चलिए उस समूह के लोग जो शोषित है उनको कुछ एक एक बार छूट दी जा सकती है कि उन्होंने गैर लोकतान्त्रिक तरीको से अपनी बात मनवाई पर गिलानी, अरुंधती रॉय, कम्मुनिस्ट नेता और इसी तरह के तमाम तथाकथित पढ़े लिखे लोग जो कम से कम इतने काबिल तो है ही कि सच और झूठ का फर्क तो महसूस कर ले पर फिर ये क्यों अपने निहित स्वार्थो के लिए पहले से शोषित जनता को ना सिर्फ गुमराह करते है पर उन्हें कुत्ते के मौत मरवा भी देते है.
आज जो नक्सली आन्दोलन का विकृत रूप देख रहे है इसके असली गुनहगार ये पढ़े लिखे लोग है वो नहीं जो बन्दूक उठा के आम आदमी या पुलिसवालों को मार रहे है. ये पढ़े लिखे दोषी है जिनकी वजह से अफज़ल या कसाब जैसे आतंकियों को मारने से पहले दस बार सोचना पड़ता है. सोचिये पाकिस्तान कम आंसू बहाता है इनके लिए लेकिन अरुंधती टाइप के लोग ज्यादा बिलखते है ! ये अरुंधती टाइप के लोग ही है या कहिये सेकुलर गिरोह ही है जो आतंकवादियों के मानवाधिकारों की बात तो करता है पर जो बेगुनाह पुलिसवाले नक्सली आन्दोलन में मारे गए उनको जायज़ ठहराता है. इसको आप क्या कहेंगे ? इसी मानसिकता के चलते यह देश हर विकृत नकारात्मक शक्तियों का केंद्र बन गया है. कोई देवी देवताओ के न्यूड चित्र बनाये वो तो क्रेअटीव अभिव्यक्ति हो गयी लेकिन अगर कोई पलटकर उसी क्रेअटीव अभिव्यक्ति से उन्ही सेकुलर समूह को न्यूड कर दे तो हाय तौबा मच जाती है.
ये सिर्फ इस बात के लिए दोषी नहीं है कि इन्होने गुमराह किया पर ये एक स्वस्थ्य समाज में हर उस बात को थोपेंगे जो विकृत हो या परंपरा के विरुद्ध हो. आप कहेंगे शादी जरूरी है. ये कहंगे नहीं लिव इन सम्बन्ध सही है, लेस्बियन सही है, अवैध सम्बन्ध सही है, ग्रुप सेक्स सही है. ये सब सही है पर शादी ना भाई ना ये नहीं सही है. बस यही गलत है. बाकी सब सही है. हम सब बहुत जल्दीबाजी में रहते है सड़क पर खड़े आम आदमी को दोषी ठहराने में पर बड़ी मछलियों को गरियाने में और सजा देने में हमारे प्रधानमंत्री भी असहाय हो जाते है. एक चोर जिसने सिर्फ चैन चुरायी उसको सिर्फ लोगो ने ही नहीं धुना पर पुलिसवाले ने भी रस्सी से घसीटा. और यहाँ बड़ी मछलिया कानून की बारीकियो का सहारा लेकर मौज कर रहे है. एक विनायक सेन को बचाने राम जेठमलानी जैसे वकील जल्द उपलब्ध हो जायेंगे पर आप ये देखिये की हमारे जेलों में कितने बेगुनाह पैरवी के अभाव में सड़ रहे है उनकी कोई सुनवाई नहीं.
परंपराओ की हिफाज़त के बारे में कह के देखिये. आपको आउटडेटड ना घोषित कर दे तो कहिये. इसीलिए स्त्रियों के शोषण या अधिकारों के बारे में बात करने वाले बड़े बड़े मैगज़ीनो के लिए ये आवश्यक है कि मिलान फैशन शो या नयी फ़िल्म के प्रमोशन के बहाने एक स्त्री के कम कपड़ो में तस्वीर मुख्य या बीच के पन्नो में छपे. तो हमने शोषण की बात भी कर ली और नग्नता का प्रदर्शन कर मार्डनवादी भी हो लिए ! इसलिए मै शोषण के शिकार समूहों को कम दोषी मानता हू. इनके पीछे इनको रिमोट कण्ट्रोल की तरह इनको संचालित करने वाले लोग असली दोषी है. बिना इनको ख़त्म किये आप इन तमाम समूहों का आतंक नहीं नष्ट कर सकते.
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