मै इस बात से शतप्रतिशत सहमत हू कि अरुंधती को सिर्फ नारी होने का खामियाजा नहीं भुगतना चाहिए. लेकिन यहाँ एक दूसरा भी महत्वपूर्ण पहलू है. और वो यह है कि स्त्री पुरुष के दायरे से उठे और अभियव्यक्ति की बात को उन संदर्भो में समझे जिन संदर्भो में लेखिकाजी हमेशा मुखर रही है. क्या बात है कि लेखिका का नाम बीच में आते ही पूर्ण अभिव्यक्ति की आज़ादी के बजाय स्त्री जाति के सम्मान की बात याद आ गयी कुछ लोगो को ?
जब हिन्दू देवियों की नग्न तस्वीरे बनायीं गयी तब यही सम्मान की भावना पूर्ण अभिव्यक्ति की आज़ादी से कमतर हो गयी. अरुंधती देवी का नाम आते ही स्त्री जाति के सम्मान की बात आ गयी और पूर्ण अभिव्यक्ति तेल लेने चली गयी ! क्या गज़ब का विरोधाभास है, भाई वाह! मुझे तो यह नहीं समझ में आ रहा कि अब इस कृति को सिर्फ कलाकार की रचना क्यों नहीं माना जा रहा है ? इसमें स्त्री पुरुष का फर्क घुसाने की क्या जरूरत है. बस यह तो एक कृति है और कुछ नहीं. ऐसा क्यों नहीं हम समझते? असल में हुआ यह यह है कि किसी ने गज़ब का साहस दिखाते हुए उस समूह को जो मनमाने तरीके से हर चीजों की व्याख्या करने का आदी है उन पाखंडियो को उन्ही के बनाये उसूलो से निर्मित एक कृति उनके मुह पे दे मारी है. यहाँ स्त्री पुरुष कैसा ?
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यह भारत की नियति है की यहाँ विचारवान लोग चुप्पी साधे बैठे रहते हैं और हर बात में मीडियोकर हावी हो जाते हैं. एक बहुत पड़े शिक्षित तबके ने तो इन मसलों से खुद को अलग ही कर लिया है. हिन्दू वादों के पक्ष में बोलने पर भगवा का ठप्पा एक बार लग जाता है वह आसानी से नहीं छूटता. मुझे इस प्रकरण का ज्ञान नहीं है पर मुझे आशा है की स्वयं अरुंधती ने इसपर कोई ऐतराज़ नहीं जताया होगा इसलिए और किसी को भी इसपर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए.
निशांतजी पहले इस बात के लिए धन्यवाद ग्रहण करे कि आपके प्रोत्साहन से हिंदी में एक पोस्ट का जन्म हुआ. लिखने का तो मन बहुत होता है पर क्या करे आदमी एक है और भाषा दो है.बहुत नाइंसाफी है कि वक्त एक ही है और वो भी कम 🙂
मुद्दे पे आते है. ये तो आप भी निशांतजी जानते है कि सारी समस्या के मूल में यही है कि विचारवान और समर्थवान लोग “passive ” हो गए है. दूसरी बात भगवा ठप्पा लग जाने का है. फिक्र नॉट. लग जाने दे. भगवा क्या अश्लील और गालीनुमा चीज है निशांत भाई 🙂 वैसे निशांतजी जरा अपने जीवन में फ्लैश बैक करे और देखे कितने ठप्पे भाई लोग अब तक लगा चुके है जाने अनजाने. अभी कल ही तो कोई आपको स्वेट माडर्न का भारतीय संस्करण बता रहा था ! एक भगवा ठप्पा और लग जाए तो हंगामा क्यों ? लग जाने दे. भगवा के साथ कोई मुझे जोड़ रहा है तो बिन मांगे ही मुझे उस यश का भागी बना रहा है जो भगवे से जुड़ा है. गौर करे मेरा रंग दे बसंती चोला से लेकर अपने झंडे में भी तो यही भगवा है अगर ऋषि मुनियों से ऐतराज है तो 🙂
खैर मेरे पोस्ट पे अवतरित होने के लिए धन्यवाद. बार बार अवतरित होते रहे 🙂
धन्यवाद. जहाँ तक भगवा के ठप्पे की बात है, यह मैंने व्यापक सन्दर्भों में कहा था. जब-जब राष्ट्रवादी सुर उठते हैं उन्हें चुप कराने के लिए जिस दुष्प्रचार का सहारा लिया जाता है उसमें ‘भगवा’ शब्द भी सम्मिलित कर लिया जाता है. भगवा और गैरिक, ये दो रंग मुझे मेरी भारतीयता का बोध कराते हैं. इनसे जुड़ने पर मुझे किसी भी तरह का ऐतराज़ नहीं है.
यदि इसपर अरुंधती के आधिकारिक व्यक्तव्य का पता चले तो अवश्य सूचित करें. मुझे पूरी उम्मीद है की इस मामले में उन्होंने किसी किस्म का ऐतराज़ नहीं जताया होगा क्योंकि उन्हें किसी भी तरह से पब्लिसिटी में रहना है.
और हाँ, अरविन्द मिश्र जी के चुहल से आप परिचित ही हैं. वे मुझे कभी स्वेट मार्डन तो कभी महान बताते रहे हैं. इसमें उन्हीं का बड़प्पन है. अपनी कमजोरियों और बुराइयों से हर व्यक्ति परिचित होता ही है, मैं भी हूँ. कभी उनका ज़िक्र भी कर दूंगा ताकि किसी के मन में संशय न रहे.
निशांतजी इस “clarification ” की लिए धन्यवाद. अगर कोई वक्तव्य अरुंधती रॉय का आता है तो जरूर उसकी खबर आप तक पहुचेगी. और आपको पहले पता चले तो सूचित करे. जहा तक मिश्राजी की हरकतों की बात है उसे हम ब्लॉग वर्ल्ड के भीतर और बाहर दोनों जगह एन्जॉय करते है. इस मामले में आपका अनुभव मेरे अनुभव से अलग नहीं है. ये अलग बात की कुछ मुद्दों पे हमारे बीच खिटपिट भी होती है. पर ये सब तो चलता है. मीठे के साथ नमकीन भी हो तो मज़ा दुगना हो जाता है 🙂
महेशजी के साथ हुए संवाद की एक कड़ी यहाँ पे पोस्ट की है उसको भी देख ले.
बहुत ही बढ़िया लिखा है आपने…इन लोगों के लिए कॉतर्क कोई मायने नहीं रखते …इन्हें तो अपनी दुकाने चलानी है…जब भी इनकी दुकानों के कोई आता है तो इनके तोते उड़ने लगते हैं।
वाह क्या संयोग है. महाशिवरात्रि के बाद शम्भूनाथजी मेरे पोस्ट पे कमेन्ट करने के लिए प्रकट हो गए. आगे से हिंदी में ही लिखूंगा 🙂
बहराल, मन तो नहीं करता कि सेकुलर ब्रिगेड के फैलाये कुतर्को या परिभाषाओ में अपने को उलझाऊ. आपने तो सुन रखा ही होगा :Time is precious. लेकिन कभी मौन रहना गलत संकेत दे जाता है. इसीलिए चुप्पी तोड़कर थोडा सा गन्दा होना पड़ता है. नहीं तो मेरा मन उन्ही तरह की पोस्टो में रमता है जो आपने अपने ब्लॉग पेज पर पोस्ट कर रखी है : वैज्ञानिक शोधो पर आधारित दिलचस्प जानकारिया. अब कौन सेकुलर ब्रिगेड की फटीचर बातो में सर खपाए.
आपके पेज पर गया और मै कहूँगा की एक अच्छे ब्लॉग की सारी निशानिया आपके ब्लॉग में है. नहीं तो हम सभी जानते है हिंदी ब्लॉग वर्ल्ड में कैसे कैसे नमूने मौजूद है. एक बार आपको फिर से धन्यवाद कि आपने अपने को अभिव्यक्त किया अभिव्यक्ति मुद्दे पे.इतना ही कहूँगा सेकुलर भ्रमजाल से मुक्त रहे.
baat to sahi hai .ajad desh men purn abhivyakti kee ajaadi hai to sabke liye samaan hi honi chahiye.
purn abhivyakti ka jhunjhuna..sheershak bahut jabardastt hai.
शिखाजी अपने विचार रखने के लिए आपको शुक्रिया. कोर्ट रूम ड्रामे में एक दिलचस्प मोड आता है कि जहा तथ्य सारी कहानी खुद ही कह देते. कुछ कुछ ये प्रकरण वैसा ही है. मुझे कुछ अलग से घटाने जोड़ने कि जरूरत ही नहीं. वैसे क्या आपको लगता नहीं इतिहास अपने को सिर्फ दोहराता ही नहीं बल्कि पलट के वार भी कर देता है ? सही बात है वक्त जो तमाचा जड़ता है उसकी बात ही कुछ और होती है. उन सबका अभिनन्दन जिनको इतिहास और वक्त इस तरह के सुनहरे मौके प्रदान करता है.
चलते चलते एक दिलचस्प जानकारी और देता चलू कि आप भले ही मेरे पोस्टो या नाम से नावाकिफ रही हू पर हिंदी ब्लॉग वर्ल्ड में कुछ एक लेख मै आपके पढ़ चुका हू. यह बताने का मकसद यही है कि संवाद कम से कम अजनबियों के बीच नहीं हो रहा है 🙂
अब प्रकाश व हुसेन में क्या फ़र्क रह गया—-हुसेन ने भी सस्ती लोकप्रियता के लिये यह सब किया था नहीं तो पहले कौन जानता था उसे…..वही काम अब प्रकाश ने किया…..एसे मुद्दों को या तो कठोर कदमों से रोका जाना चाहिये या छोडदेना चाहिये ताकि वे अपनी मौत मर जांय….
आपका मेरी पोस्ट पे स्वागत है. एक दृष्टिकोण से आपकी बात सही हो सकती है कि ये एक सस्ती लोकप्रियता पाने का तरीका है.ये अलग बात है कि प्रकाश ने यह स्पष्ट कर दिया कि ऐसा उसने अपना विरोध दर्शाने के लिए किया है. इसको सस्ती लोकप्रियता कहना कहा तक ठीक है ?
क्या हम सभी अरुंधती रॉय के खुले आम कश्मीरी अलगाववादियों या नक्सलियों के समर्थन से खफा नहीं है ? क्या वो जो कर रही है वो सस्ती लोकप्रियता नहीं है ? ताकि विदेशी मंचो में अपनी छवि एक बोल्ड सुधारक के रूप में जाए और इसी बहाने नोबल शोबल मिल जाए ? इसलिए मुझे प्रकाश कि सस्ती लोकप्रियता से कोई शिकायत नहीं. फर्क हम क्यों देखे ?
बल्कि मै तो प्रकाश की बात को face -value पे ले रहा हू. क्योकि इस बात से कहा हमको इंकार है की हम सभी त्रस्त है ऐसे तथाकथित लेखको ,बुद्दिजीवियो या चित्रकारों से जिनको सामान्य जन की भावनाओ का सम्मान करने में कोई दिलचस्पी नहीं. गुप्ताजी ये बताये सभ्य भाषा तो ये सेकुलर बिरादरी समझती नहीं तो क्या रास्ता बचता है सिवाय इन गैर पारंपरिक रास्तो के यधपि मुझे भी हर प्रकार की अतिवादिता से परहेज है. हम क्यों इन रास्तो को अपनाते यदि आप हमारी सुन रहे होते ?
My One Of The Responses Borrowed From Buzz Page Discussion. I request the readers to have a look at it. It offers some more perspectives.
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महेशजी चर्चा में आपका स्वागत है.अपने वोही मुहावरा दे मारा जो मेरे मन में गूँज रहा था और शायद इसी लेख के अंग्रेजी संस्करण में कही धीरे से प्रकट हो जाता :Tit For Tat. महेशजी कुछ और काबिल आत्माओ के जरिए थोडा इसी प्रकार की रचनात्मकता का कुछ और प्रकटीकरण हो सके तो निश्चित है कुछ बेहतर सुधार देखने को मिल सकेंगे. कुछ लोग प्रकाश के इस कृत्य को स्त्री के सम्मान, प्रकाश बनाम हुसैन, सस्ती लोकप्रियता के सीमित सन्दर्भ में देख रहे है. लेकिन मेरा मानना है की इस पुरे प्रकरण को एक व्यापक दायरे में देखने की जरूरत है.
ऐसा बहुत कम होता है की आप जो गड्ढा खोदते है दुसरो के लिए उसी गड्ढे में आप भी गिर पड़े. अभी तो यह एक ही गड्ढे में गिरे है. इनको अपने ही खोदे और भी गड्ढो में गिरना बचा है. इन उथली आत्माओ को यह बहुत दंभ रहता है कि सारे गंभीर विचार विमर्श करने कि क्षमता इनके ही पास है. असल में ये गंभीर विचार विमर्श के नाम पे सिर्फ ढोंग रचते है, अपने विचार थोपते है. जो इनसे असहमत होता है उसको छल बल से चुप करा देते है.
एक दो उदहारण दे दू तो बात साफ़ हो जायेगी. जहा पे ये हुसैन या अरुंधती रॉय के गैर जिम्मेदाराना हरकतों को सेकुलर गिरोह पागलो की तरह जस्टिफाय करता है “freedom of expression ” के नाम पर वोही पे आप देखेंगे कि तसलीमा नसरीन का ये जीना हराम कर देते है क्योकि ऐसा करने से कठमुल्लों में अच्छा सन्देश जाता है. तसलीमा की अभिव्यक्ति कोई अभिव्यक्ति नहीं क्योकि लीचड़ सेकुलर बुद्धिजीवियों की मंशा के विपरीत जाता है इसिलए उसकी अभिव्यक्ति दो कौड़ी की है. आपने गौर किया की किस तरह से ये शब्दों के मायने बदलते रहते है. तो यह है इनका तथाकथित गंभीर विचार विमर्श. वो विचार जो इनके घटिया मंशा के अनुरूप हो वो सही और जो इनके मंशा के विपरीत हो वो गलत.
इसिलए प्रकाश की कृत्य को बहुत ऊँचे पैमानों में तौलने की जरूरत नहीं. कम से कम प्रकाश नाम के जीव ने कोई छलने वाला वाक्य तो नहीं बोला क़ि मेरी क्रेअटिविटी का सम्मान करो क्योकि यह freedom of expression है. उसने साफ़ कहा है क़ि उसने अपना विरोध दर्शाया है. मकबूल या अरुंधती तो नीयत छुपा के freedom of expression की आड़ लेते है. अब बताये कौन बेहतर है? मेरा मानना है क़ि दुश्मन अगर धूर्त और शातिर है तो means की पवित्रता पे बहुत बल देना मूर्खता होगी. आप इस सन्दर्भ में प्रकाश की रचनात्मकता को देखंगे तो पायेंगे बन्दे ने बहुत सही काम किया है. एक रास्ता सुझाया है कि कैसे सेकुलर आत्माओ को उनकी औकात बतानी है.
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विरोध का तरीका पसंद आया
निश्चित तौर पर बौखलाहट तो हुई होगी सज्जनों में
शाबाश प्रणव
@बी एस पाबलाजी
आपने पोस्ट पढ़ी और अपने विचार रखे इसके लिए आपको धन्यवाद. आप ही की तरह हम सबको विरोध का यह ज्वलनशील तरीका पसंद आया. पाबला जी कुछ मंचो में जरूर लोगो ने अपने भौहे टेढ़ी की है तरीके को लेकर पर हम सबको को पता है कि आदमी ऐसे तरीके सिर्फ पब्लिसिटी पाने के लिए नहीं करता. सभ्य लोगो को किसी पागल कुत्ते ने नहीं कटा है कि वो फ़ौरन आत्मघाती तरीके से कोई विरोध जताएगा. आदमी तभी ऐसा करता है जब आप उसके सभ्य तौर तरीको की अवहेलना करते है.
प्रणव ने वोही काम किया कि जो कि उफनती हुई लहर करती है. अपने दायरे में आने वाली हर चीज़ को अपने में समेटते हुए किनारों को ध्वस्त देती है. इस बार ध्वस्त होने वाली चीज़ है सेकुलर जडत्व और लहर है प्रणव की रचनात्मकता. उम्मीद है कि ऐसी लहर बार बार उठेगी.
Pranava Prakash says:
“Arundhati represents all the intellectuals who are selfless promoters of all sorts of causes which can give them publicity. They are dancing to the tune of publicity as a hungry monkey dances to the tune of its master for a banana,” the painter explained. He goes on to reason why communist leader Mao and Taliban mastermind Laden needed to be in bed with her: “Arundhati was seen supporting ruthless Naxalites in their war against innocent Indian citizens and then she was hobnobbing with merciless Kashmiri killers who were remorseless in their act.”
http://www.doctorindianews.com/?p=4176
🙂
@Rajkumar Singhji
:-))
Many thanks to all those who came to read and like the post. Thanks for your participation up till now!