हिंदी पत्रकारिता की धज्जिया उड़ाने वाले कोई और नहीं हिंदी के तथाकथित पत्रकार खुद है. ये पत्रकारिता नहीं मठाधीशी करते है. कम से कम उत्तर भारत के सबसे ज्यादा बिकने वाले एक प्रसिद्ध हिंदी दैनिक के कार्यालय में जाने पर तो यही अनुभव हुआ. अखबार देखिये तो लगता है खबर के बीच विज्ञापन नहीं बल्कि विज्ञापन के बीच खबर छप रही है. उसके बाद भाषा का स्तर देखिये वही हिंग्लिश या फिर सतही हिंदी का प्रदर्शन. और करेला जैसे नीम चढ़ा वैसी ही बकवास खबरे. मसलन बराक ओबामा को भी अपनी पत्नी से डर लगता है! इस खबर इस समाचार पत्र ने फोटो सहित प्रमुखता से छापा पर इस अखबार के लोगो को पुरुष उत्पीडन जैसी गंभीर बात को जगह देने की समझ नहीं। इसकी सारगर्भिता को समझाना उनके लिए उतना ही कठिन हो जाता है जैसे किसी बिना पढ़े लिखे आदमी को आइंस्टीन के सूत्र समझाना। बिना पढ़े लिखे आदमी को भी बात समझाई जा सकती है अगर वो कम से कम सुनने को तैयार हो मगर वो ऐसी बात सुनकर मरकही गाय की तरह दुलत्ती मारने लगे तब? हिंदी पत्रकारिता आजकल ऐसे ही लोग कर रहे है.
हिंदी पत्रकारिता का जब इस देश में उदय हुआ था तो उसने इस देश के आज़ादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उस युग के सभी प्रमुख क्रांतिकारियों के अपने समाचार पत्र थें. लेकिन आज के परिदृश्य में ये पूंजीपतियों के हाथो में सबसे बड़ा अस्त्र है अपने प्रोडक्ट को बेचने का, राजनैतिक रूप से अपने विरोधियो को चित्त करने का. सम्पादकीय आजकल प्रभावित होकर लिखे जा रहे है. हिंदी समाचार पत्र में छपने वाले समाचार खबरों के निष्पक्ष आकलन के बजाय अंग्रेजी अखबारों के खबरों का सतही अनुवाद भर है. मै जिस उत्तर भारत के सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले प्रसिद्ध समाचार पत्र की बात कर रहा हूँ वो अपने को सांस्कृतिक विचारो के प्रभाव को दिशा देने वाला समझता है लेकिन अपने अखबार के मिनी संस्करण के पन्नो पर विकृत हिंदी में (माने कि हिंग्लिश) में सबसे कूड़ा खबरे और वो भी “ऑय कैंडी” के सहारे बेचता है. “आय कैंडी” आखिर भारी विरोध के वजह से गायब तो हुआ पर जाते जाते बाज़ार में टिके रहने की समझ दे गया!
बाज़ार में बने रहने का गुर इस्तेमाल करना गलत नहीं है लेकिन इसका ये मतलब ये नहीं है कि आप खबरों के सही विश्लेषण करने की कला को तिलांजलि दे दें. लेकिन हकीकत यही है. हिंदी के पत्रकार और सम्पादक ना सीखना चाहते है और ना ही सीखने की तमीज रखते है. कुएं के मेढंक बने रहना इन्हें सुहाता है. अगर यकीन ना हो तो किसी हिंदी के अखबार के दफ्तर में जाके देख लें. खासकर उत्तर भारत के सबसे ज्यादा बिकने वाले हिंदी के अखबार के दफ्तर में तो जरूर जाए. वहा आपको खुले दिमागों के बजाय दंभ से चूर बंद दिमाग आपको मिलेंगे। क्या ये दिमाग सच को उभारेंगे? समाज को बदलेंगे?

ये पूंजीपतियों के हाथो में सबसे बड़ा अस्त्र है अपने प्रोडक्ट को बेचने का, राजनैतिक रूप से अपने विरोधियो को चित्त करने का. सम्पादकीय आजकल प्रभावित होकर लिखे जा रहे है.
पिक्स क्रेडिट:
बहुत धन्यवाद इन पाठको को जिन्होंने अब तक इसे पढ़ा:
Manish Tripathi, BSNL, Allahabad; Dr. Ashok Gupta, Pediatrician, Faizabad, Uttar Pradesh; Ritu Raj, Ahmedabad, Gujarat; Anand G. Sharma, Mumbai; Gaurav Kabeer, Government Employee, Goa; Shashikant Singh, Patna, Bihar; Rajkumar Singh, New York, USA; Himanshu B. Pandey, Siwan, Bihar; Prashant Sinha, Patna,Bihar; Mohammed Shahab, Ernakulam, Kerala; Shivmurti Mishra, Mumbai; Arvind Singh, Allhabad; Dinesh Saxena, Gurgaon, Haryana; NaWti ShehzaDi; Ashutosh Dubey, Indore, Madhya Pradesh; Shiva Tiwari, Faizabad, Uttar Pradesh aur Rajesh Sharma, Surat, Gujarat.
@ Deodattaji
बहुत धन्यवाद की आपने इस पोस्ट पर अपनी उपस्थिति जताई ….
Sanjay Dikshit, Journalist, New Delhi, said:
जागरण एक न्यूज़ पेपर नहीं… प्रोडक्ट है अब… काम कर चूका हूँ जागरण ग्रुप में पांच साल इसलिए बेहतर जानता हूँ ….
Author’s Response:
बिल्कुल पते की बात कही है!! तभी आपका कथन अनुभव से परिपूर्ण था!!
Sandeep Pandey, Gorakhpur, Uttar Pradesh, said:
बिल्कुल सही कहा आपने …
Author’s Response:
धन्यवाद जी
Satyam Singh, Allahabad, Uttar Pradesh, said:
सर न्यूज़ चैनल का भी यही हाल है …
Author’s Response:
हिंदी जगत में भेड़चाल का बोलबाला है. अच्छा काम करने वाला इनके लिए खतरनाक सरीखा हो जाता है!!!
Rajkumar Singh, New York, USA, said:
बहुत सार्थक सटीक विवेचन था !
Author’s Response:
धन्यवाद जी ….
Nirbhay Mathur, Jaipur, Rajasthan, said:
Well said!!
Author’s Response:
अगर निर्भय जी ने आकर ” वेल सेड ” कह दिया तो समझिये आपने जरूर अच्छा लिखा है 😛
Thakur Murari Mohan, Ranchi, Jharkhand:
Jab “MASS cOMM” karke corporate gharano ki chatukarita karke patrakar kshma kijiyiga “journalist” banenge to unse ummid kya aap mrinal pandey ke star ki karenge?
Aur waise jab aaj kal ke hindi sahityakaron ki hindi doyam darje ki hai aur bihar sahitya sammelan ki kaman ek bahubali ke haath mein hai to media to samaaj ka aaina hai.
Author’s Response:
Vaise Meri Nazron Mein To Mrinal Pandey Bhi Usi Star Ki Patrakar Hai!!!
Author’s Words For Urmila Haritji, Former Student At Indian Institute of Mass Communication (IIMC) And Now A Government Servant, New Delhi:
आपने पढ़ा तो बहुत ख़ुशी हुई. इतने महंगे संस्थानों से लोग पत्रकारिता की डिग्री लेकर निकलते है पर सोचने से विहीन ये नमूने लिखने तक की तमीज नहीं रखते। विशुद्ध दलाल बन गए है ये मेनस्ट्रीम पत्रकार।