हिन्दू विवाह अधिनियम को संशोधित करने में कांग्रेस सरकार जो अति सक्रियता दिखा रही है वो परेशानी और अचम्भे में डालती है. इस सरकार का कार्यकाल एक साल के भीतर ही ख़त्म होने वाला है लिहाज़ा ये अति सक्रियता आत्मघाती है. सम्पति के बटवारे के बारे में इसकी टेढ़ी चाल भारतीय परिवारों के विघटन का कारण बन सकती है. प्रस्तावित क़ानून में बटवारे वाले सेक्शन को लेकर जो उहापोह वाली स्थिति उत्पन्न हो गयी है सरकार के भीतर उससे स्पष्ट है कि इस सरकार के मंत्री खुद भ्रम के स्थिति में है और इस कानून में निहित संपत्ति बंटवारे और मुआवजे से सम्बंधित बिन्दुओ पर वो एकमत रूख नहीं रखते है. हिंदू विवाह अधिनियम’ की धारा 13-बी और ‘विशेष विवाह अधिनियम’ की धारा 28 आपसी सहमति से तलाक के अंतर्गत संपत्ति बंटवारे/ मुआवज़े पर जो सरकार के भीतर अन्तर्विरोध उभर कर आये है उससे ये समझ में आता है कि इस कानून के मूल तत्वों के बारे में सरकार में शामिल मंत्रियो से लेकर अन्य पार्टी के सांसदों को ज्यादा कुछ नहीं पता है . इससे ये सहज ही समझा जा सकता है कि जनता जिसका वो प्रतिनिधित्व करते है उनमे कितना भ्रम व्याप्त होगा। फिर भी ये सरकार इस संशोधन को इतनी जल्दबाजी में कानूनी जामा पहनाना चाहती है ये हैरान करता है.
ये बताना आवश्यक रहेगा कि सरकार ने संशोधन को पास कराने की हड़बड़ी में लॉ कमिशन और संसदीय स्थायी समिति को पूरी प्रक्रिया से बाहर रखा है. इसके खतरनाक दुष्परिणाम होंगे और इस तरह के कानूनों से भारत के युवक-युवतियों का भविष्य अँधेरे के गर्त में जा सकता है. ये निश्चित है कि अगर ये बिल अपने प्रस्तावित स्वरूप में पास हो गया तो ये एक और उदाहरण होगा गैर जिम्मेदाराना तरीके से प्रक्रियागत खामियों से लैस कानून को अस्तित्व में लाने का। पुरुषो एक अधिकारों का प्रतिनिधित्व करने वाली अग्रणी संस्था सेव इंडिया फॅमिली फाउंडेशन (SIFF) ने इस हिंदी विवाह अधिनियम (संशोधन) बिल, २०१०, को अपने वर्तमान स्वरुप में पारित कराने की कोशिशो की तीखी आलोचना करते हुए इस खतरनाक संशोधन को पूरी तरीके से नकार दिया है.
सेव इंडिया फॅमिली फाउंडेशन (SIFF) का ये भी कहना है कि न्यायधीशो को इस कानून के तहत असीमित अधिकार देना किसी तरह से भी जायज नहीं है खासकर महिलाओ से संबधित प्रतिमाह गुज़ारा भत्ता /मुआवज़े के निर्धारण में.
क्या कहता है ये कानून:
विवाह अधिनियम (संशोधन) विधेयक 2010’ “असुधार्य विवाह भंग’ को हिंदू विवाह अधिनियम 1955 और विशेष विवाह अधिनियम 1954 के तहत तलाक मंजूर करने के एक आधार के रूप में स्वीकार करता है. इसके साथ ही तलाक के मामले में अदालत पति की पैतृक संपत्ति से महिला के लिए पर्याप्त मुआवजा तय कर सकती है. विधेयक में पति द्वारा अर्जित की गई संपत्ति में से पत्नी को हिस्सा देने का प्रावधान है.
कुछ आवश्यक बिंदु:
इस कानून को महिलाओ के पक्ष में बताना खतरनाक है क्योकि भारत में सत्तर प्रतिशत परिवार गरीब वर्ग में है जो ज्यादातर क़र्ज़ में डूबे है और जिनके पास संपत्ति नाम की कोई चीज़ नहीं है, जिनके ऊपर पहले से ही बेटी बेटो के भरण पोषण और उनके शादी ब्याह जैसी जिम्मेदारियां है. ये कानून केवल एक ख़ास वर्ग में सिमटी सम्पन्न महिलाओ को ध्यान में रखकर अस्तित्व में आया है लिहाज़ा मुख्य धारा के राजनैतिक दलों को इसके विरोध में खड़े होकर इसके खिलाफ वोटिंग करनी चाहिए। ऐसा इसलिए कि इस कानून के पारित होने के बाद तलाक के प्रतिशत में अगले दस सालो में लभग तीस प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी हो सकती है.
प्रस्तावित हिन्दू विवाह संशोधन को सम्पूर्णता में देखे जाने की जरूरत है जैसे कि संयुक्त रूप से बच्चो का पालकत्व या बच्चों की जिम्मेदारियों के वित्तीय वहन से सम्बंधित कानून की इसमें क्या भूमिका रहेगी. सिर्फ मासिक भत्ते के निर्धारण में सक्रियता दिखाना उचित नहीं। क्या पति ताउम्र भत्ता गुज़ारा देता रहेगा संपत्ति बंटवारे के बाद भी जिसका हिस्सा खुद की संपत्ति और विरासत में मिली संपत्ति से मिलकर बनता है? ये कुछ अति महत्त्वपूर्ण बिंदु है जिनको संज्ञान में लेना आवश्यक है और इन्हें उनके बीच चर्चा में शामिल करना है जो इन कानूनों से प्रभावित हो रहे है. अव्यवस्थित रूप से निर्धारित बिन्दुओ को कानून बना के पास करना बेहद गलत है.
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सेव इंडिया फॅमिली फाउंडेशन (SIFF) का सरकार को निम्नलिखित सुझाव:
सरकार इस कानून को तुरंत वापस लें और मौजूदा संसदीय अधिवेशन में इसे ना पेश करे. सरकार इस कानून की भाषा में परिवतन करे और इस लिंग आधारित भेदों से ऊपर करे जिसमे पति (husband) और पत्नी (wife) को ” जीवनसाथी” ( spouse) और स्त्री (man) और पुरुष (woman) को ” व्यक्ति” (person) में परिवर्तित किया जाए. इसके साथ ही किसी भी जीवनसाथी को तलाक़ अर्जी का विरोध करने की छूट हो कानून की समानता के रौशनी में. सरकार इस बात का भी निर्धारण करे कि अर्जित संपत्ति के निर्माण में पत्नी का क्या सहयोग रहा है या पति के परिवार के भौतिक सम्पदा के विस्तार में क्या योगदान है. इसको निर्धारित करने का सूत्र विकसित किया जाए. इसके निर्धारण में शादी के अवधि को ध्यान में रखा जाए, बच्चो की संख्या का ध्यान रखा जाए, और क्या स्त्री कामकाजी है या घरेलु. अगर स्त्री तीन बच्चो की माता है, वृद्ध सदस्यों की देखरेख का जिम्मा ले रखा है, तो उसका योगदान अधिक है बजाय उस स्त्री के जो कामकाजी है और जिसके कोई बच्चे नहीं है एक साल की अवधि में.
इस सूत्र के मुताबिक ही किसी व्यवस्था को संचालित किया जाए जीवनसाथी को प्रतिमाह भत्ते के सन्दर्भ में, मुआवज़े के सन्दर्भ में या किसी और समझौते के सन्दर्भ में. न्यायधीश महोदय इस सूत्र की रौशनी में अपने विवेक का इस्तेमाल कर उचित फैसले लें. लिहाज़ा इस सूत्र के अंतर्गत अगर स्त्री के सहयोग का अनुपात पति या उसके परिवार के संपत्ति के अर्जन में पूरी संपत्ति के मूल्य से अधिक है तो उसे पूरी संपत्ति पर हक दिया जा सकता है. अगर पत्नी इसको लेने से इनकार कर सकती है तो वो मासिक गुज़ारे भत्ते वाले विकल्प को अपना सकती है. कहने का तात्पर्य ये है कि संपत्ति में हिस्सेदारी के बाद उसका मासिक गुज़ारे भत्ते को लेते रहने का अधिकार ख़त्म हो जाता है. दोनों विकल्पों का लाभ लेने का हक जीवनसाथी को नहीं मिलना चहिये.
सरकार को इस सूत्र को अस्तित्व में लाने के लिए एक कमेटी या योजना आयोग का गठन करना चाहिए.
सरकार को सयुंक्त भरण पोषण का अधिकार बच्चे के बायोलॉजिकल अभिभावक द्वारा और बच्चे के ग्रैंड पेरेंट्स से स्थायी संपर्क को अनिवार्य कर दिया जाए, जब तक कि कोर्ट इसके विपरीत राय ना रखती हो. इसके अनुपालन के अभाव को आपराधिक जुर्म के श्रेणी में रखा जाए। अगर कोई अभिभावक इस सयुंक्त के जिम्मेदारी से मुंह मोड़ रहा है या ग्रैंड पेरेंट्स से संपर्क में बाधा डाल रहा है तो इसको अपराध माना जाए.
सरकार ये सुनिश्चित करे कि न्यायालय को अपने विवेक के अधिकार का इस्तेमाल करने की सीमित आज़ादी हो संपत्ति बटवारे के निर्धारण में, मासिक गुज़ारे भत्ते के सन्दर्भ में और बच्चे के पालन पोषण सम्बन्धी मामलो में. बहुत ज्यादा अधिकार न्यायालय को देने का मतलब ये होगा कि कोर्ट का अवांछित हस्तक्षेप मामले को और जटिल बना देगा या कोर्ट का गैर जिम्मेदाराना रूख स्थिति को और विकृत कर देगा। अधिकतर पुरुष फॅमिली कोर्ट पे भरोसा नहीं करते, क्योकि इस तरह की कोर्ट पुरुषो के अधिकार के प्रति असंवेदनशील रही है. न्यायालय वर्षो लगा देती है पति को अपने बच्चो से मिलने का फैसला देने में और तब तक बच्चे की स्मृति पिता के सन्दर्भ में धूमिल पड़ जाती है.
सरकार ये सुनिश्चित करे कि महिला पैतृक संपत्ति और वहा अर्जित संपत्ति में जो हिस्सेदारी बनती हो उसे अधिग्रहित करे. उसे अपने कब्जे में लें. सरकार को हिन्दू विवाह अधिनियम में संशोधन करके महिला को अपने पिता के घर में रहने का स्थान सुनिश्चित करे , ताकि कम अवधि वाली शादी में अलगाव की सूरत में उसे रहने की जगह उपलब्ध हो. अगर माता पिता इस सूरत में उसे पति के घर जाने के लिये विवश करते है तो इसे अपराध की श्रेणी में रखा जाए. इसी प्रकार अगर महिला के माता पिता या महिला के भाई उसे पैतृक संपत्ति/ अर्जित संपत्ति में हिस्सा देने से इनकार करते है तो इसे असंज्ञेय प्रकार का अपराध माना जाए.
उन्होंने कहा कि अगर पति-पत्नी में से कोई भी एक व्यक्ति अगर संयुक्त आवेदन देने से इनकार करता है, तो दूसरे को आपसी सहमति के बजाय अन्य आधार पर तलाक के लिए आवेदन देने की अनुमति दी जानी चाहिए.
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इस देश में कानून बना देने ही को सब समस्यायों का हल मान लिया गया है. और इस तरह के दिशाविहीन कानून जो प्रक्रियागत कमियों से लैस है उनका अस्तित्व में आना तो और भी खतरनाक है. वो इसलिए कि न्यायालय हमारे यहाँ किन दुराग्रहो से अधीन होकर काम करते है वो सब को पता है. एक तो सिस्टम गलत तरीके से काम करता है और दूसरा न्याय के रास्ते में इतने दुराग्रह मौजूद है कि सिर्फ लिखित कानून बना देने से सही न्याय मिल जाएगा ये सिर्फ एक विभ्रम है. इस तरह के पक्षपाती कानून सिर्फ भारतीय परिवार का विनाश ही करेंगे जैसा कि दहेज कानून के दुरुपयोग से हुआ है. सिर्फ मंशा का सही होना ही काफी नहीं बल्कि आप किस तरह से उनका सही अनुपालन करते है ये आवश्यक है. ये तो सब थानों में बड़े बड़े अक्षरों में लिखा रहता है कि गिरफ्तार व्यक्ति के क्या अधिकार है पर क्या थानेदार साहब इन सब बातो की परवाह करके कभी थाने में काम करते है? नहीं ना! यही वजह है कि इस तरह के अपूर्ण कानून न्याय का रास्ता नहीं वरन तबाही का मार्ग खोलते है. हिन्दू विवाह अधिनियम में इस लापरवाही से संशोधन करके पहले से इन कानूनों से त्रस्त हिन्दू परिवारों पर एक और घातक प्रहार ना करे.
( प्रस्तुत लेख सेव इंडिया फॅमिली फाउंडेशन के नागपुर शाखा के अध्यक्ष श्री राजेश वखारिया से बातचीत पर आधारित है)
References:
Many thanks to these readers for making their presence felt on this post 🙂
Rajesh Vakharia, President, Save India Family Foundation, Nagpur, Maharashtra; Mra Joynto, Allahabad, Uttar Pradesh; Ajay Verma, New Delhi; Brijesh Pandey, Mumbai, Maharashtra; Abha Chawala Mohantry; Radhakrishna Lambu, Bangalore, Karnataka; Ravi Hooda, Canada; Chandrapal S. Bhasker, United Kingodom (U.K.); Gaurav Dubey, Jabalpur, Madhya Pradesh; Shantanu Pandey; Gautam Kapoor; Deepak Dhabhai; Pitamber Dutt Sharma; Anjn Kumar, Raipur, Madhya Pradesh; Anupam Verma, Mumbai; Chopra Arush, Haryana; Prabhpreet Sandhar; Deewaker Pandey, New Delhi; Bala Chander Reddy, Hyderabad; Rana Ram Veera, Jalandhar, Punjab; Nikhil Garg, Noida, Uttar Pradesh; Rekha Pandey, Mumbai, Maharashtra; Yogesh Pandey, Lucknow, Uttar Pradesh; Sc Mudgal, New Delhi and Abhimanyu Jha.
Yogesh Pandey, Lucknow, Uttar Pradesh, said:
योगेश पाण्डेय यह हिन्दुस्तान में कुछ भी हो सकता है, बस उचित और सही क़दम न होने वाला…
Author’s Response:
सटीक बात ….
@ Deewakar Pandey, New Delhi, said:
बहुत बड़ी समस्या होगी सर इस नए क़ानून से …..
Author’s Response:
…….पर यही बात दोषपूर्ण कानून बना कर प्रजा पर थोपने वालो को नहीं समझ में आ रही है….
Ajay Tyagi, Noida, Uttar Pradesh, said:
सामाजिक मामलों में कानून का दखल बेहद खतरनाक स्थति तक पहुँचता जा रहा है।
Author’s Response:
और इस नासमझी का नतीजा होगा भारतीय परिवारों का विघटन जो पहले से ही कई मार सह रहा है….
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Ajay Tyagi said:
बिलकुल सही कहा….
Rajesh Dubey, Kishanganj, West Bengal, said:
कांग्रेस पार्टी हिन्दुओ पर चौतरफा हमला कर रही है! अब नहीं जागे तो बहुत देर हो जायेगी …
Author’s Response:
कांग्रेस की नीयत को पहचान होगा हिन्दुओ को … और संगठित होकर इसकी ताकत को खत्म करना होगा …
Rakesh Kanwar, New Delhi, said:
घर घर में आग लगा देंगे ये लोग… बड़े कमी**** है ये
Author’s Response:
हिन्दुओ के घर को उजाड़ने का लगता है कांग्रेस ने कॉन्ट्रैक्ट ले रखा है विदेशी ताकतों से हाथ मिला कर …
Mumtaz Qureshi, Indore, Madhya Pradesh, said:
ये कानून भारतीय सभ्यता और संस्कृति को विनाश की और ले जाएगा ….
Author’s Response:
इसकी आधारशिला तो तो पूर्व में बने कानून पहले ही रख चुके है … ये नए कानून तो ताबूत में कील ठोकने के समान है …..
Sudhir Gawandalker, Bangalore, Karnataka, said:
गवर्नमेंट इस मूड में नहीं है कि इस कानून पर नया संशोधन लागू करे …
Author’s Response:|
संशोधन करके अपने पैर पे कुल्हाड़ी ना ही मारे तो अच्छा ।लेकिन कांग्रेस की नीयत को देखते हुए कुछ भी संभव है .
One Vishu Dev said ( not on this post but elsewhere):
If men does not perform his duty there is punishment, but when women do not perform duty they get maintenance, compensation and alimony.
This is called CONGRESS JUSTICE….
Mumtaz Quershi, Indore, Madhya Pradesh, said:
केंद्र सरकार हिन्दू अधिनियम में संशोधन कर रही है जिसके कारण परिवार नाम की संस्था ख़त्म होने वाली है मगर हिंदुत्व का राग अलापनी वाली बीजेपी या अन्य धार्मिक हिन्दू नेता खामोश क्यों है ?
Author’s Response:
सही मसलो पर मुख्यधारा की सभी पार्टी या तो चुप्पी साध लेती है या फिर संदिग्ध रूख अपना लेती है
Ravi Hooda, Toronto, Ontario, said:
अरविन्द जी …..जिस प्रकार एक अनार सौ बीमार की कहावत सार्थक है उसी प्रकार देश की साड़ी व्याधियों का उपचार एकमात्र मोदी जी हैं ! मोदी लाओ देश के रोग भगाओ !
Author’s Response:
अभी तो रास्ता मोदी के पास से ही होकर गुज़र रहा है 🙂 हा हा हा
Manjoy Laxmi, Nagpur, Maharashtra, said:
The Marriage Act is only for Hindus. Why not it should be for all citizens?
Author’s Response:
That’s the real issue..Laws are being framed to tame Hindus, target Hindus…We need a better governance since it alone can deal with various biased bodies in desired way…Like not allowing bodies like Law Commission to ensure vote bank among females and minorities..
Manjoy Laxmi, Nagpur, Maharashtra, said:
Being husband they want us to give so much. Then being wife what should she give to husband? Doesn’t she has any duty towards husband and children? What if she has more assets, property than husband? Sidha sidha lootmar hai, chori hai…
Author’s Response:
Correct..
Author’s word for Ashok Gupta, Pediatrician, Faizabad, Uttar Pradesh:
आप एक डॉक्टर है पर ये देख के अच्छा लगा कि आप कानून की बारीकियो पर निगाह रखते है. महसूस करते है कि गलत हो रहा है. अफ़सोस और हैरानगी इस बात पर है कि ये कानून को बनाने वाले नहीं समझ रहे है ….
Author’s word for Mile Sur Mera Tumharaji ( Shwetaji), California, USA:
भारत सच में आज़ाद नहीं हुआ श्वेताजी ।केवल शोषण करने वाले बदल गये। पहले ये गौर्ण रंग के थे …अब ये काले रंग के हो गए … नहीं बदला कुछ तो वो है शोषण करने का तरीका …
Author’s word for Swami Prabhu Chaitanya, Patna, Bihar:
बेहद तकलीफ होती है नीति निर्माताओ की सोच देखकर जिनके लिए देश से बढ़कर है अपने क्षुद्र स्वार्थ …
Angel Sharma, Chandigarh, Punjab, said:
कानून बनाने वाले हर बहु को देवी सीता ही मानते है। शायद उनको ये नहीं पता कि रामायण में एक कैरेक्टर सूर्पणखा भी थी. आजकल देवी सीता जैसी बहु तो ढूँढने से भी नहीं मिलती है. हां सूर्पणखा हर घर में मौजूद है बहु के रूप में!
Author’s Response:
एंजेल जी बहुत पते की बात कही है: सूर्पणखा तो बहु के रूप में घर घर में मौजूद है … सीताजी टाइप का तो ढूँढने में भी अता पता नहीं मिलेगा …लेकिन कानून बनाने वालो को सावन के अंधे को जैसे सिर्फ हरियाली ही दिखती है सब तरफ वैसे ही हर तरफ बहु के रूप में सीता मैय्या के ही दर्शन हो रहे है … ऐसे अन्धो का पहले ईश्वर सही दृष्टि दे तभी ना उनको सच्चाई दिखेगी
Vishu Dev, Mumbai, Maharashtra:
भारत से धीरे धीरे हिन्दू संस्कृति खत्म करना चाहती है कांग्रेस सरकार …
Author’s Response:
इरादे तो वीभत्स कुछ इसी टाइप के लग रहे है .
Ashok Gupta said:
यही कहकर एक बिल को डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने लौटा दिया था, नेहरू काल में….वो बिल पैतृक उत्तराधिकार से सम्बंधित था….
( He said that in response to my observation: “आप एक डॉक्टर है पर ये देख के अच्छा लगा कि आप कानून की बारीकियो पर निगाह रखते है. महसूस करते है कि गलत हो रहा है. अफ़सोस और हैरानगी इस बात पर है कि ये कानून को बनाने वाले नहीं समझ रहे है ….”
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Author’s Response:
ओह ये बात तो मुझे नहीं पता थी..
Anjeev Pandey, Journalist, Nagpur, Maharashtra, said:
हिन्दुत्व व भारतीय समाज के समूल विनाश की गहरी साजिश है ये सब। मगर ये हमारा डीएनए नहीं बदल सकते। परिणाम विद्रोह। देखना आप….
Author’s Response:
जब जागे तभी सबेरा …हिन्दुओ को संगठित होकर इस तरह के लोगो को उनको काल के गर्भ में दफ़न कर देना चाहिए ….