कल सत्ताईस अगस्त को महान गायक मुकेश और ऋषिकेश मुखर्जी दोनों की पुण्यतिथि थी. दोनों ही उस सादगी का प्रतिनिधित्व करते है जो आजकल के दौर में लुप्तप्राय सी हो चली है. मुकेश आत्मा में डूबकर गीत गाते थे तो ऋषिकेश दा आत्मा में डूबकर फिल्मे बनाते थे. जाहिर है इन दोनों के संगम के बाद आनंद की उत्पत्ति होनी ही थी. इस गहरी सोच को जन्म लेना ही था कि जिंदगी कैसी है पहेली. जब ऐसे लोगो कि याद रखकर हम आज के दौर में नज़र डालते है तो आनंद दुःख के सागर में विलीन हो जाता है. आज के गीतों को आप सुनिए तो लगता है जैसे किसी ने कुत्ते को ईंट का ढेला खीच कर मार दिया हो. या कोई कुत्ते का गला दबा रहा हो. या सूअर के बच्चे को बोरी में बंद कर के कही ले जा रहे हो! अजीब सी ध्वनियाँ की बोर्ड और ड्रम बीट्स के मिलन से पैदा की जा रही है जिनका कोई मतलब नहीं सिवाय इसके कि युवा कदमो को नाईट क्लब में झूमने में आसानी हो.
आश्चर्य इस बात पर है कि ये सब तमाशा प्रयोगवाद के नाम पर स्पांसर हो रहा है. इस में बहुत से मूढ़ लोगो को आधुनिकता का सम्मान सा होता दिख रहा है. आप इन गीतों की आलोचना कर के देखिये तो आपको समझाया जाएगा, आप के अन्दर इस बात को जबरदस्ती ठूंसा जायगा कि वक्त बदलता है और बदलते वक्त के साथ कदम मिला के चलना ही अक्लमंदी है. तो बदलते वक्त कि मेहरबानी क्या है देखे तो? ऐसी वाहियात बोल और धुन कि आप लाख सर पटक ले आप बहुत बार सुनने के बाद भी सही सही ना समझ पायेंगे कि गीत में आखिर है क्या. पहले जहां गीत सर दर्द की दवा की आवश्यकता को कम करते थे आज इन दवाओं की बिक्री में सहायक है. एक बात तो तय है कि आज के गीत मार्केट के हिसाब से बन रहे है और मार्केट पे युवा हावी है तो गीत भी इनके टेस्ट के हिसाब से भड़भड़िया हथौड़ाछाप हो गए है. फिर गीत मार्केट में आये नए म्यूजिक सिस्टम के हिसाब से बन रहे है.
अब ये बताये जब गीत इस प्रकार से जन्म लेंगे तो इनमे आत्मा को छूने की ताकत क्या ख़ाक पैदा होगी? इक्का दुक्का अपवाद गिना देने से कि साहब ये देखिये फला ने कितना बढ़िया काम किया है से काम नहीं चलने वाला. ये बात सही है कि हर युग का अपना अलग रंग ढंग होता है, एक अलग मिजाज़ होता है, अपने प्रतीक होते है इसके बावजूद भी ये साबित नहीं किया जा सकता या ये महसूस करने के बहुत कारण नहीं है कि आज के हिंदी फिल्मी गीत उत्कृष्ट कोटि के है. भाई जस्टिफाय करने वाले तो गालीनुमा शब्दों के समूह को भी गीत साबित कर देंगे तो क्या साबित कर देने से गीत एक अच्छे गीत या सिर्फ गीत की श्रेणि में आ जाएगा? आज के गीतों को सुन के ही समझ में आ जाएगा कि गीत पूंजीवादी संस्कृति के संरक्षक है और मुंबई के मंडी में बैठे दलालनुमा दिमागों की उपज है. तो ऐसे गीतों से तौबा जिनसे दिमाग का दही बनने में जरा भी देर ना लगे.
शाम के धुंधलके में बैठे हुए मुझे तो आनंद का ये गीत “कहीं दूर जब दिन ढल जाए” याद आ रहा है जो मै मुकेश और ऋषिकेश मुखर्जी को श्रद्धांजलि स्वरूप भेंट कर रहा हूँ और ये महसूस कर रहा हूँ कि हम ये कहा आ गए है.
Pics Credit:
Sucheta Singhal, New Delhi, said:
पच्छिम का गंद … full throttle आने लगा है अब 😦
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Author’s Response:
ucheta Singhal
सुनिए ये गीत जाने कहा गए वो दिन
Dhanyavad Manoj Joshi, Udaipur (Rajashthan); Rajesh Vakharia, Nagpur (Maharashtra); Sanjay Khatriji, Jabalpur (Madhya Pradesh); Sanjay Verma, Jabalpur (Madhya Pradesh); Virendra Goswami, Jaipur(Rajasthan); Dubeyji,Ranchi (Jharkhand); Sudhir Dwivediji, New Delhi; Sagar Nahar, Hyderabad (Andhra Pradesh); Dilip Sharma, Nathdwara, Rajasthan; and Rajat Sharmaji is lekh par ek nazar daalne ke liye.
Virendra Goswami, Department of Water Resources, Jaipur( Rajashthan) said:
जो सब आपने वर्णित किया है, वाक़ई उससे सभी संजीदा संगीत प्रेमी त्रस्त हैं…
Author’s Response:
हाँ सीधे दिल से निकले जस्बात कुछ तो असर दिखाते ही है..उससें अधिक खलता है जब इन गानों मतलब कूड़ा कड़कट को ना पसंद करने पर आपको पिछड़ा समझ लिया जाता है..
Shikha Shukla, Jaipur (Rajashthan) said:
उम्दा लेख ..
Author’s Response:
धन्यवाद आपके इस अनमोल उदगार के लिए…
Kalpana Tripathi, Mumbai (Maharashtra) said:
Still melodious songs are composed except few…
Author’s Response:
100 में नब्बे में बेईमान फिर भी मेरा भारत महान ऐसी ही है बालीवुड में अच्छे गीतों की उपज ….इन उठा पटक गीतों के भीड़ में दबे एकाध मासूम से गीत वैसे ही है जैसे किताबो के बड़े से बण्डल के नीचे दबी पतली सी अच्छी सी मैगज़ीन..
Ranjit Singh, Howrah (West Bengal) said:
सच है…
Author’s Response:
धन्यवाद रणजीत सिंहजी..ऐसे गीतों की वजह से रुई का कारोबार जरूर बढ़ जाएगा!!
itne achhe post ke liye shukriya. Aap ke liye ek achha sa gana!
@Amit Chaturvediji
अमितजी आप जब आते है कुछ अच्छा और नया लेके आते है..कुछ सुधार करके जाते है..देखिये आपने आके मुझे ये गीत सुना दिया जो कि आश्चर्य कि बात है कि मेरा बहुत ही कम सुना हुआ है…वो भी तब जब अभिमान और चुपके चुपके और मिली का एच एम वी पे काम्बिनेशन मेरे पास पड़ा हुआ है कालेज के जमाने का खरीदा हुआ..ये अलग बात है इस में आपका गीत नहीं है..सो इस अच्छे से गीत से मुलाक़ात करवाने के लिए धन्यवाद…
आपको मै मुकेश का ये गीत सुनवाता हूँ जो मुझे बहुत प्रिय है..तेरे प्यार को इस तरह से भूलाना ना दिल चाहता है ना हम चाहते है…
Kalpana Tripathi, Mumbai( Maharashtra) said:
See u have to broaden your spectrum, I know these songs are of different kind but still they r melodious and u cannot ignore it. It’s true these days songs are not up to that standard’s as it was before. But you cannot describe the way u did. Its ur perception still we hv good composers like A R RAHMAN, Shanker, and others….
Author’s Response:
आपके इस असहमति के सुर से मुझे कोई शिकायत नहीं 🙂 पर भी आपके “broaden ur spectrum” वाली बात पे आपत्ति है काहे कि इस लेख पे मैंने स्पष्ट कर दिया है कि अच्छा संगीत बन जरूर रहा है पर उनकी संख्या इतनी नगण्य है कि इसको बहुत तूल देना उचित नहीं. आपने थोडा सा उतावलापन दिखाया है कमेन्ट पोस्ट करने में ..लेख को फिर से पढ़िए या मेरे कमेन्ट को आपको कही भी इस बात का जिक्र नहीं मिलेगा कि मैंने जो अच्छे गीत बज रहे है उनकी उपेक्षा की है. रहा सवाल इस बात का कि ये आपका viewpoint है तो इस बात का कोई मतलब नहीं. जाहिर है लेखक की कृति में उसके अपने मत ही होंगे लेकिन जब मत तथ्यात्मक बिन्दुओ पर टिके हो तो इस बात का कोई ख़ास मतलब नहीं कि मत किसका है.
सवाल ये है कि वो मत सच के कितने करीब है. जिस भारी संख्या में लोगो ने लेख में लिखी बातो से सहमती जताई है दिखता तो नहीं कि जो मैंने कहा वो सिर्फ मेरा ही मत है. उसमे लोगो कि दबी हुई भावनाएं प्रकट हुई है…वैसे में आपको बताना चाहूँगा कुछ ऐसा ही विभ्रम पैदा हुआ था किसी के लेख में तब मैंने एक अलग से नए गीतों की पोस्ट लिखी थी ऐसे ही भ्रम को दूर करने के लिए और “तेरी कह के लूँगा” ,”हलकट जवानी” “डी के बोस” से बचते बचाते, बुजुर्गो की तोहमत झेलते हुएँ, कुछ नए गीत पोस्ट किये थे..ये रहा उस पोस्ट का लिंक. अंत में आपके असहमति के सुर से कोई आपत्ति नहीं.
https://indowaves.wordpress.com/2011/11/11/%E0%A4%8F%E0%A4%95-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A3-%E0%A4%B9%E0%A4%AE-%E0%A4%86%E0%A4%9C-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4-%E0%A4%95%E0%A5%87/
Harish Sheth, Ausa (Maharashtra) said:
Dhanyawad Arvind ji, Aajka filmi sangit jiska saastriya raagon se shaayad hi koi taal-mel ho.
Bas wohi chal raha hai,sunayi padta hai, sab se kuch alag aur vichitra banane ki hod me apni asli madhurta ka aalap ab lipt ho raha hai. Isi ko 3G ki ruchi maankar hum ji rahe hain.
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Author’s Response:
आप खुद सोचे ये गीत किस तरह बनते है आजकल..सब मेकैनिकल हो गया है..इधर से टुकड़ा उठा लिया..उधर से उठा लिया..फिर जोड़ जाड के एक गीत बन गया कम्प्यूटर बाबा की महिमा से :-)..तो इस तरह के फास्ट फ़ूड टाइप के गीतों में हम क्या शास्त्रीयता की तलाश करे?. जैसे आते है वैसे आके चले जाते है ये गीत ..रहा जाता है कानो में बेसुरापन
Sagar Nahar, Hyderabad( Andhra Pradesh) said:
कहाँ से आए अब वे नौशाद, अनिल विश्वास, रोशन, जयदेव, सीरामचन्द्र, ओपी नैयर.. और कहां से आए वो दिल में सीधे उतर जाने वाला संगीत, भई अब तो जिसके पास पुराना माल पड़ा है सुने और और खुश होए बाकी जिनके पास नहीं है उनके लिए युट्यूब आदि है ही।
काम तो अब उन्हीं से चलेगा जो आज अपना माल बेच रहे हैं।
Author’s Response:
सही बात है सब युग की महिमा है..ऐसे लोग बनते नहीं पैदा होते है सागरजी..अब जब सब कुछ एक प्रोडक्ट बन चुका है तो हमे फिर फैक्ट्री में जो तैयार हो रहा है उस से ही काम चलाना पड़ेगा..और साथ ही इंतज़ार करना पड़ेगा सचमुच के गुणी लोगो का..
और आपके लिए यें मुकेश का गीत …
मुझे रात दिन ये ख्याल है..
ये देख के मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है कि बहुत ही सुधी पाठको ने आके शशक्त तरीके से अपनी उपस्थिति दर्ज करायी है.. आप सब लोगो का भी आभार..
Prashant Sinha, Patna (Bihar); Niketan Magadh; Srikant Nagapurkar, Hyderabad-Deccan (Andhra Pradesh); Prasanjit Sahaji, Hyderabad (Andhra Pradesh); Dharmendra Sharma, UAE; Prakash Govind, Lucknow (Uttar Pradesh); Naresh Anshu Mishra, Varanasi (Utatr Pradesh); Reshma Hingorani, New Delhi; Mile Sur Mera Tumhara, New Delhi; Dilip Kawathekarji, Indore (Madhya Pradesh); Urmila Haritji, New Delhi; Sanjeev Joshi, Anandpur Sahib, (Punjab); Shrish Benjwal Sharmaji (Known as E-Pundit) and Pitambariji, New Delhi.
Gyasu Shaikh said:
लगता है जिस तरह भ्रष्टाचार से मुक्ति मुश्किल से मुश्किलतर
लग रही है वैसे ही इस संगीती भ्रष्टाचार से भी… वहाँ तो फिर
भी कोई आवाज़ उठाने वाला है पर यहाँ तो लगता है कोई फ़िक्र
ही नहीं…आता है तो आने दो, जाता है तो जाने दो…
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Author’s Response:
बहुत मनन करने वाली बात आपने कही है..संगीत में भ्रष्टाचार बहुत ही सुनिंयोजित तरीके का है..कुछ चीजों को हम पर जबरदस्ती थोपा जा रहा है..हमको उन चीजों का अभ्यस्त बनाया जा रहा है..खैर ये गीत सुने..
दोस्त दोस्त ना रहा ..पर चिंता ना करे आप मेरे अभी भी दोस्त है..हा..हा हा..
http://www.saavn.com/popup/psong-5xm9brnR.html
सहमत, आजकल के कानफोड़ू गीतों को गीत कहना ही ठीक नहीं। शायद अच्छे गीतों को जमाना अब कभी नहीं लौटेगा।
@ E Panditji:
आप की तरह हमे भी इन गीतों के बाढ़ पे दुःख है पर वो सुबह कभी तो आएगी जब सुमधुर कर्णप्रिय गीत फिर से सुनाई पड़ेंगे..
http://google.saregama.com/music/pages/listen_popup?mode=listen_popup&query=INH109239150
Sagar Nahar, Hyderabad (Andhra Pradesh) said:
Arvindजी मेरे पास लगभग २०- से २५००० गानों का संकलन होगा। विश्वास कीजिये उसमें बहुत से पुराने गाने ऐसे हैं जिन्हें सुनना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता। मैं संगीतकारों के नाम नहीं लिखूंगा लेकिन बड़े दिग्गज संगीतकार हैं वे जिन्होने कई बार बेसुरे गाने दिए और कई ऐसे गाने हैं जिनके संगीतकारों ने एकाद फिल्म में संगीत दिया, बहुत ही कर्णप्रिय गाणे हैं लेकिन उनके संगीतकारों के नाम भी किसी को नहीं पता।
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Gyasu Shaikhji said:
Classical raag based gaane dilko sada chhote hain ve fir purane ho ya naye…Aur Sagar ji aapki baat sahi hai, sabhi purane gaane madhoor hi bane hain vaisa nahin hai…Aur hamara gaano ka personal collections bhi hamari ruchi ke base par hi hota hai jahan hamari bina ruchi ka ek bhi gaana nahin…
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Swami Prabhu Chaitanya, Patna (Bihar):
हम सिर्फ अपने कान पर भरोसा करते हैं
और आँखें बंद कर दिल से सुनते हैं
बड़े बड़े नामों से भी अप्रभावित रहते हैं
बस हीरा पायो गाँठ गठियायो
उसको बार क्यों खोले ?
मगर इस (संगीत के) आयाम में चीजें share करने से
मज़ा दुगुना हो जाता है .
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Author’s collective response for Sagar Naharji,Gyasu Shaikhji and Swami Prabhu Chaitanyaji:
आप सब ने मिलके एक बहुत पते की बात कही है..जाने अनजाने ही सही चर्चा में कुछ बहुत ही पते की बात आप सब गुणी लोग कह जाते है..एक बात जिसकी तरफ आप सब लोग इशारा कर रहे है मेरे मन में कब से है और इसको गाहे बगाहे मै हमेशा आलोचना झेल के भी कहता रहता हूँ और आप लोगो से भी आग्रह है कि कोई विविध भारती को भी समझाए कि पुराने का मतलब ये नहीं है किसी गायक विशेष के हर गाने लगभग हर प्रोग्राम में ठूंस दिए जाए ओल्ड क्लास्सिक के नाम पर..मुझे अभी फिर अपने एक नवीन लेख में (पहले भी कहा है तब लोग नहीं समझे थे पर अब थोडा थोडा समझ रहे है) इस बात को कहना है कि सब अच्छा नहीं था पहले के युग में और किसी बड़े सिंगर का सम्मान करने का ये मतलब नहीं कि उसके बकवास गाने को भी ओल्ड इस गोल्ड बताकर ठूंस दिया जाए..और यदि कोई इस प्रवत्ति विरोध करे तो उसके विरोध का भड़ास बताकर खारिज किया जाए..मुझे उम्मीद है आप मेरे अभिप्राय को अन्यथा ना लेकर सही संदर्भो में लेंगे..क्योकि मुझे लग रहा कि आप सब मेरी ही तरह इस बात को मानने वाले है कि जो दिल को भाये वही गीत है.सिर्फ बहुत नामवाला होना ही काफी नहीं होता और ये जरूरी नहीं जो भी उसके जरिए बहे वो उत्कृष्ट ही हो.
Sunil Anuragi, Pauri Garhwal, Uttarakhand, said:
अजीब सी इन ध्वनियाँ को हिन्दी गीत कहा ही क्यों जा रहा है ? ये बात मेरी समझ से बाहर है .
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Author’s Response:
ये तो उनसे पूछना चाहिए जो इन्हें गीत मान बैठे है..ऐसे लोग या तो गीत क्या होता है ये नहीं जानते या फिर कभी गीत से परिचय ही इनका नहीं हुआ है.. तभी इन टीन की पीटा पाटी पे सजे बोलो को गीत मान बैठे है..
Uday Singh Tundele, Indore, (Madhya Pradesh) said:
इस पर भी तो मो.रफ़ी साहब का एक गाना है … ‘टीन कनस्तर पीट-पीट कर …गला फाड़ कर चिल्लाना …यार मेरे मत बुरा मान …ये गाना है न बजाना है…
Author’s response:
हां रफ़ी जी का ये गीत मन के किसी कोने में बजता रहता है इस तरह की पोस्ट लिखने के वक्त :-)..अभी तो ये गीत सुनिए जिसमे किसी साहब को ना गाना आता है ना बजाना ..कोई सुर भी हिलाना नहीं आता लेकिन जो सुरीलें मापदंड इन्होने स्थापित किया उसपर चलना अब तक किसी के लिए संभव ना हुआ..ये गीत इसलिए आपको सुनवा रहा हूँ क्योकि इस एक गीत में ये बात बहुत ही सुंदर तरीके से दर्शायी गयी है कि किस तरह से पाश्चात्य संगीत का प्रभाव हमारे गीत संगीत पे पड़ने लगा था..
Words for Yunus Khanji, Vividh Bharati’s Announcer, Mumbai:
धन्यवाद युनुसजी…ये देखकर अच्छा लगा कि व्यस्तता के बीच आप पढने का समय निकाल लेते है..