अयोध्या प्रकरण में इलाहबाद हाई कोर्ट के निर्णय ने सेकुलर खेमे में हलचल मचा दी है..स्वाभाविक है ऐसा होना.उनके बिरदारी के लेखक ऐसे ही विक्षिप्त हो जाते है अगर कोई चीज़ हिन्दुओ के पास लौट आती है.खेद इस बात का है के JNU के लोग अपने तथाकथित बौद्धिक ज्ञान जो क़ि कुछ ऐसा ही ज्ञान होता है जैसा की खजूर के पेड़ के नीचे छाया की तलाश करना पर इतराते बहुत है मगर हैरानगी इस बात है क़ि अयोध्या प्रकरण पर जितना दिमाग लगाने क़ि हैसियत रखते है ये सेकुलर बुद्धिजीवियों उतना भी नहीं लगा पाए.लिहाजा बचकाने तर्क पर उतर आये..कह रहे है निर्णय राजनैतिक है,निर्णय तथ्यों पर नहीं है,आस्था इतिहास पर हावी हो गयी इत्यादि .
कुछ लोग जबरदस्त धर्मं निरपेक्ष हो गए है फैसला आते ही.क्योकि भाई फैसला हिन्दू हितो क़ि रक्षा जो करता है उनकी नज़र में. फैसला क्या है यह समझने क़ि फुर्सत नहीं.इसका मातम जरूर मनाने बैठ गए फैसला गलत आ गया.ठीक है फैसला गलत है.रोये इस पर.यह नहीं हुआ क़ि निर्णय का आधार क्या बना इसका ठीक से अध्यन करते लगे न्यायपालिका को गरियाने.भाई बिल्कुल गलत हो गया लगे छात्ती पीटने !! कैसे गलत हो गया?बस कुछ लेख उनके समर्थित अखबारों में जो छपे और कुछ कुतर्क जो उनके दिमाग में उठे उनके बल पर.अब सही न्याय कहा होगा.सुप्रीम कोर्ट में होगा .ठीक है यहाँ का भी न्याय आजमा लो.यहाँ भी कुछ जब न मिले तो इसको भी गरियाना .फिर संसद में जाना .हो सके तो मुसलमानों की संतुष्टि के लिए अन्तराष्ट्रीय कोर्ट में भी दस्तक दे देना. शाहबानो में क्या हुआ ? सुप्रीम कोर्ट का न्याय न्याय नहीं लगा.चले गए संसद.वहा से मनमाफिक हो गया.हो गयी धर्मंनिरपेक्षता की जीत !!!हिन्दू अगर यही हरकत करे तो फ़ास्सिस्ट कहलायेगा !!! सनद रहे हमारे देश में धर्म निरेपक्षता की परिभाषा है हिन्दुओ को हर बात पे गरियाना और मुसलमानों के हर नाजायज़ हरकतों को जायज़ ठहराना..जो जितना अधिक कोस लेगा हिन्दुओ को वो उतना ही अधिक धर्मनिरपेक्ष आत्मा कहलायेगा !!!
एक नेता जिसको अचानक फैसले के दो दिन बाद याद आता है क़ि मुसलमानों के साथ बड़ा अन्याय हो गया हम समझ सकते है उसकी बौखलाहट पर ये बुद्धिजीवियों का बिल्ला लगाये लोगो को क्यों खल रहा है निर्णय ..ये तय है यही बिरादरी अभी न्याय प्रक्रिया का गुणगान कर रही होती अगर कोर्ट ये कह देता क़ि ये मस्जिद है.तब देखते इनके बयान .अब इनको रोमिला के लेख,भाजपा क़ि तथाकथित ASI टीम और खुद के मनगढ़ंत तर्क ही याद आ रहे है.
खैर इनकी दशा खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे वाली हो गयी है.अल्लाह इनको इनको सन्मति दे.रामजी तो है ही नहीं तो सन्मति क्या देंगे !! और क्या कहू..फिलहाल मै अपने तर्क तो जहा रखना है वहा तो रखूँगा ही बल्कि रख ही चुका हू किसी फोरम पे .इस वक्त मै तो कुछ प्रतिक्रिया रखूँगा जो मैंने हिंदी ब्लॉग क़ि दुनिया से उठाया है..कोई ख़ास मकसद नही इनको प्रस्तुत करने का पर सोचा रख ही दू.शायद किसी का भला हो जाये.मै तो यही सोच रहा हू.सबको सन्मति दे भगवान..कम से सेकुलर आत्माओ को जरूर दे दे :-))
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नीचे प्रस्तुत टिप्पणिया इस लेख से ली गयी है जिसका लिंक है :
http://mohallalive.com/2010/10/01/arvind-shesh-react-on-high-court-decision-about-ramjanmbhoomi/
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तुम्हारे दु:ख का साथी said
इस मोहल्ले का दु:ख समझा जा सकता है। तुम्हारे उम्मीदों के विपरीत देश में आज शांति है। देश के हिन्दू और मुसलमानों ने इस फैसले पर भाईचारा दिखाकर एक शानदार मिशाल पेश की है। देश को कॉमनवेल्थ की शर्म से निकलकर गर्व करने का मौका दिया है। तुम राष्ट्रदोहियों को भला ये कब अच्छा लगने लगा। किसी का भी कभी भला न चाहने वालों इतना न जलो-भूनो, मुंह काला हो जायेगा। ***************
KKC
अरविन्द शेष जी, हिन्दुस्तान तुम्हारे जैसे लोगों की वजह से ही सुलग रहा है। तुम जैसे हरामी ही अपने आपको धर्मनिरपेक्ष समझते हो। तुम लोगों ने ही संघ का ये चेहरा बनाया है। तेरे पास कोई समाधान है जो सभी को स्वीकार्य हो तो तू बता न, वर्ना बेवजह की बकवास करना बंद कर। इस फैसले से अच्छा कोई फैसला हो अगर दुनिया में किसी के पास तो वो सामने आये। रह गयी बात मूर्ति रखने की तो जरा वो सामने आये जिसका घर तोड़कर मंदिर बनाया गया। जो हो नहीं सकता, उसका डर दिखाकर साले तुम हरामी लोग अपनी दलीलों से मुसलमानों को बरगलाते हो। किसी ने भी दो आँसू नहीं बहाये गोधरा स्टेशन पर ट्रेन में जिंदा जलाये गये लोगों के बारे में और तू बुक्के फाड़-फाड़कर रोया होगा मुसलमानों की मौत पर। जिन्हें मार-मारकर मुलायम सरकार ने नदी-नालों में बहा दिया, उनका गम नहीं लेकिन तुझे चिन्ता है उस खंडहर की जो कभी मस्जिद भी नहीं था। बात दरअसल ये है कि तुम कमीनों को ये शाॅर्टकट लगता है प्रसिद्धि पाने का और अपने आप को दार्शनिक साबित करने का। और तुम जैसे मेंढ़कों को ये डर सता रहा है कि अगर ये मुद्दा खत्म हो गया और अमन-चैन हो गया तो तुम हरामियों की दुकानें बंद हो जायेंगीं। हिंदू-मुस्लिम एक थे, एक हैं और एक ही रहेंगे, तुम कुत्ते कितना भी भौंक लो, ये एकता न तो तुमने बनायी थी और न ही तुम या संघ या कोई मोदी तोड़ सकता है। अब कुछ ईमानदार मेहनत पर लग जाओ वर्ना गली के दुत्कारे गये कुत्ते जैसी हालत होगी तेरी। आम जनता का सब्र जिस दिन टूटता है उस दिन सारी मर्यादायें टूट जाती हैं चाहे वो अच्छी हों या बुरी। मैंने कई बार तुझे गाली दी है तो इसलिए कि वो जायज हैं और तेरे जैसे किसी भी शख्स के लिए उचित हैं। *****************
Rajeev Ranjan Prasad said:
इस फैसले पर भारत के कौमी-एकता की जीत फख्र करने योग्य है। संगीनों और हथियारों की चौकसी ने जिस खौफ का वातावरण रचा था, सबको सच्चे भारतीयों ने दड़बों में बैठ जाने के लिए चलता कर दिया। यह वास्तव में उन राजनीतिक आस्थावीरों की पराजय है जिनका सोचा गलत और मंसूबा फेल हो चुका है। अंधेरगर्दी मचाने वाले के जिगर का खून जम चुका है तो मस्तिष्क संज्ञाशून्य। मिली-जुली प्रतिक्रिया के बावजूद जनता अपनी रौ में खुश है मानों कुछ हुआ ही न हो। अब गलाफाड़ चिल्लाने और नारे लगाने की लाख कवायद क्यों न हो? भारतीय जनता ने साफ-साफ संदेश दे डाला है कि धर्म का आश्रय गह आप राजनीतिक छिछोरेबाजी कर सकते हैं, आम जनमानस के साथ धर्म हरगिज़ नहीं निभा सकते। –
राजीव रंजन प्रसाद, पत्रकारिता, बीएचयू, वाराणसी
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अविनाशजी-फैसला व्यावहारिक है…फैसला ढ़ांचा के तोड़नेवालों को क्या दंड दिया जाए इस पर नहीं आया है..यह जमीन के मालिकाना हक पर आया है और उस ढांचे के चरित्र पर आया है। इस फैसले में मुस्लिम कानूनों के हिसाब से भी व्याख्याएं आई है…और एएसआई के द्वारा दिए गए सबूतों के आधार पर भी…हां कोई एएसआई के चरित्र पर सवाल उठाए तो ये अलग बात है। दूसरी बात ये कि उस जमीन पर मुसलमानों का भी एक हिस्सा स्थापित किया गया है…अदालतों का काम संविधान की व्याख्या करना होता है जिसका एक ही मतलब है कि वे ये देखें कि देश में आम-सहमति की व्यवस्था भंग न हो…यहां पर चीजों अदालतों के विवेक पर चली जाती हैं…कि वे देश-काल के हिसाब से क्या फैसला करती है…हमारे यहां ऐसी कोई मशीन नहीं कि हम जजों के विवेक को तौल सकें…हां…अगर पहले उस जगह पर मस्जिद को बहाल करके ही फैसला होना था तो फिर दिक्कत ये थी कि वहां बैठे रामलला का क्या किया जाता ? इस देश की महाशक्तिशाली सरकार जब इससे हाथ झाड़ बैठी, जिसके पास कथित तौर पर 25 लाख की लगभग सेना है..(कांग्रेस एक बार वहां मस्जिद बनवाने का वादा करके मुकर चुकी है!) तो फिर अदालत इतना अव्यवहारिक नहीं हो सकती थी कि वो अपनी इज्जत पलीद करवाती। ऐसे में अदालत ने बीच का रास्ता निकाला है। हां…अब ये जरुर अध्ययन का विषय है कि उस मामले का क्या हुआ कि लोगों ने लाखों की भीड़ जमा की, मस्जिद को तोड़ा, शांति भंग किया-यहां तक तो आप ठीक हैं। **************
Narendra Kumar
अविनाश जी आपके लिखे वाक्यों से लग रहा है कि आप अबतक उस मीडिया से पीछा नहीं छुड़ा पाए है जो अपने चैनल या अख़बार निकालने के लिए विवादित चीजो को तूल देता है साथ ही अव्यावहारिक बाते करता है. लगता है आपका mohallalive.com वेबसाइट भी पूरी तरह इसी पर आधारित है. आप देश के लिए कम पेट के लिए लिए भी कम ऐशो आराम पाने के लिए अनाप-सनाप लिखकर अपना हिट वेबसाइट का बढ़ाते है और लोगो से विज्ञापन लेते है. सही है एक सरकार है जो वोट और नोट के लिए मुस्लिम पक्ष का साथ देती रहती है. और अप एक हिन्दू होकर बिना किसी राजनितिक दल इस तरह के बयानबाजी करते है. जो काफी अशोभनीय है. जबकि उच्चतम न्यायलय ने बेहद ही सही फैसला सुनाया है. जब सदर से लेकर चांदनी चौक से लेकर देश के विभिन्न इलाको में मुस्लिम हिन्दू एक साथ एक पडोसी बनकर रह सकते है तो क्या ३३ एकड़ जमीं के फासले में दो समुदायों के धर्म स्थान नहीं रह सकते. अब तो अंग्रेज भी कोई नहीं है जो आपसी फूट डालने के लिए घिनौनी हरकत कर सकता है. लेकिन लगता है आप जैसे कुछ लोग अपने को चमकाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते है.
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न्यायपालिका ने बहुत ही संतुलित और सही निर्णय दिया है. सभी को इसका सम्मान करना चाहिये और कोई भी अनर्गल वक्तव्य देने से बचना चाहिये. आदेश को पूरी तरह से पढ़े / समझे बिना कोई भी टिपण्णी ना करे. दोनों धर्मों के लोग इसे स्वीकार करे और एक दूसरे की धर्म के प्रति आस्थाओं और भावनाओं का सम्मान करते हुए आपस में सहयोग कर ऐसा कुछ करें जिससे आनेवाली पीढीयाँ इस पीढ़ी का सदा-सम्मान करे.
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Pankaj Jha
आपने अपने अंदर किसके आत्मा को जगह दी है यह समझ नहीं आ रहा है….शायद बाबर की? आज बाबर की आत्मा के अलावा शायद ही कोई होगा जो रो रहा हो. जब किसी तरह के तर्क की कोई गुंजाइश ही नहीं है तो क्या कहा जाय?चलिए….लोगों का ध्यान खीचा आपने…मुबारक हो…चाहे जिस भी कीमत पर सही.
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Sanjeev Kumar Sinha
झूठ बोलना कम्युनिस्टों की पुरानी आदत है। पुरानी आदतें जल्दी नहीं जाती। इसलिए झूठ मत बोलिए अविनाशजी कि ‘काश कि मैं कारसेवक होता।’
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Sandeep Jha
अविनाश जी भावनाओं पर नियंत्रण रखें। दरअसल ये संपत्ति विवाद का मामला था जिस पर उच्च न्यायालय ने फैसला दिया है। विवादित ढाँचा गिराए जाने को लेकर मामले अन्य अदालतों में चल रहे हैं। उनके भी फैसले आएंगे। धीरज रखिए। लेकिन फिलहाल जो फैसला आया , उसे सम्मान देते हुए आगे की ओर देखें तो बेहतर होगा। आप फैसले से धैर्यपूर्वक शब्दों में अपनी असहमति जता सकते हैं। लेकिन चीजों के घालमेल की आज़ादी किसी को नहीं।
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Maheshwar Dutt Sharma
क्यों अविनाश जी, फैसले के बाद मार-काट और दंगा नहीं हुआ तो आप को अच्छा नहीं लग रहा है?
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Anil Saumitra
अविनाश जी, आपके भाग्य मे बहुत रोना लिखा है, अभी अयोध्या को लेकर रो रहे है , कल को मथुरा-काशी के लिये. रोइये अच्छा है. आपके अन्दर न्याय की आत्मा प्रवेश कर गई इसलिये आप रो रहे है शायद अन्याय की आत्मा होती तो आपको प्रसन्नता होती, आत्मा भी शरीर देखकर ही धारण करती है. एक ही मानदंड है, आपने एक चीज तोड़ी, उसे पहले जोडिये – फिर किसी फैसले की बात हो। सही कहा है मन्दिर तोडकर मस्जिद बनाई गई थी इसी लिये तोडी गई अब भव्य बना देंगे. अदालत के सहयोग से और भी संविधानसम्मत मंदिर बनवाएंगे… मैं इसलिए रो रहा हूं…तो रोइये ना..हम सब को बहुत मजा आ रहा है..और गला फाड-फाड के रोइये..
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यह फैसला साबित और उसके बाद आप जैसे मीडिया वालों की प्रत्रिक्रिया ने साबित कर दिया की आज के समाज का असली गुनाहगार कौन है. मुझे बहुत दुःख हुआ यह जानकर की आप मीडिया वाले इस फैसले से खुस नहीं है. सच्चाई तो ये है की आप लोग अमन चाहते ही नहीं है. क्या ये फैसला मुस्लिम समाज पक्ष में होता तो ठीक था नहीं तो गलत. तब आपको समाज सुधारक बनने का मौका मिलता. आपने मोहल्ला लाइव के छवि को ख़राब कर दिया है. आप लोग असली देशद्रोही हो जो हमारे न्यायलय के फैसले को मानने को तैयार नहीं हो. मेरे ख्याल से कसब को छोरकर पहले आपलोगों को फांसी पे लटकाना चाहिए. बहुत दुःख के साथ गौरव
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awesh said:
ये क्या बात हुई दिलीप भाई ?अगर आपकी बात मानें तो अदालती फैसला भी समय और परिस्थितियों को देखकर किया गया है ?ये देश ,देश की सारी व्यवस्थाएं पूरी तरह से भष्ट हैं और आप दीपक लेकर उजाले की तलाश में निकलने वाले उन गिने-चुने लोगोंके जुलुस की अगुवाई कर रहे हैं जिनमे अविनाश और अरविन्द भाई भी हैं |आप लोग जानबूझ कर ऐसा वातावरण पैदा कर रहे हैं जिसमे ये डर लग रहा है कि अगर कोई भी ये बोलेगा कि अदालत का फैसला सही है तो वो मुस्लिम विरोधी घोषित कर दिया जायेगा |चचा हाशिम तो खुश हैं और बोल भी दिए हम नहीं लड़ने जा रहे ,लड़ना हो तो वफ्फ़ बोर्ड लड़े | @अविनाश चलिए आपसे डरते हुए मान लेते हैं अदालत का फैसला पूरी तरह से गलत, निराधार और हिन्दुओं के तुष्टिकरण के लिए है .अब आप ही बताएं ईमानदार फैसला कौन देगा ?आप ?इस देश के वामपंथी ?या आसमान से कोइ निर्णय टपकेगा और हिन्दू मुस्लिम एक दूसरे की गलबहियां डालने घूमने लगेंगे |अगर देश है तो न्याय व्यस्था का होना भी लाजमी है और न्याय हमेशा सबको संतुष्ट करे ये भी संभव नहीं है ,एक अपराधी भी फांसी की सजा कबूल नहीं करना चाहता |अगर सही मायनों में इस निर्णय का विरोध करना चाहते हैं तो देश की न्याय व्यवस्था से असहमति के बावजूद इस निर्णय का विरोध करने वाले सभी हिन्दू पत्रकारों (ब्राम्हण और दलित पत्रकारों पर चर्चाओं के इस दौर में ये चर्चा बेईमानी नहीं )को फैसले के विरोध में क्यूँकर सुप्रीम कोर्ट नहीं जाना चाहिए ?चलिए ये मोहल्ले से निकलकर ये साहस करके दिखाइये .क्यूंकि बाबरी मस्जिद के विध्वंस पर बुद्धिजीवियों की जमात से जितनी भी आवाजें उठी है ,सारी की सारी नेपथ्य से थी और उनका कम से कम मेरी नजर में कोई महत्त्व नहीं है |
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मंदिर में काहे को पिछड़ा मुद्दे घुसेड़ रहे हैं आपलोग। एक बात बताएं..क्या विवादित स्थल पर यथास्थिति रहने से पिछड़ों की आर्थिक स्थिति सुधर रही थी या उनके मुंह से कोई दाना छीन रहा था। या कि मंदिर बन जाने से उनकी स्थिति कमजोर हो जाएंगी और वे अपना हक मांगना छोड़ गूंगे बन जाएंगे। गजब मानसिक दिवालियापन है, हर स्थिति में ये आपको षडयंत्र ही दिखता है! कृपया अपनी मायोपिक चस्मा उतारिये, हर बम धमाके में आईएसआई का हाथ होना बंद कीजिए। वैसे, दिलीपजी, शरद यादव बूढ़े भी हो गए, आप उनकी जगह एक पारी तो खेल ही सकते हैं। वैसे भी इंटरनेट पर हिंदी पट्टी का सारा पढ़ा-लिखा पिछड़ा युवा आपको रिक्गनाईज भी कर चुका है, तो कब गोल लालकोठी जा रहे हैं आप…!
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शाहनवाज जी, कोई आपसे कहे की अल्ला मुसलामानों के नहीं – मुस्लिम लीग के प्रतीक हैं और मुस्लिम लीग जिहादी आतंकवाद के प्रतीक हैं तो क्या आप स्वीकार कर लेंगे? और शेष जी, क्या आप मेरे समर्थन में आयेंगे? आप बता तो देते हैं कि हमको नहीं तय करना चाहिए कौन कि मामले में पड़े और क्या बोले, लेकिन आप अचानक विद्वान् होकर असली हिन्दू की परिभाषा देने लगते हैं – क्या किसी आपके खिलाग टिप्पणी देने वाले मुसलमान को आपने अपने किसी मुस्लिम फिरकापरस्ती विरोधी लेख में ऐसे कहा कई कि ‘हाँ, सच्चा या असली मुसलमान ऐसा ही होता है’ सिद्धार्थ जी का लेह पढ़ा – पता नहीं आप शायद ज्यादा समझ लेते हैं – लेकिन अच्छी अंगरेजी अच्छे कंटेंट का भी प्रमाण हो, अच्छे तर्कों का प्रमाण हो यह तो कोई ज़रूरी नहीं/ आप तो इस तरह से भोलापन दिखा रहे हैं कि जैसे हिन्दुओं ने १९४९ का बाद से अचानक उसे जन्मभूमि मानना शुरू कर दिया – क्या उसके पहले इस विश्वास का कोई प्रमाण नहीं है – सिद्धार्थ बाबू भी अपने अंगरेजी झोंकते हुए कहते हैं कि कितनी इमारते एक दुसरे के खंडहरों पर बनी हैं भारत में , वाह क्या निर्दोष मासूमियत है – मंदिर तो था लेकिन शायद समय चक्र में अपने आप गिर गया होगा – मुस्लिम शासकों ने अच्छी जगह देखी – मस्जिद बना दी – जन्मभूमि का विश्वास तो वि हि प ने स्थापित किया है १९४९ में – वाह उस्ताद वाह !! और वाह चेलों वाह !! **********
karan said:
शाहनवाज़ जी, अब अल्ला का नाम जोड़ते ही आपको सब कुतर्क नज़र आने लगा – राम को सिर्फ रा स्व सं का देवता बनाने में आपको सब कुछ बड़ा तार्किक लगा हिन्दू जनमानस में राम का जो स्थान है उसे भी आपको क्या बताना पड़ेगा |आप कह सकते हैं कि कुछ हिन्दू नहीं मानते हैं जिनमे कुछ तथाकथित सेकुलर गिरोह में भी पाए जाते हैं, इससे क्या मानने वालों की आस्था कमजोर हो जाती है या उनकी संख्या महत्वहीन हो जाती है? और मंदिर कितने भी हो लेकिन राम की जन्म भूमि का महत्त्व क्या मुहम्मद या ईसा की जन्मभूमि से किसी भी स्तर पर कमतर है ? *******
karan said:
टोकेकर जी , आप भी कम्युनिस्टी तोतों की तरह रट्टा लगा रहे हैं और बेकार की बातो का घालमेल कर रहे हैं अदालत ने इस बात पर मुहर लगाई है कि यह स्थान मंदिर था या नहीं और क्या हिन्दुओं की आस्था इस स्थान पर राम के जन्म स्थान के रूप में काफी पहले से रही है या नहीं | अब आप चाहेंगे तो एक दरोगा भेज कर पता लगा लिया जायेगा कि राम सिंह वल्द दशरथ सिंह निवासी जन्मभूमि थाना फैजाबाद … की जानकारी कानूनी तौर पर सही है या नहीं
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karan said:
शेष जी,
आप जब किसी को ठस्स बताते हैं तो इससे यह नहीं जता पाते हैं कि आप बहुत ऊंची चीज हैं- यह जितनी ज़ल्दी जान लें उतना अच्छा
तो आप किस तरह के सेकुलर हैं ज़रा ये भी बताइयेगा ! कोई और आपको गाली दे तो आपको लगती है मिर्ची और आप दुहाई देने लगते है और बेचारे हिन्दुओं को उनकी औकात दिखाने पर तुल जाते हैं | तर्कों से जवाब दीजिये !
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विवेक यादव :
@अरविंदजी- माफ कीजिएगा, मैं महान-वहान भाषा संस्कार में नहीं फंसा हूं…लेकिन दिक्कत ये है कि आप संस्कृतनिष्ट भाषाई विद्वानों की तरह ही अपना संस्करण थोप रहे हैं। दिक्कत यहां पर जरुर है। आप बस अपनी बात कह सकते हैं, जबर्दस्ती मनवा कैसे सकते हैं। आप ने भी तो न जाने कितनी बार मूर्ख, गिरोह, जंगली, और न जाने क्या-क्या शब्द का इस्तेमाल कर लिया। जबकि इसका ठेका तो संघियों ने ले रखा था…!! माफ कीजिएगा, मैं आपके इस संबोधन का हकदार नहीं हूं।
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arvind mishra :
अरविंद शेष। युवा पीढ़ी के बेबाक विचारक। दलितों, अल्पसंख्यकों और स्त्रियों के पक्षधर पत्रकार। पिछले तीन सालों से जनसत्ता में। जनसत्ता से पहले झारखंड-बिहार से प्रकाशित होने वाले प्रभात ख़बर के संपादकीय पन्ने का संयोजन-संपादन। कई कहानियां भी लिखीं।
तुम्हारा यह पोस्टर तुम्हारी दिमागी हालत को बयां करता है ….
न्यायाधीशों का फैसला एक ऐतिहासिक फैसला है और सुचिंतित ,तर्कपूर्ण है .
जब बिना पोस्टर के कुछ लिखने के काबिल हो जाओगे तब तुम्हे पढ़ा जाएगा
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कुमार गौरव :
आखिर ६० साल पुराने मुकदमे का फैसला हो गया. करोड़ों भारतीयों के आस्था के केंद्र और आराध्य भगवान राम की जन्मभूमि पर उच्च न्यायलय ने मुहर लगा दी है, तीनो. न्यायाधीशों ने एक मत से जो माना है, वह भारतीय सम्मान संस्कृति और स्वाभिमान है. पन्थ निरपेक्षता शब्द भारतीय संविधान ने भारतीय संस्कृति से ही लिया है, भारत मे जन्मे पंथ और धर्म सदैव एक दूसरे को आदर और सम्मान देते रहे है. भारत के बाहर उदभुत धर्मों ने शायद भारत की भावना को अंगीकार अब तक नहीं किया है, इसी कारण यह मुकदमेबाजी शुरू हुई और आगे चलाने को भी अभी कुछ लोग आमादा है. यहाँ एक प्रश्न उपस्थित होता है की जिस भूमि पर राम जन्मे इस तथ्य को नकारकर बाबर के प्रति आस्था क्यों? उत्तर बहुत आसान है परन्तु कोई देना नहीं चाहता क्योंकि कहीं न कहीं अभी आस्थाओं का अभी भारतीयकरण नहीं हुआ है.
अरविन्द जैसे ****** लोग के कारण ही आज भारत में मुसलमान ५ गुनी रफ़्तार से जनसंख्या बढ़ा rahe हैं . अरविन्द जैसे ****** की भाषा भी पकिस्तान के सभी न्यूज़ -चैनलों के जैसी है. वैसे आप जैसे ******* बाबर को क्या समझते हैं ?जरुर लिखिएगा
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karan said:
पढ़ लिया रोमिल्ला जी की रुदाली, वही मुर्गे की एक टांग ! रोमिल्ला भी यही कह रही हैं जो आप जैसे स्सरे गा रहे हैं ! आप जैसे तो किसी अंगरेजी में लिखने वाले की पूँछ पकड़ के बैठे रहेंगे या उस पर सोचेंगे भी कि कुछ नयी बात कही गयी है या नहीं
आप साबित कीजिये कि हिन्दुओं की श्रद्दा उस स्थान पर मस्जिद बनने से पहले नहीं थी और वि हि प के आन्दोलन के बाद ही लोगों की नींद खुली थी कि अरे यही तो राम पैदा हुए थे |
अब सारे इतिहास कार इस पर जुटे हैं कि राम मिथ थे वास्तविक ! जबकि अदालत इस मुद्दे पर जोर देती है कि हिन्दुओं की आस्था इस स्थान के बारे में जन्म भूमि के रूप में रही है या नहीं वह भी पहले से !
खैर मैं किसे बता रहा हूँ \ किसी बेबाक (या बेबात के ) चिन्तक को जो चिंतन से ज्यादा चिंता में मग्न है अपने अहम् की ऊंचाई सिद्ध करने में !
अरविन्द शेष जी, आप तो बस अब गाली-गलौज कीजिये और उसी में तौलते रहिये कि हराम्मी बड़ी गाली है या ठस्स या मूर्ख ! गालियों का मापदंड आप ही तय कीजिये!
जब कुछ उठाये मुद्दों पर कहने को हो तो सामने वाले को व्यक्तिगत तौर पर कोसने या गरियाने के बजाय दिमाग पर जोर डालियेगा और ज्ञान उलीचियेगा ! अभी तो आप किसी मिश्र कोमिश्र होने की वजह से इग्नोर करने का आनंद उठाये या किसी को ठस्स कहने का sadistic आनद लें या फिर मिर्ची लगाएं !
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http://mohallalive.com/2010/10/01/arvind-shesh-react-on-high-court-decision-about-ramjanmbhoomi/
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इस लिंक को भी देखे :
बिलकुल सही लिखा भाई
यह भी तो देखें –
http://mishraarvind.blogspot.com/2010/10/blog-post_03.html
Arvind Mishraji
I have aleady read it many times :-)) ..I have left my comment there.Have a look at it.
And thanks for the encouraging remark.
Thanks a lot dear Arvind for the support and moral boost up! Please do write the part 2 of your Hindi article..I must share the secret that many brilliant English writers were pioneers of Hindi /Urdu literature -Harivansh rai Bachchan and …Firaq for instance..and truly speaking I
find same potentials in you as well ..so go ahead ..world is listening you !
Arvind Mishraji
Thanks for making me in the league of such legendary figures.I must say such a potential is not born out of my own talent.My role is secondary.It’s the impact of waves present in the Allahabad’s atmosphere.My role in making of my own potential is zero !!!!
I don’t deserve a compliment in this regard.However, as a mark of respect,I accept your compliment as it is !!!!