कभी कभी आप चीजों को आप ये कह के गौर नहीं करते कि चलिए हो सकता है ये महज एक इत्तेफाक हो। लेकिन आप ध्यान दे तो आप पायेंगे कि सब में एक वीभत्स पैटर्न शामिल है। कोशिश लोगो की जो इस पैटर्न को परदे के पीछे रह के चला रहे है ये यही होती है कि आपको खबर न लगने पाए मगर एक प्रेग्नेंट औरत कब तक ये झूठ बोल सकती है कि डिलीवरी जैसी कोई बात नहीं। मै खुद रफ़ी के गीतों को बहुत पसंद करता हूँ पर ये रफ़ी के नाम पर जो तमाशा विविध भारती पर हो रहा है वो दुखद है। हद हो गयी है कि किसी न किसी बहाने रफ़ी के गीतों को प्रोग्राम कोई हो आप पे थोप दिया जा रहा है। शायद विविध भारती अपने बचे खुचे श्रोताओ को भी अपने चैनल से भगाना चाहता है। सरकारी दिमाग ऐसे ही काम करते है।
बहुत पहले किसी महिला श्रोता ने सुंदर आवाज़ में पर बुलंद तरीके से अपनी शिकायत एक फरमायशी प्रोग्राम में रखी थी जो शायद इंदौर से थी कि “विविध भारती पे आप जो ये लगातार नए गीत ये कह के बजा रहे कि लोगो ने आपसे कहे है ये सब मुझे सुनियोजित लगता है क्योकि इतने बड़े पैमाने पे लगातार सिर्फ इसी टाइप के फूहड़ नए गीतों का बार बार बजना और अच्छे पुराने गीतों का बिल्कुल ही गायब हो जाना ये सिर्फ लोग ऐसा चाहते है ये ही एक वजह नहीं हो सकती।” उस की बातो से मै पूरी तरह से इत्तेफाक रखता था क्योकि मुझे भी ऐसा एहसास हो चला था। पर समयाभाव के कारण कुछ लिख नहीं पाया और बात आई गयी हो गयी। लेकिन अब लगता है कि विविध भारती ने सभ्य हदों को पार कर दिया है सो ख़ामोशी अब क्रिमिनल हो जायेगी।
पहले लगता था कि रायल्टी एक वजह हो सकती है कि सिर्फ रफ़ी ही रफ़ी विविध भारती के फलक पर उभरे लेकिन बात इससे भी आगे की है। इस वक्त संस्था में वही गणित काम कर रहा है कि जब सरकारे बदलती है तो आपके अपने ख़ास आदमी महत्त्वपूर्ण संस्थानों पर काबिज हो जाते है फिर कोई काम नहीं होता है सिर्फ वही बाते होती है जो प्रोपगंडा चाहता है। इस वक्त विविध भारती पर यही हो रहा है। और विविध भारती पर मार्केटिंग का भी भूत शामिल हो गया है उसकी एक झलक आप को इस उदहारण से मिल सकती है कि आमिर खान का इंटरव्यू प्रसारित होता है “तलाश” के रिलीज़ के वक्त। क्या सरकारी संस्थाएं ऐसे काम करती है? लेकिन विविध भारती भी इसी गंदे समीकरणों में शामिल गया ये बहुत दुखद है। क्योकि आम जनता के पास ये करीब था तो उनको सच बताने की जिम्मेदारी बनती थी या अच्छा मनोरंजन जिसमे सभी प्रतिभाशाली गीतकारो संगीतकारों, गायकों का जिक्र सामान रूप से होता पर रफ़ी नाम का ढोल पीटने का ठेका विविध भारती ने ऐसा ले लिया है कि कोई और आवाज़ उभर ही नहीं रही है।
इससें कही अच्छा काम रेडियो सीलोन पर होता है। वे अपने देश के नहीं होते हुएं भी संगीत के प्रति ईमानदार है, संवेदनशील है। कम सुने हुए गुणी संगीतकारों को हमेशा उभारते है उनका उल्लेख करके, उनके अच्छे कामो का उल्लेख करके समय से। विविध भारती पर ठीक इसका उल्टा हो रहा है। कमर्शियल सर्विसेस के नाम पर अच्छे गीतों को काट पीट कर विज्ञापन बजाये जाते है। किसी को लेख की प्रमाणिकता पर संदेह हो तो विविध भारती चैनल ट्युन करके के देख ले अगर वाहियात नए गीत नहीं बज रहे होंगे तो निश्चित ही रफ़ी का कोई गीत या विज्ञापन बज रहा होगा, मार्केटिंग चल रही होगी, कोई पुराना प्रोग्राम रिपीट हो रहा होगा। तो क्यों नहीं प्रसार भारती विविध भारती का नाम विज्ञापन भारती या रफ़ी भारती रख देती है? विविध भारती से अपने प्रेम को लेकर बेगम अख्तर की यही ग़ज़ल गूँज रही है कि “ए मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया”.
Pics Credit:
Many thanks to Laurie Buchanan, Holistic Health Practitioner—Board Certified with the American Association of Drugless Practitioners, USA, for liking the post. This post refers to treat government’s institution as medium to highlight propaganda..
Many thanks to Sangeeta Mishra, Lucknow,Uttar Pradesh; Avinash Pareek, New Delhi;Sangeeta Ray, Patna, Bihar; Rekha Pandey, Mumbai, Maharashtra; Shashikant R Pandey, Ahmedabad, Andhra Pradesh; Arvind Sharma, Indore, Madhya Pradesh; Himanshu B. Pandey, Siwan, Bihar; Swati Kurundwadkar, Thailand; Dharmendra Sharma, UAE, and Chaitanyaji, Bhopal, Madhya Pradesh, for liking the post..
Sagar Nahar, Coordinater Radio Listener’s Forum, Hyderabad, Andhra Pradesh:
मैने इस चर्चा को “Radionama: रेडियोनामा: बातें रेडियो की” में शेयर किया है देखते हैं मित्र क्या सोचते हैं इस बारे में।
https://www.facebook.com/groups/178120695581026/
Author’s Response:
सागरजी आपने बहुत ही नेक काम किया। मै खुद यही चाहता था कि इस संवेदनशील प्रकरण को अधिक से अधिक सुलझे लोगो के बीच उठाया जाए। इससे कई फायदे होंगे। एक तो इस प्रकरण से जुड़े बिंदु प्रकट-अप्रकट सब उभर कर आएंगे, लोग क्या सोचते है वो बाते सामने आएँगी, फिर इस चुनौती से कैसे निपटा जाए इस पर बात हो सकेगी। इससे निपटने के रास्ते निकल कर सामने आयेंगे। और सबसे बड़ी बात सरकारी संस्था की कार्य प्रणाली को सुधारने के साथ संगीत की गुणवत्ता भी सुनिश्चित हो सकेगी।
अपने फोरम पे चर्चा के लिए प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद।
Abhijeet Gavhankar,Radio cylon fan’s club, Umarkhed, Maharashtra:
………एकदम सही है।।।
Author’s Response:
मै अच्छे संगीत का प्रेमी हूँ, विविध भारती का बचपन से प्रेमी हूँ लिहाज़ा जो सच है वो संगीत के खातिर बताना मेरा नैतिक फ़र्ज़ बन जाता है बाकी का आप चेतन श्रोता जाने, राम जाने!
Mayank Mishra, Varanasi, Uttar Pradesh, said:
सही बात है…..और रफ़ी के अलावा भी बहुत लोग है!!!!
Author’s Response:
धन्यवाद, ये बात तुम्हे तो समझ में आ गयी।। देखे पढ़े लिखे सरकारी दिमागों को ये बात कब समझ में आती है। उम्मीद है बात निकली है तो दूर तलक जायेगी।।
Abhijeet Gavhankar,Radio cylon fan’s club, Umarkhed, Maharashtra, said:
रेडियो सीलोन की बराबरी कोई नहीं कर सकता , विविध भारती से तो आल इंडिया उर्दू सर्विसेज के कार्यक्रम अच्छे और श्रोताओ के खतो पर है …विविध भारती सिर्फ एफ ऍम पर आती है इसलिए लोग सुनते है …मजबूरी है ..एफ ऍम से हटाकर देखे तो फिर कोई नहीं सुनेगा विविध भारती को।
Author’s Response:
अभिजीत जी आप सही कह रहे है लेकिन ये ना भूले विविध भारती ने एक लम्बा सुनहरा दौर देखा है, उम्मीद है विविध भारती सुनहरे दौर को वापस लाएगा अपनी कार्य प्रणाली में सुधार करके।
Swati Kurundwadkar, Thailand, said:
दूरदर्शन और प्रसार भारती नयी कृषि तकनीको, बीमारियों के उपायों, नए टीको, भूले बिसरे गीतों, देशभक्ति गान के कारण गाँव-गाँव तक सुना जाता था।।।। अब हर जगह इतनी गड़बड़ है तो इन्होने भी स्पर्धा में टिके रहने के लिए मॉडर्न बनना ही था।।।
Author’s Response:
अब सब नंगे है तो आप भी नंगे हो जाए ये तर्क समझ से परे है! बहरहाल, विविध भारती को प्रोपगंडा से ऊपर उठकर अपने सुनहरे दौर को वापस लाने की एक ईमानदार कोशिश करनी चाहिए।
Arvind bhai aaj kal vividh bharti me kya ho raha hai ye to mujhe pata nahi,mai pichle 4 saalon se vividh bharti se door hu,parantu jis samya mai vividh bharti sunta tha us samya to aisa nahi tha,har ek program me samaan roop se sabhi singers ke geet baja karte the…haa agar program 1950-1970 based songs ka hota tha to Rafi sahab ke geet jyada bajna to lazmi tha jaise bhoole bisre geet ya sadbahar nagme jo ki subah 7am aur 2.30 pe kramsha: prashareet hota tha….aur agar program 1970-1990 based hota tha to Kishore da ke geet jyada bajna lazmi tha jaisa ki manchahe geet ….Ha geeton ke repeat aur program ke repeat se mai sahmat hu,mujhe Vividh bharti se aksar shikyat rehti thi ki 80’s ke geet bahot hi kam bajaye jaate the khaskar ke Mohd. Aziz ,Shabbir kumar jo ki us daur me choti pe the.
सुधीरजी, आप इस थ्रेड में आये कमेंट्स को पढ़ ले।।आप खुद ही समझ में आ जाएगा कि जो बाते अपने प्रिय संस्था के खिलाफ जाकर कहने का जोखिम उठाया था उसमे मैं कुछ गलत नहीं। जितने भी कमेंट अब तक इस पर आये है वो सब बहुत पुराने श्रोता है और बहुत चैतन्य श्रोता है। आप पढ़िए उन्होंने क्या कहा है तस्वीर खुद ही आपको साफ़ हो जायेगी। सुधीर जी मै बचपन से विविध भारती को सुन रहा हूँ और लगभग सत्ताईस साल हो रहे होंगे। तो निश्चित ही दुखी मन से कुछ समझ के ही मैंने ये बात कही है ना। बात रफ़ी को प्ले करने की नहीं है थोपने की है, प्रोपगंडा की है। आप बताइए भैय्या दूज पर बाबा आज़मी-शबाना आज़मी को बुलाने का क्या तुक है? बताये जरा सा?
Arvind bhai Aapki baat nischit roop se satya hogi kyuki jitni meri umra nahi hui usse jyada samya se aap Vividh bharti ko sun rahe hai,haalaki maine kabhi is baat pe gaur nahi kiya ki Rafi sahab ke geet Vividh bharti jaan boojh ke jyda bajati hai,but mujhe iska simple sa reason yahi samjh aata tha Ki Rafi sahab ne Golden age me baaki gayak gaayikao se kafi jyada geet gaaye hai is wazah se unke geet jyada bajte honge.Waise agar mai FM stations ki baat karu jo ki delhi me bajte hai kuch samya pehle Old songs ke naam pe sirf Kishore da ke hi geet bajaye jaate the parantu isko leke kai logo ne jab awaaz uthai tab kuch had tak baaki gaayko ke bhi geet bajne shuru ho chuke hai.Ab aisa kyu kiya jata hai ye mere samjh se pare hai.Mere hisab se har gayak aur har daur ko samaan roop se variyata deni chahiye wo chahe Rafi sahab ho ya Kishore da .
सुधीर भाई फिर से दोहराते है कि शिकायत रफ़ी से नहीं पर रफ़ी या अन्य के जरिये उन नापाक कोशिशो से है जिसका नतीजा ये हो रहा है कि कार्यक्रमों का स्तर तो गिर ही रहा है और साथ ही साथ में श्रोता वर्ग एकरसता का शिकार हो रहा है, तमाम अच्छे कलाकार हाशिये पर चले जा रहे है।….
सुधीर भाई फिर से दोहराते है कि शिकायत रफ़ी से नहीं पर रफ़ी या अन्य के जरिये उन नापाक कोशिशो से है जिसका नतीजा ये हो रहा है कि कार्यक्रमों का स्तर तो गिर ही रहा है और साथ ही साथ में श्रोता वर्ग एकरसता का शिकार हो रहा है, तमाम अच्छे कलाकार हाशिये पर चले जा रहे है।
और दुसरे मेरी उम्र बहुत नहीं ..सिर्फ ये कि विविध भारती बहुत पहले से सुनना शुरू कर दिया था 😛
Kailash Shukla, Indore, Madhya Pradesh, said:
विविध भारती में क्या हो रहा है ध्यान से देखने और सुने सब मालुम हो जाएगा ..वहा केवल नौकरी हो रही है, वो भी सरकारी।।कुछ डिस्कवरी में अपनी आवाज़ बेच रहे है …कुछ केवल पैसा ही पैसा में बिजी है ऐसा लगता है, कुछ अपने वाले को हाईलाइट कर रहे है ध्यान से सुने।।
Author’s Response:
प्रसार भारती को ध्यान से देखने और सुनने का ही नतीजा है कि ये लेख मुझे लिखना पद रहा है…ये जानता था कि मुझे उस संस्था के खिलाफ जाना पड़ेगा जिसका मै बहुत सम्मान करता हूँ ..मै बहुत पहले से इस तमाशे के खिलाफ अपना तीव्र विरोध दर्ज करा रहा हूँ …केंद्र निदेशक का ध्यान भी बराबर इस तरफ दिलाया। कुछ कार्यवाही भी हुई ऐसा प्रतीत होता है लेकिन कुछ समय बाद फिर वही पुराने ढर्रे पे ये लौट आया। खैर अब आगे देखिये क्या होता है।।।
हमारे इलाहाबाद शहर में ही एक सीनियर जौर्नालिस्ट है अंग्रेजी अखबार के जो रेडियो के बारे में दुर्लभ जानकारियों से लैस है। इनको भी विविध भारती में आये बदलावों से खासी चिढ है। इनके शिकायत है कि जैसे ही कोई अनमोल गीत बजने लगता है उसको धीमा करके नाम का अनाउंस करना, फिर गीतों की सूचना को इस तरह देना कि बहुत से लोग डिटेल्स को सुन नहीं पाते, डिटेल्स एक बार अंत में भी दिए जाए गीत खत्म होने पर पर इनकी ये बात अब तक नहीं सुनी गयी इन तमाम वजहों से अच्छे श्रोता विविध भारती से कट रहे है।
Girdharilal Vishwakarma, Jodhpur, Rajasthan, said:
बिल्कुल सही है …
Author’s Response:
धन्यवाद जी…..
Piyush Mehta-Surat.. says
आज अरविंद पान्डेजी की पोस्ट कहीं पढनेमें आयी अन्य मंच पर तो मं रफ़ी साहब के बारेमें तो लिख़ने से इस वक़्त अलग रहना चाहता हूँ । पर आमीर ख़ान की मूलाकात के बारेमें यह तो कहना ही चाहीए कि इसमें फिल्म तलाश की बात सिर्फ़ एक वाक्य तक़ सीमीत रहती तो अरविंदजी को इतना लिख़ना नहीं पडता और अन्य बात यह भी है, कि इस मूलाक़ात की दोनों किस्तें दो ही दिनमें प्रसारित की गयी, और हल्लो फरमाईश जो गुरूवार के लिये तैयार होगा प्रसारण के लिये, इसे रोक कर फोन करने (या कहे कि कर सकने वाले) श्रोताको काफ़ी निराश होना पड़ा जिस तरह दिल पे लगी और बात बनी के हप्तो तक चले प्रसारण के वक़्त उन श्रोताओ की हालत हुई थी, और इसी की असर है, कि इन दिनो फोन लगने वाले नसीबदार श्रोताओं का रेडियो पर गाना सुनने का इन्तेज़ार करीब चार से पाँच हप्ते का होता है, जिसमें इस बार एक हप्ते का और बढ़ावा हुआ । इस बारेमें ऐसा भी हुआ होगा कि आमीरजीने ख़ूद अपने इन्टर्व्यू के बारेमें सोचा भी नहीं होगा पर विविध भारती के अती उत्साही सदस्योंने यह बात सोची हो । यह इस लिये लिख़ना सही लगता है, कि आमीरजी के सामाजीक उत्तर दायित्वके बारेमें कोई संदेह नहीं है, और वे अगर सिर्फ़ पैसे के लिये काम करते है, तो सालमें सिर्फ़ एक फिल्म तक़ सीमीत नहीं रख़ते अपंने आप को और लगान के लिये ओस्कार पाने की कोशिश के अलावा अन्य कोई एवोर्ड के कभी कोशिश नहीं की है ।