सेकुलर आत्मा को पत्र: जो राम से जुडी बात करते है वे असल बास्टर्ड होते है !!!!
मै कोशिश करूँगा की आपको संक्षिप्त सा जवाब दू और वो भी हिंदी में. अंग्रेजी में देता हू तो ” misinterpretation” का खतरा मै नहीं उठाना चाहता.संक्षिप्त इसलिए की तर्कों और स्वास्थ्य बहस के दरकार के वाबजूद आपको खीज और उलझन होने लगती है जब कोई अपना दृष्टिकोण आपको समझा रहा होता है खासकर तब तो और ज्यादा जब आप किसी बहस में पूरी तरह से “marginalized ” हो चुकी हो “lack of substantial viewpoint ” की वजह से.
मुख्य बिंदु पर आने से पहले इस भ्रम को मै तोडना चाहता हू की हम मित्र के श्रेणी में आते है. माफ़ करिए आप जैसे “बिन पेंदी के लोटे ” के बुद्धिजीवी के साथ मेरी नहीं निभ पाएगी कभी.नाराज़ न हो हम आपको और सब हिंदी भाई लोग को “empirical evidence ” देते है आप को बिन पेंदी का कहने के लिए. प्रमाण देने से पहले सिर्फ इतना ही कहूँगा आप अफ़सोस न करे की आपने अपने मित्रो के श्रेणी में रखा.निकाल के बाहर कीजिये मुझे दूध में मक्खी की तरह. इस तरह का भ्रम न पाले हम मित्रवत रह सकते है. One cannot serve both God and Demon toegether !!!
आप को मेरे Arvind Mishraji के पोस्ट पर कमेन्ट में “ fucking bastard ” शब्द पर आपति है.होनी भी चाहिए.मुझे आपसे ज्यादा है क्योकि मैंने उसका इस्तेमाल किया है.जुबान मेरी गन्दी हुई आपकी नहीं.आप तो साफ़ सुथरी ही रही न. ये आपको कमेन्ट में तो दिखाई नहीं पड़ा की मुझे कितना अफ़सोस है इस्तेमाल करने का. और न यह दिखाई पड़ा की मेरे शब्द का ” operative clause ” वो “bastard ” शब्द नहीं वरन वो हिस्सा है जहा पे ये पूछा गया है की क्या JNU से निकलने वाले बुद्धिजीवी का मकसद यही है की जहा प्रॉब्लम न हो वहा प्रॉब्लम पैदा करना. आप जैसे अयोध्या प्रकरण पर बेसिर पैर की बात करने वाला जो बार बार सिर्फ दिखावे के लिए स्वस्थ्य बहस की बात कर रहा हो अच्छा होता की बास्टर्ड शब्द से ज्यादा आप यह सोचती की आप जिस institution का प्रतिनिधत्व करती है उनका काम केवल भ्रम फैलाना ही क्यों रह गया है ?
खैर आपको अफ़सोस हो रहा है न. मै पूरी इमानदारी से माफ़ी मागता हू. वापस लिया मैंने शब्द. इतने से भी आप खुश नहीं तो चलिए हम है बास्टर्ड और blockhead !! अब जाये अपने सेकुलर बिरदारी में. क्योकि स्वस्थ्य बहस सिर्फ वो करते है. तर्क वो देते है. इतिहास और कानून सिर्फ वो जानते है और हा संस्कारमय भाषा तो केवल सेकुलर आत्माएं करती है. जब से देश में सेकुलर आत्माएं आई है तभी से स्वस्थ्य बहस और संस्कारमय भाषा की उत्पत्ति हुई देश में और उस में अरविन्द शेष जैसे लोग उस संस्कारमय भाषा में अपने copyrighted पवित्र गलियों से उस भाषा का विकास कर रहे है. सेकुलर आत्माए जब गाली करते है और हम जैसे लोगो को तो छोड़िये जब हमारे पूज्य लोगो को गाली देते है तो वो गाली कहा रह जाती है. वो तो आशीर्वाद के वचनों से ज्यादा पवित्र है. उस में तो कई सारा सच छुपा रहता है. हम जैसे देशभक्ति का दिखावा करने वाले अगर इस्तेमाल करे तो उस से किसी सत्य या किसी बिडम्बना का बोध नहीं होता.
खैर छोड़िये “closed mind ” रखने वालो से मुझे कोई उम्मीद नहीं कि अपने सीमित समझ से ऊपर उठकर उनको कुछ और समझ आएगा. अगर गाली निकल भी गयी तो इसलिए ही निकली कि आराधना जैसे दिमाग से जो की मौलिक चिंतन कर सकते है किसी भी विषय पर वो भी वोही राग अलाप रहे जो कि दकियानूसी दिमाग अलाप रहा है. मैंने तो जो रोमिला थापर से कहा वोही आराधना जैसे लोगो से भी कहूँगा कि अगर भ्रम ही फैलाना है तो कम से ये तमाशा बंद कर दे की आप सच बोल रहे है. एक इतिहासकार से ये उम्मीद की जाती है कि इतिहास की सही तस्वीर पेश करे मगर उसने अगर भ्रामक तस्वीर को मौन सहमती दे रखी है तो यह उम्मीद न लगाये हम जैसे लोगो से की निगल ले उनकी बातो को ठन्डे दिमाग से. आप को अफ़सोस हो रहा न कि मैंने यह शब्द क्यों इस्तेमाल किया.जरा सेकुलर लोग जो केवल स्वस्थ्य बहस करते है और वो भी गरिमामय भाषा में देखे क्या कहा है उन्होंने पूज्य लोगो के बारे में. अपने को जस्टिफाय नहीं कर रहा बस आपको याद दिला रहा हू.
सुभाष चन्द्र बोस क्या थे ? “ Traitor” and “ Quisling”. आई एन ए (INA) क्या था ? ” The army headed by Capt. Lakshmi Sehgal was hired Bose army of rapists and plunderers”. “Army of ‘ Tojo and Hitler’ and a diseased limb of India which had to be amputed…Bose was also Fascist “. गाँधी क्या थे ? ‘‘ Agent of imperialism’’. नेहरु क्या थे ? ‘‘ The running dog of capitalism’. छोड़िए इन बातो में क्या दम है.पुरानी बाते है ये सब. अरविन्द शेष जैसे लोग स्वस्थ्य बहस को नए आयाम दे रहे उसमे मस्त रहे न हम लोग. हम तो केवल गाली देते है (क्योकि हम तो नाकाबिल लोग है जो न तथ्य दे सकते है और न तर्क ) जिसको सेकुलर भाई लोग प्रेम से स्वीकार करते है और सब मंच पे घूम घूम के प्रचार करते है देखो हम कितने उन्नत लोग है !!
कुछ देर पहले मैंने कहा था आराधनाजी बिन पेंदे के लोटे की तरह है. क्यों कह दिया भाई!! कहा है empirical evidence “ जिसकी मै बात कर रहा हू. अभी अयोध्या प्रकरण की बात हो रही है. इसी प्रकरण से दे रहा हू एम्पिरिकल एविडेंस. अभी अयोध्या वर्डिक्ट को आये कुछ घंटे भी नहीं हुए थे और जब पूरी दुनिया उस वर्डिक्ट को prima facie समझने की कोशिश कर रही थी तो आराधनाजी buzz पर पहली प्रतिक्रिया क्या दी यह देखे :
” न्यायालय का फैसला तो मुझे भी रास नहीं आया…मैं माननीय न्यायालय के प्रति पूरा सम्मान रखते हुए ये कहती हूँ कि फैसला अगर धर्मनिरपेक्ष होता तो ज्यादा अच्छा था…तुष्टीकरण से कोई हल ना निकला है ना निकलेगा…यहाँ वोट की राजनीति के कारण सभी धर्मों के तुष्टीकरण की नीति चलती है… एक न्यायालय से उम्मीद थी तो वो भी… “
चलिए भाई इस देश में “freedom of expression ” है. आपने बहुत पते की बात कह दी.पर ये क्या कि जिस JNU के लोगो के विद्वता का गुण गान सुनने को अकसर मिल ही जाता है उसको ये मालुम ही नहीं न्यायलय ने फैसला एक “title suit ” में दिया है और महेशजी को आप को उसी बज्ज़ पोस्ट यह बताना पड़ा “आराधना यह एक न्यायिक फैसला है जहां मुद्दा जमीन के हक़ का था, भावना का नहीं, की अदालत जो चाहे फैसला दे दे”.पर आप ने वक्तव्य दे मारा. भाषा वही घिसी पिटी जैसे सेकुलर ब्रिगेड वाले देते है.यहाँ एक विद्वान् JNU research scholar ने अपना दिमाग गिरवी रखकर सेकुलर ब्रिगेड के इस सुर में सुर मिलाया किया कि यह प्रकरण आस्था का विषय नहीं अच्छा किया आपने. जिस देश का सारा इतिहास ही आस्था से सरोबर रहा हो वहा आस्था का कोई महत्व ही नहीं! सही बात कही आपने.
इन्होने पोस्ट कौन सा reshare किया.जनाब समर अनार्या का. कहा से है ये समर अनार्या जी बताने की शायद जरूरत नहीं. अब ऐसा खास क्या कहा गया है समर की पोस्ट पर जिसकी वजह से शेयर किया इन्होने यह देखे. समर भाई अपने पोस्ट में लिखते है “ पर शमशानों और कब्रिस्तानों की पाकीजगी के बाद भी, अगर मरने वाला इन्साफ जैसा कुछ हो तो? क्या ये पाकीजगी इन्साफ को, जम्हूरियत को यहाँ तक की इंसानियत को दफ़नाने के लिए काफी पड़ेगी? शायद नहीं. और इसीलिए, हाई कोर्ट का कल का फैसला कम से कम एक मामले में बिलकुल ठीक है कि इन्साफ को दफ़नाने के लिए बाबरी मस्जिद की शहादतगाह से बेहतर जगह और क्या होती?” पढ़ा तो लगा कि पाकिस्तानी न्यूज़ चैनल वाले विश्लेषण कर रहे है.
इसके बाद आराधना जी कहा पहुची. अरविन्द शेष के दरबार में.ये वही है जिन्होंने इसी buzz में रोमिला जी और किसी सिद्धार्थ वरदराजन के लेख का उल्लेख किया है. इन दोनों में क्या कहा यह हम पढने वाले लोगो को पता है. वहा पे मै पंहुचा था तो स्वस्थ्य बहस देखकर गदगद हो गया. वहा सेकुलर और अन्य भाईलोग क्या कह रहे है इससें ज्यादा जरूरी है की शेष भाई के लेख में क्या था यह भी देखे और आराधना ने सुर क्या बदला है वो भी देखे. शेषजी जैसे बेबाक विचारक का अपने लेख ” आइए, अयोध्या पर इस अदालती फैसले का विरोध करें” में कहना है ” इस बात से गाफिल इस फैसले पर खुश होने के बजाय सोचने की जरूरत है कि बेईमानी की बुनियाद पर इंसाफ की इमारत खड़ी नहीं की जा सकती. ” इस पर दूसरी विद्वान् विचारक आराधनाजी ने क्या कहा : “मुझे जो बात सबसे ज्यादा जो बात अखरी है वो है ‘आस्था’ का प्रश्न. देश के इतिहास में ऐसे सैकड़ों धर्मस्थल तोड़े गए, पर वो लोकतंत्र में नहीं हुआ. देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत एक धर्मस्थल तोड़ दिया गया क्योंकि वह किसी दूसरे धर्मस्थल के अवशेषों पर बना था. और न्यायालय द्वारा इसे आस्था का विषय मान लिया गया. तब तो इसी आधार पर बहुत से गड़े मुर्दे उखड़ेंगे.”.
ये बार बार याद दिलाने पर भी कि अयोध्या प्रकरण पर जो फैसला है वो एक “title suit “था जिस पर माननीय न्यायलय ने कई क़ानूनी बिन्दुओ पर विचार कर फैसला दिया है इन्होने फिर वही “आस्था ” का रोना रोकर विधवा विलाप किया बाबरी विध्वंस का. ये एक JNU में उपस्थित विद्वान् विचारक के विश्लेषण का नमूना है जिसका गुणगान अमरेन्द्र भाई ने किया है !!! मतलब भाड़ में गया न्यायलय का फैसला हम तो वही कहेंगे जो सेकुलर ब्रिगेड कह रहा है. वही सेकुलर ब्रिगेड जिसकी कहानी बाबरी से शुरू होकर बाबरी के ध्वंस होने तक ही है.इतिहास सिर्फ यही है. बाकी हम जैसे कमीने जो अयोध्या के बारे में जानते है या बता रहे है वो तो कमीनापन है या जरुरत से ज्यादा देशभक्त बनने की कोशिश है.
फिर आराधनाजी कहा पहुची. अरविन्द मिश्राजी के यहाँ. संयोग से कही से लिंक इस लेख का मुझे भी मिल गया. मिश्राजी क्या विचार रखते है यह हमको पता है. यहाँ पे वजह चाहे जो भी हो हल्का सा सुर बदल दिया. हा इसके पहले इन्होने अपने बज्ज़ पर बड़ा दुःख प्रकट किया स्वस्थ्य बहस नहीं हो रही है और लोग सेकुलर ब्रिगेड को गरिया रहे है ,सेकुलर लोगो को देशद्रोही कह रहे है, सेकुलर लोग जो की वास्तविक देशप्रेमी है उनसे अधिक कोई अपने को देशभक्त साबित कर रहा है अपने को..इत्यादि इत्यादि.
खैर ये मिश्राजी के यहाँ पहुची. यह पर क्या सुर बदला देखिये : ” मेरा सोचना थोड़ा अलग है. मुझे लगता है कि मंदिर-मस्जिद दोनों बने से अच्छा था कि ना मंदिर बने ना मस्जिद, उस विवादित भूमि का सरकार द्वारा अधिग्रहण कर लिया जाता. पर माननीय न्यायालय का निर्णय है, उसका सम्मान करना चाहिए. असंतुष्ट पक्ष सर्वोच्च न्यायालय में जाने के लिए स्वतन्त्र है.” इस पर गिरिजेश राव ने सही ही जोड़ा ”मुक्ति जी (मतलब आराधनाजी) ने मन्दिर मस्जिद एक ही जगह होने का विरोध कर मेरी सोच को सहारा दिया है। उससे आगे यह कहना है कि अधिग्रहण के बाद सरकार सोमनाथ मन्दिर की तर्ज पर वहाँ मन्दिर बना दे। अधिग्रहण के बाद सरकार सोमनाथ मन्दिर की तर्ज पर वहाँ मन्दिर बना दे।“
एक तरफ तो माननीय न्यायलय के प्रति सम्मान जताया जा रहा ” न मंदिर बने न मस्जिद” यह कहकर और दूसरी तरफ शेष और समर जो न्यायलय के निर्णय की ऐसी की तैसी कर रहे है वहा भी उपस्थिति दर्ज करा दी. मिश्राजी के पोस्ट पर यह दर्शा तो दिया की फैसले का सम्मान करो पर असंतुष्टि भी दर्ज कराओ. भाई वाह !! वक्फ बोर्ड असंतुष्ट हो या न पर सेकुलर ब्रिगेड अपने चैनल से यह सन्देश उन तक जरूर पंहुचा रहा है कि फैसले को सुप्रीम कोर्ट में जरूर चैलेंज करो क्योकि आस्था के नाम पर दिया गया फैसला खतरनाक है. चुको मत नहीं तो हम सेकुलर इतिहासकार या JNU की उपज क्या मुह दिखायेंगे. हमारे द्वारा लिखित वास्तविक इतिहास का क्या होगा. क्यों होगा रोमिला, इरफ़ान हबीब, लाल बहादुर वर्मा बिपन चन्द्र , के न पणिक्कर , स. गोपाल, हरबंस मुखिया, आर स शर्मा, सुशील श्रीवास्तव और असग़र अली इंजिनियर इत्यादि द्वारा रचित इतिहास के नाम पर पैदा किये भ्रमजाल का .
किसी पाठक का यह कहना सही लग रहा है :” आज जनसत्ता में सतीश पेडणेकर ने लिखा है कि -सारे वामपंथी बुद्दिजीवियों और इतिहासकारों के लिये अयोध्या का फैसला एक करारा झटका है. इससे उनकी सारी दलीलों और इतिहास की समझ पर सवालिया निशान लग गया है. यही वजह है कि अब वे हाईकोर्ट के फैसले पर सवालिया निशान खड़े कर रहे हैं.”
एक समर भाईसाहब है जब तब आराधना के पोस्ट पर प्रकट हो जाते है. अयोध्या प्रकरण पर समर भाई फरमाते है किन हिन्दुओ ने कहा है कि अयोध्या में जो रामजन्मभूमि है वो उनकी आस्था का आधार है. ये समर भाई की अपनी सोच तो खैर नहीं है. ये हिन्दू के सिद्धार्थ भाई की सोच है जो यह अपने लेख में पूछ रहे है कि जिन हिन्दुओ ने अपनी आस्था प्रकट की है रामजन्मभूमि में उस आस्था को कैसे “ascertained “ और “measured ” किया गया.क्या बात पूछी है हिन्दू के इस लेखक ने. जब तक कोई ऐसा यंत्र ढूढ़ ले लाता है मै यह सोच रहा हू कि जल्दी से हम सब लोग कितनी बार हगते मूतते है इसका हलफनामा तैयार करवा के रख ले .न जाने कब सेकुलर ब्रिगेड के तरफ से एम्प्रिकल एविडेंस के नाम पर हमे दिखाना पड़े और अगर हम न दिखा पाए तो ये तय है कि हम कभी आज तक न हगे और न मूते. सही बात है सत्य वोही है जो दस्तावेज में है. आस्था तो दस्तावेज में दर्ज नहीं है. जो दर्ज/प्रमाणित नहीं वो खारिज.
एक श्रीकृष्णजी थे जो गीता में व्यर्थ ही लिख गए: नास्ति बुद्धिर अयुक्तस्य
न कायुक्तस्य भावना
न काभावायतः शंतिर
असंतस्य कुतः सुखं। (अध्याय दो ,शलोक ६६)
बेचारे कह गए कि भावना का निवास नहीं तो शांति नहीं और शांति नहीं तो सुख भी नहीं.अब सेकुलर भाई लोगो की बात मानकर आस्था जो कि पवित्र भावनाओ की समष्टि है को अगर गोल कर दे तो देश तो हो गया अशांत.
सेकुलर भाई लोगो का धर्म निरपेक्ष होना तो यह कहता है कि पहले जितने हिन्दू स्थल है उनको इस्लामीकरण कर दो विवादित बता कर या अपने copyrighted इतिहास के पन्नो से प्रमाण निकालकर मुस्लिमो को सौप दो. ये काम आसान कर गए वे लोग जो हिन्दू मंदिरों के बगल या उसी के ऊपर मस्जिद का निर्माण करके. चूकि मार्डन इंडिया में धर्म निरपेक्ष कि परिभाषा ये कभी नहीं कहती खासकर सेकुलर परिभाषा कि मुसलमान भाई हिन्दुओ को उनकी आस्था का केंद्र रहे प्रमुख स्थल जैसे मथुरा,काशी और अयोध्या पूरी तरह सौप दे इसिलए हिन्दू लोगो को अगर कानून उनकी विरासत पूरी तरह से सौप भी दे तो ये हिन्दू भाइयो का नैतिक फर्ज बनता है कि वे इनको मुसलमानों को दे दे. अगर ऐसा न होगा तो इस देश का धर्मं निरपेक्ष ढांचा ही खतरे में पड़ जाएगा .
इसिलए आराधना का किन्तु परन्तु करना, फैसले को गलत बताना, आस्था को खारिज करना,किसी को भी नहीं सौपना पर फिर भी असंतुष्ट पक्ष को न्यायलय जाने कि सलाह देना और कुछ नहीं वरन इसी सेकुलर ब्रिगेड के तमाशे को जारी रखने का उपक्रम भर है. वक्फ बोर्ड अदालत जा रहा है . सेकुलर ब्रिगेड खुश हो जाए.जितने दिन ये आपस में उलझे रहेंगे हम सेकुलर भाई लोगो कि दुकान तो चलती रहेंगी. अगर सब फैसले ये आपस में या न्यायलय के द्वारा सुलझा लेनेगे तो हमारे पास क्या काम रह जायेगा सिवाय कंपनी बाग़ में जाके घास छीलने के.
ठीक आराधनाजी पहला काम तो यही करे कि पहले हमे दूध की मख्खी तरह मित्रो की लिस्ट से बाहर करे. क्योकि हम जैसो के पास विशुद्ध इलाहाबादी बकैती के आलावा क्या धरा है.आप सेकुलर लोगो की आदर्श कंपनी में रहे.ज्यादा अच्छा हो की सब JNU वगैरह से हो. क्योकि स्वस्थ्य बहस,तर्क, इतिहास, ज्ञान, ज्ञान की शुद्ध मीमांसा इत्यादि सब सिर्फ सेकुलर ब्रिगेड में मिलती है. और हा एक असल चरित्र नाम की भी चीज़ सिर्फ सेकुलर ब्रिगेड के पास है.
गलत शब्द कह दिया JNU के लोगो को. अब क्या करे. चलिए आप को ही साष्टांग प्रणाम करके माफ़ी मांग लेते है.पाहिमाम !!! अब क्या बचा. अमेंडमेंट करते है. संशोधन!! जो राम से जुडी बात करते है वे असल बास्टर्ड होते है !!!!
अब आप खुश है न आराधनाजी.
मै तब तक ये सोचता हूँ क़ि मैंने ये शब्द क्यों कहा. नंदन जी की पंक्ति का स्मरण हो रहा है: किसी नागवार गुजरती चीज पर मेरा तड़प कर चौक जाना, उबलकर फट पड़ना या छटपटाना मेरी कमजोरी नहीं है मै जिंदा हू इसका घोषणापत्र है “
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यह है वो कमेन्ट:
It’s a brilliant logical rebuttal Arvindji 🙂 Hats off ! Unless the Hindu community wakes up from slumber of ignorance and learns to offer logical explanations in this aggressive fashion, the blockheads from JNU and other institutions will keep on barking like a mad dog..
There is a reason why these fucking bastards from these institutions have gained grounds.(Sorry ! I never use hardcore expressions but then it’s demand of time.) It’s because we Hindus never learnt the art to offer logical rebuttals in an aggressive way. We remained confined to our drying rooms treating ourselves to be cultured creatures. No wonder we have developed the art of seeing cowardice as a positive gesture!!!
One thing more the government should shut down institutions like JNU.What’s the need of these acamedicians from such institutions if all they have learnt is to offer distorted image of the past ? Whatever be the issue,they lose not time to offer perverse logic? Or should I come to infer that the role of an intellectual or an academician is to create a problem where none exists ?”
http://mishraarvind.blogspot.com/2010/10/blog-post_03.html
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*The Aftermath Of Remark*
An explanation in a comment form got potsed by me on Mishraji’s post on Oct.07,10 :
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Part I
@Arvind Mishraji
I appreciate the way you have taken note of my remarks on your post. At least, you bothered to trace the cause of such outburst. Believe me I am more hurt when I deliver such a remark. It’s rarest of rare case for me. Whether the concerned souls were affected or not, I am definitely theone who is most affected. May be the roots of such remark lies in the words of Nandanji : किसी नागवार गुजरती चीज पर मेरा तड़प कर चौक जाना, उबलकर फट पड़ना या छटपटाना मेरी कमजोरी नहीं है मै जिंदा हू इसका घोषणापत्र है “
A reader on your post has strongly reacted to my usage of such a harsh term for the JNU scholars. I didn’t find it fit and proper to post an explanation on your post. A separate explanation as an article : सेकुलर आत्मा को पत्र: जो राम से जुडी बात करते है वे असल बास्टर्ड होते है !!!! ” has been posted on wordpress.Have a look at this article.I never thought that part two of Ayodhya’s Hindi article would attain this shape. I was busy giving shape to another article in English on the same issue exploring the verdict from purely legal perspective but the strange turn of events led to this present Hindi article. ( Link: wp.me/pTpgO-1Q )
You have rightly pointed out that there is no need for me to paint all the acamedicains of JNU in one colour. True, doing so will be a logical fallacy of serious type wherein on the basis of few you enter into universalization ! However, having said that, I should point out just two examples to highlight the nefarious designs of JNU professors. It’s really strange that when Naxalites brutally murderded the policemen at Dantevada some months ago,there was celebration going on in some corner of the JNU amidst slogans like ” ‘India murdabad, Maovad zindabad’. Great Act! Such by products will shape the future of India in big way, the Karat way !!!
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Part II
In December 1990, the leading JNU historians and several allied scholars, followed by the herd of secularist pen-pushers in the Indian press, have tried to raise suspicions against the professional honesty of Prof. B B Lal and Dr. S P Gupta, the archaeologists who have unearthed evidence for the existence of a Hindu temple at the Babri Masjid site. Rebuttals by these two and a number of other archaeologists have received minimal coverage in the secularist press.
(Source: Negationism in India – By Koenraad Elst p. 37 – 41)
”Whites appoint Indian proxies to let them pull strings from behind the scenes, but through such intermediaries, they impose their epistemologies, institutional controls, awards and rewards, all in the name of universal thought. “ Source: Hindu Wisdom
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“Rao had set up an Ayodhya cell in his office, headed by Naresh Chandra. In an interview to this reporter in October 1992, Chandra was strongly critical of the attempts made by a team of Jawaharlal Nehru University (JNU) professors to prove historically that Ram was not born in Ayodhya. “Progressive historians (like Romila Thapar, S Gopal and others) are more keen to present their modern, secular credentials.They want to sound superior and informed, but we find their writings opinionated and argumentative.”
He added: “We would be rejecting history if we were to say that for the last 400 years (since Mir Baqi, a Shia from Iran, built a mosque at the disputed site), Hindus and Muslims have been living happily and sharing the same building for puja and namaz. There has obviously been a temple here. Whether it belonged to Ram or someone else, we don’t know because there isn’t enough data. But the fact is there have been bitter conflicts over this place, and we cannot brush this aside, as the JNU professors have done.”
Source: Business Standard
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