अलबर्ट आइंस्टाईन की तमन्ना थी कि एक ऐसा जहां हम बनाएं जहाँ मानवीय दुर्गुण न पहुच सके। जो इसके प्रभाव से परे हो। लेकिन शायद ये बहुत ही आदर्श स्थिति है जिसकी परिकल्पना तो ठीक है इसको असल जिंदगी में रूपांतरित करना शायद संभव नहीं। इसको फेसबुक पर व्याप्त नौटंकी से समझे। इस पहले ये देखे कि इस दुनिया में देखिये क्या हो रहा है। कोई भी अच्छा आदमी हो। उसके बारे में इतने सारे भ्रम फैला देंगे कि और तो और वो आदमी खुद भी भ्रमित हो जाएगा कि उसका असल चरित्र क्या है। ये दुनिया के लोग प्रमोट तो नहीं करेंगे पर हा सामूहिक रूप से मिलकर उसके इज्ज़त का चीरहरण जरूर कर देंगे। और ऐसे ही लोग किसी भी संस्था, फोरम को गिराने के पीछे भी होते। और ऐसा नहीं कि ये बिना दिमाग वाले लोग है। इनके पास बहुत दिमाग है लेकिन जैसे कि होता है कि भारी भरकम ओहदे और ऊंची डिग्री वालो के पास सिर्फ अहम होता है सो ये ना जिंदगी जी पाते है और ना ही किसी भी फ़ोरम की आदर्श स्थिति को ये बरकरार रहने देते है। मटियामेट करना ही इनको आता है, सब अच्छे खूबसूरत चेहरों और गतिविधियों को इनको सिर्फ विकृत करना ही आता है। हर साधारण चीज़ को ये जटिल बना देते है जिसको सुलझाने की तमीज इनके पास नहीं होती। आइये फेसबुक के माध्यम से समझे। लोग मानते है कि ऑनलाइन जगत सच्ची दुनिया से अलग है। बिलकुल अलग नहीं है। बल्कि ये आपके ही गुणों अवगुणों का आइना है। आप माने ये ना माने ये अलग बात है।
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*फेसबुक स्टेटस की महिमा*
मेरे एक मित्र है। थोडा बीमार पड़ गए है। पता नहीं किन ग्रह नक्षत्रो के चलते इसका उल्लेख फेसबुक पर कर दिया। कर दिया सो कर दिया पर देखता हूँ कि कई बुडबक उस स्टेटस को लाइक करके निकल गए है। इसी बेहायी के चलते फेसबुक का स्टेटस लोग गिरा रहे है। जब दिमाग का इतना वाहियात इस्तेमाल फेसबुक पर कर रहे है तो मन डरता है ये सोचकर कि असल जिंदगी में ये कितने सुलझे हुएँ होंगे। किसी भी अच्छे प्लेटफार्म/ फोरम का ऐसे लोग ही स्तर गिराने के पीछे होते है।ये तो अच्छा हुआ एक पुरुष मित्र बीमार पड़ा। स्त्री जात का स्टेटस होता तो और नौटंकी होती। लाइक्स कही अधिक होती। ठीक होने की शुभकामनाएं भी अधिक होती।
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*फेसबुक पर तर्कों का औचित्य*
कानून का विद्यार्थी रहा हूँ इसलिए आर्ग्यूमेंट्स का महत्त्व औरो से बेहतर समझता हूँ लेकिन होता ये है कि जहा भेड़िया धसान सरीखा माहौल हो, कोई बुडबक कुछ भी बक सकता है वहा क्या तर्क करे और क्यों करे। खैर कुल मिला के बात सिर्फ है कि अपनी बात कहने का हौसला रखे कैसा भी माहौल हो जब तक आत्मा गंवारा करे खासकर तब जब बोलना ख़ामोशी से बेहतर हो। और उसके बाद ख़ामोशी से कट ले। हम तो यही करते है। आप का मै कह नहीं सकता।
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ना जाने किन वाहियात लोगो ने कैसे कैसे ग्रुप बना रखे है और बिना अनुमति लोगो को जोड़ते घटातें रहते है। इसमें एक सनकी मॉडरेटर रहता है। जिसको ना जोड़ने की तमीज है और ना ही ग्रुप की गतिविधियों को मानिटर करने की तमीज। कहने को ये खुले दिमाग का होता है पर ये किसी के आधीन होकर एक ख़ास तरीकें ही की बात को प्रमोट करता है। तो जब कोई गतिविधि ना हो। और एक ख़ास दिमाग-गलत दिमाग- जब आपकी सारी बातो का अनर्थ कर डाले तो ग्रुप्स का औचित्य क्या है?
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*फेसबुक वाला इश्क़ एंड फोटोशाप*
इश्क़ जात पाँत का भेद नहीं देखता। उम्र का फासला भी नहीं देखता। असल जिन्दगी में इश्क के इस फ़लसफ़े का सही रूप भी देखने को मिलता है और गलत रूप भी देखने को मिलता है। फेसबुक का यही हाल है। यहाँ भी यही फ़लसफा विद्यमान है अपने सही गलत प्रकार में। सो तो फेसबुक पर भी लोग असली नकली चेहरो के साथ विद्यमान है। किस चेहरे के पीछे कौन है ये आप ठीक ठीक नहीं बता सकते है। कोई थुलथुल महिला भी जूलिया रोबर्ट्स सा फिगर पा सकती है फोटोशाप के जरिये और फील गुड कर सकती है और करा सकती है। एक अधेड़ उम्र का गया गुजरा व्यक्ति भी शाहरुख खान की तस्वीर लगा कर कुछ भी एहसास करा सकता है। जाहिर है कम उम्र की लौंडिया ही पटायेगा बकवास बात करने के लिए। अब इस तरह तो वो गहरा इश्क वाला लव करने से रहा।
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शायद असल जिंदगी की तरह ये आभासी जगत भी अच्छे बुरे लोगो से भरा है। जो सावधानी आप असल जिंदगी में बरतते है वो ऑनलाइन में भी बरतते है। लेकिन मुद्दा ये नहीं है। सावधानी बरतने वाला। तकलीफ ये है कि इस नौटंकी मतलब अच्छे बुरे के फर्क में भेद करने के उपक्रम के चलते अच्छे लोगो का जो प्रताड़ना झेलनी पड़ती है उसकी भरपाई कोई नहीं कर सकता। अच्छे बुरे के बीच संघर्ष तो हमेशा ही चलता आया है और चलता रहेगा। ये कब रुका है। लेकिन अच्छे लोगो की बलि देने का सिलसिला इस संघर्ष के चलते कभी रुकेगा कि नहीं। क्या अच्छे लोग सिर्फ बेवजह बलि चढ़ने के लिए दुनिया में आते है? बताएं कोई?

फील गुड करने के लिए ये असल जूलिया रोबर्ट्स की असल सौम्यता ही काफी है। ये फोटोशाप वाली माया की क्या जरूरत है?
Pics Credit:
Baijnath Pandey, Patna, Bihar, said:
बईमान मोहोब्बत है Arvind K Pandey जी, जब किसी सेलेब्रिटी का चेहरा देखिये समझ जाइए कि दिखाने के लिए कुछ नहीं है लेकिन दिखने की भरपूर चाहत है 😛
Author’s Response:
इस लेख को मैंने तीखे पर नए स्टाइल में लिखा है ..उम्मीद है तन्मयता से पढ़कर ही प्रतिक्रिया दी होगी आपने!! प्रेम में थोड़ी मिलावट और बेईमानी चलती है ..इसका अफ़सोस नहीं ..अफ़सोस तब होता है जब पूरा प्रेम ही एक फरेब होता है ..दाल थोड़ी काली हो चलेगा पर जब पूरी ही दाल काली हो तब? पर ना जाने क्यों आपकी बात सुनकर गुजरे जमाने का ये मीठा सा गीत याद आ गया:
Many Thanks To These Readers..
Ravi Hooda, Canada; Kamla Shokeen, Canada; Jayant Kumar, Dighwara, Bihar; Lokesh Pachouli; Inderjit Kaur, Jalandhar, Punjab; Sudhir Gawandlkar, Bangalore, Karnataka; Ram Ray, Muzaffarpur, Bihar; Anjeev Pandey, Nagpur, Maharashtra; Pandey Neeraj, Nanded, Maharahtra; Himanshu B. Pandey, Siwan, Bihar; Yogesh Pandey, Lucknow, Uttar Pradesh, and Rekha Pandey, Mumbai, Maharashtra.
Divya Srivastava, Lucknow, Uttar Pradesh, said:
fake people are everywhere, we can’t help it.
Author’s Response:
True..And in most of the cases, the sacrificial goat is some good soul amid battle initiated by deceivers..That’s the real pain..