
कब तक प्रेत बाधा के शिकार गाँव रहेंगे!
भारत जो कि एक आधुनिक राष्ट्र बनने की दिशा में अग्रसर है आज भी आदिकाल में व्याप्त कुरीतियों और अन्धविश्वास की चपेट में है. आज भी भारत के तमाम गाँव भूत प्रेत, डायन आदि के वश में है. कहने का तात्पर्य यह है कि भूत प्रेत बाधा दूर करने के नाम पर तमाम कुकर्म और मिथ्या धारणाये गाँवों को अपने गिरफ्त में लिए हुए है. कुछ इसी प्रकार की समस्या से मिर्ज़ापुर जिले में स्थित कनौरा गाँव जूझ रहा है. यह गाँव जो कि मिर्ज़ापुर से लगभग १५-२० किलोमीटर की दूरी पर पड़री थाना के अंतर्गत गंगा के पावन तट पर स्थित है कुछ एक सालो से अन्धविश्वासो में उलझा हुआ है. यह पे रहने वाले जगदीश तिवारी और उनके पुत्रो ने भूत प्रेत बाधा दूर करने के नाम पर ना सिर्फ इसी गाँव में पर आसपास के अन्य गाँवों को भी अशांत कर रखा है. इस परिवार ने जो अन्धविश्वास की लहर बहा रखी है उसने माहौल पूरी तरह दूषित कर दिया है. हर नवरात्र में और महीने के हर शनिवार- इतवार को भूत प्रेत से निवारण के नाम पर तमाशा खूब होता है. भूत प्रेत भागे या ना भागे पर यह परिवार इस तमाशे से एक अच्छी खासी कमाई कर लेता है.
इस तमाशे में सबसे ज्यादा नुकसान अगर होता है तो उन परिवारों का होता है जो बेचारे अपने किसी विक्षिप्त सदस्य को लेकर यहाँ आते है ठीक होने की उम्मीद लेकर. ठीक होने के वजाय ये मानसिक समस्या से ग्रस्त लोग और बीमार होके लौटते है. ठीक हो जाने के झूठे आश्वाशन को लेकर वे इस भूत प्रेत निवारण केंद्र से वापस लौटते है. इस तमाशे का स्वरूप बहुत वीभत्स होता है. इसमें औरते क्रम से बालो को खोलकर एक कतार में बैठती है. कुछ पुरुष और बच्चे भी होते है. कुछ देर बाद सब बुरी तरह से झूमने लगते है. कुछ बुरी तरह से चीखने चिल्लाने लगते है. इन पर अब भूत आ चुका होता है. फिर ये भूत भगाने वाले इन भूतो का नाम पता पूछ कर इन मानसिक रोगों से पीड़ित परिवार को घर वापस भेज देते है की अब इन्हें भूत या चुड़ैल परेशान नहीं करेगी. जिनका भूत नहीं प्रकट होता उन्हें दुबारा बुलाया जाता है. इस प्रकार ये धंधा चलता रहता है. नवरात्र में इसी भूत प्रेत भगाने के नाम पर मेला टाइप सा लग जाता है और गाँव का छोटा सा मंदिर इस तमाशे का केंद्र बिंदु बन जाता है जिसमे मानसिक रोगियों से खिलवाड़ किया जाता है.

प्रशासन तक क्यों नहीं पहुचती प्रेत बाधा ?
आश्चर्य की बात है जिलाधिकारी से लेकर मुख्य सचिव तक इस बाबत लिखा जा चुका है पर इन पढ़े लिखे अफसरों ने इस वीभत्स तमाशे को रोकने और जो इस तमाशे के जिम्मेदार है उनको सजा दिलाने के लिए अभी तक कुछ नहीं किया है. सनद रहे यह सुप्रीम कोर्ट और इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश का सरासर उल्लंघन है. ये कोर्ट के आदेश के अवमानना का भी विषय है. ऍम काटजू और आर त्रिपाठी ने २००४ में इलेक्ट्रो होम्योपैथिक प्रैक्टिसनर्स बनाम चीफ सेक्रेटरी उत्तर प्रदेश मुकदमे में डी के जोशी बनाम उत्तर प्रदेश मामले का हवाला देते हुए अपने आदेश में ये स्पष्ट कहा था कि ना केवल सभी जिलाधिकारी और चीफ मेडिकल आफिसर एक निश्चित समय सीमा के अंतर्गत अपने क्षेत्र में फैले तमाम झोला छाप डाक्टरों की पहचान करेंगे और उनके खिलाफ अपनी तरफ से उन पर तुरंत मुकदमा भी दायर करेंगे बल्कि इन मुकदमो की कार्यवाही पर भी नज़र रखेंगे. आश्चर्य की बात ये है कि जिलाधिकारी और चीफ सेक्रेटरी को इस बारे में पत्र द्वारा अवगत कराने के बावजूद अभी तक दोषियों के खिलाफ कोई सख्त कार्यवाही नहीं की गयी है. आज भी इस गाँव में भूत प्रेत के नाम पर धंधा मजे से चल रहा है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने इसी आदेश में यह स्पष्ट किया है कि वैज्ञनिक सोच को बढ़ावा देना हमारी जिम्मेदारी है ताकि समाज में व्याप्त अन्धविश्वास को मिटाया जा सके. इसी आदेश में यह भी उच्चतम न्यायलय ने स्पष्ट किया कि केवल वही रोगों का इलाज कर सकते है जो ना केवल रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर है बल्कि जिनके पास मान्यता प्राप्त मेडिकल कॉलेज से हासिल डिग्री है. इस स्थिती में तिवारी और उनके चेलो द्वारा मानसिक रोगियों का भूत प्रेत बाधा बता के इलाज करना ना केवल खतरनाक है बल्कि कानूनन जुर्म भी है. मानसिक रोगों का इलाज केवल सायकोलाजिस्ट ही कर सकता है. भूत प्रेत भगाने के नाम पर जो भोली भाली जनता को लूटा जा रहा है वो अव्वल दर्जे की धोखाधड़ी भी है. ये किसी के विश्वास के साथ भी छल भी है. यहाँ ये बताना जरूरी है कि इसी प्रकार एक स्वयंभू धर्म गुरु की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज करते हुए मजिस्ट्रेट के उस आदेश को सही ठहराया था जिसमे उसने इस धर्म गुरु के खिलाफ धोखाधड़ी के मामले को फिर से विवेचना करने का पुलिस को निर्देश दिया था जिसमे पुलिस ने अंतिम रिपोर्ट में ये कहा था कि ऐसा कोई मामला नहीं बनता क्योकि हमारे यहाँ धर्मगुरूओ के द्वारा प्रार्थना या पूजापाठ के द्वारा इस तरह के दोष का निवारण आम बात है. फिर से हुई जांच में धर्म गुरु को ठगी का दोषी पाया गया. शीर्ष कोर्ट की एम बी शाह और के टी थामस पीठ ने इस तर्क को खारिज करते हुए ये स्पष्ट किया कि प्रार्थना के द्वारा दोष निवारण में तो कोई हानि नहीं पर जब आप किसी को ये यकीन दिलाते है कि आप को दिव्य सिद्धि प्राप्त है और इस के द्वारा आप किसी का अपने प्रति विश्वास उत्पन्न करते है तो ये धारा ४१५ IPC के तहत गलत नीयत या गलत प्रेरणा के अंतर्गत आ जाता है( श्री भगवान समर्ध श्रीपदा बनाम स्टेट ऑफ़ आंध्र प्रदेश और अन्य )
अब देखना ये है कि किस तरह प्रशासन कनौरा गाँव में भूत प्रेत को भगाने के नाम पर हो रहे तमाशे को खत्म करता है. प्रशासन की कुम्भकर्णी नींद कब टूटती है यही देखना है. शीर्ष कोर्ट और सारा विश्व वैज्ञनिक सोच का हिमायती है. इस कारण आला अफसरों की यह जिम्मेदारी बनती है कि कनौरा गाँव को अन्धविश्वास के जाल से शीघ्र मुक्ति दिलाये. अपनी ऊँची नाँक के ढीक नीचे हो रहे इस वीभत्स तमाशे को तत्काल बंद करे औए इस तमाशे के जिम्मेदार लोगो को सख्त सजा दिलवाए. आखिर कब तक भारत के गाँव भूत प्रेत के साए में रहेंगे?

नकली भूत को भगाते नकली साधू !
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The beliefs of easily mind formed humans are constantly changing with the newer believers thinking the new versions of the unknown are better and the old ones came from imbeciles that had no common seance– remember we can only believe what other humans conceive and form their interruptions on the minds of the new humans by constant repetition and reinforcing those ideas and is why everything about Arvind is of his border and flag and all the cultural mind forming that shows in every post Arvind writes
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