुलझी हुई प्रतिक्रिया देते है. इस वजह से ये ब्लॉगर से कही बेहतर होते है. पर मेरी नज़रो में चर्चा में शामिल बड़े नामो ने इस अति महत्त्वपूर्ण दृष्टिकोण की उपेक्षा कर दी: एक ब्लॉगर को एक अच्छा पत्रकार बनने की जरुरत ही क्या है ?
इस बात को बहुत अच्छी तरह से महसूस किया जा सकता है कि ब्लागरो के लगातार बढ़ते प्रभाव ने पारंपरिक मीडिया में एक खलबली सी मचा दी है. खैर इस मुद्दे पे पारंपरिक मीडिया से जुड़े पत्रकारों से मै उलझना नहीं चाहता. मै तो उन ब्लागरो को जो कि एक अच्छा पत्रकार बनने की उम्मीद पाल कर ब्लागिंग आरम्भ करते है उनको यही सन्देश पहुचाना चाहता हूँ कि एक अच्छे पत्रकार के रूप में अपना सिक्का गाड़ने कि सोच से ये सोच लाख गुना बेहतर है कि ब्लागिंग में जो अद्भुत तत्त्व निहित है उनको अपना के संवेदनशील मुद्दों को बेहतर रूप से जनता के बीच पहुचाएं.
मेरा ये मानना है कि पत्रकार और ब्लॉगर में भेद बना रहे. ये अलग बात है कि एक अच्छा पत्रकार और एक सिद्ध ब्लॉगर दोनों लगभग एक सी ही उन्नत सोच और लगभग एक सी ही कार्यशैली से किसी मुद्दे पर काम करते है. लेकिन इतनी समानता के बावजूद ब्लॉगर को आधुनिक पत्रकारिता के सांचे में नहीं ढलना चाहिए जिसमे पत्रकारिता का एक धंधे में रूपांतरण हो चुका है अपने मिशनरी स्वरूप से. ये बात भी हमको नहीं भूलनी चाहिए कि पारंपरिक मीडिया से जुड़े पत्रकार और संपादक आज के समय में किसी भी मुद्दे पे भ्रामक और स्वार्थपरक रूख रखते है. नीरा राडिया जैसे लोगो का दखल और प्रायोजित सम्पादकीय इसके सर्वोत्तम उदाहरण है.
इसका दूसरा उदाहरण विदेशी अखबार और मैगजीन है. इन सम्मानित समाचार पत्रों में अगर आप भारत से जुडी खबर पढ़े तो आपको विदेशी पत्रकारों का मनमाना और पक्षपातपूर्ण रूख द्रष्टिगोचर हो जाएगा. इसके बाद भी विदेशी मीडिया समूह अपनी निष्पक्षता और पारदर्शिता का हर तरफ बखान करता है. अधिकाँश ब्लॉगर किसी बाहरी दबाव से मुक्त होते है. इनपे किसी का जोर नहीं कि किसी मुद्दे को ये ख़ास नज़रिए से देखे. इनको मुद्दे को किसी भी दृष्टिकोण से प्रस्तुत करने की आज़ादी रहती है. ये अलग बात है कि सहज मानवीय गुण दोषों से ये भी संचालित होते है और किसी के प्रभाव में आ कर स्वार्थ से संचालित हो सकते है.
इस बात को पूरी तरह से खारिज किया जा सकता है कि किसी को एक अच्छे लेखक या पत्रकार के रूप में उभरने के लिए पत्रकारिता संस्थान से जुड़ना अनिवार्य होता है. ये विचार हास्यास्पद है कि अच्छा लिखने की कला का विकास पत्रकारिता संस्थान से जुड़कर होता है. एक उन्नत बोध जो समाचार के तत्त्वों से वाकिफ हो उसको आप कैसे किसी के अन्दर डाल सकते है ? इस तरह के बोध का उत्पादन थोड़े ही किया जा सकता है पत्रकारिता संस्थानों के अन्दर. ये बताना बहुत आवश्यक है कि ये आधुनिक समय की देन है कि लोग पत्रकारिता की डिग्री को अनिवार्यता मान बैठे है. यही वजह है की कुकुरमुत्ते की तरह पत्रकारिता संस्थानों की बाढ़ आ गयी है भारत में जो पत्रकार बनने की आस लिए युवको का शोषण कर रहे है.
खैर इसका मतलब ये नहीं कि पत्रकारिता से जुड़े अच्छे संस्थानों का कोई मोल नहीं. मेरा सिर्फ ये कहना है कि सिर्फ इस आधार पे ब्लॉगर और पत्रकार में भेद किया जाना उचित नहीं कि एक के पास डिग्री है और दूसरे के पास नहीं है.ब्लॉगर के पास अनुभव का विशाल खज़ाना होता है जिसकी अनदेखी सिर्फ इस वजह से नहीं की जा सकती कि इसने किसी पत्रकारिता संस्थान से कोर्स नहीं किया है !
अंत में यही कहूँगा कि ब्लॉगर को पत्रकार बनने की लालसा से रहित होकर लगातार उत्कृष्ट कार्य करते रहना चाहिए, बेहतरीन मापदंड स्थापित करते रहना चाहिए. ब्लॉगर को ये नहीं भूलना चाहिए कि वे सड़ गल चुकी पारंपरिक मीडिया से इतर एक बेहतर विकल्प के रूप में उभरे है. इनको पत्रकारों के समूह और मीडिया प्रकाशनों में व्याप्त गलत तौर तरीको से बच के रहने की जरूरत है. ब्लॉगर ये कभी ना भूले कि उसे पत्रकार जैसा नहीं वरन पत्रकार से बेहतर बनना है.
ये लेख मेरे कैनेडियन अखबार में छपे इस अंग्रेजी लेख पर आधारित है:
A Calling Higher Than Journalist
Pics Credit:
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